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Friday, April 2, 2010

जब नहीं आये थे तुम...

जब नहीं आये थे तुम
तब भी तो तुम आये थे...
आंख में नूर की और
दिल में लहू की सूरत
याद की तरह धड़कते हुये
दिल की सूरत
तुम नहीं आये अभी
फिर भी तो तुम आये हो
रात के सीने में
महताब के खंजर की तरह
सुबह के हाथ में
खुर्शीद के सागर की तरह .
तुम नहीं आओगे जब
फिर भी तो तुम आओगे
ज़ुल्फ़ दर ज़ुल्फ़ बिखर जायेगा
फिर रात का रंग
शबे -तनहाई में भी
लुत्फ-ए-मुलाकात का रंग।
आओ, आने की करें बात
कि तुम आये हो...
अब तुम आए हो तो
मैं कौन सी शय नज्र करूं
कि मेरे पास
सिवा मेहरो वफा कुछ भी नहीं
एक दिल एक तमन्ना के सिवा
कुछ भी नहीं
एक दिल एक तमन्ना के सिवा
कुछ भी नहीं...
- अली सरदार जाफरी

Monday, February 22, 2010

दर्द का साहिल कोई नहीं

हर मंज़िल इक मंज़िल है नयी और आख़िरी मंज़िल कोई नहीं
इक सैले-रवाने-दर्दे-हयात और दर्द का साहिल कोई नहीं

हर गाम पे ख़ूँ के तूफ़ाँ हैं, हर मोड़ पे बिस्मिल रक़्साँ हैं
हर लहज़ा है क़त्ले-आम मगर कहते हैं कि क़ातिल कोई नहीं

- अली सरदार जाफरी