एक लम्बी चुप्पी के मध्य में हूँ. अकेले हुए बगैर एकान्तिक महसूस कर पाती हूँ. शब्दों के कोलाहल में शांति का ‘श’ ढूंढती हूँ. इन दिनों कभी-कभार वो मुझे मिल जाता है. पंख सा हल्का महसूस होता है. हर रोज सोचती हूँ मैं क्या हूँ, कौन हूँ. देह तो नहीं हूँ मैं यह बहुत पहले जान लिया था लेकिन देह के अलावा क्या हूँ यह जानने की यात्रा चलती जा रही है. विचार और भाव तक मेरे कहाँ हैं जब तक इन पर किसी का प्रभाव है और क्या है जो अप्रभावी है....
पिछले दिनों जिन्दगी और मृत्यु के बीच के फासले को और कम होते देखा है. करीब से देखा है. आसपास कई लोग थे, स्वस्थ थे, गतिमान, ऊर्जा से भरे अब वो नहीं हैं. परिवार और दोस्तों में कई युवाओं को खोया दोस्तों के माता-पिता खोये. कईयों से बरसों से मिलना शेष था अब स्मृति शेष है. कुछ को उनके बचपन से जानती थे कुछ को बचपन में देखा था. मृत्यु के आगे किसी का जोर नहीं चलता. जो अभी माँ को कहकर गया कि पूरियां खाऊँगा आकर वो लौटा ही नहीं, जिसने पिता को चाय बनाकर पिलाई उसे कहाँ पता था कि वो अंतिम बार चाय पिलाकर जा रहा है. दोस्तों को कहाँ पता था कि अंतिम बार मिलकर जा रहा है...अंतिम बार फोन पर बात कर रहा है.
मृत्यु न उम्र देखती है न यह कि अभी तो कितने काम बाकी हैं इसके झटके से लेकर चल देती है और सारा जोड़-तोड़ यहीं बिखरा पड़ा रहता है. लेकिन यह सत्य तो हमेशा से करीब था. इस करीबी को क्या हम पहचान पाते हैं.
सोचती हूँ इस सोचने का हासिल क्या है. हासिल है इससे आगे निकलने, उसको कमतर साबित करने, ज्यादा सम्पत्ति बनाने, अहंकार को पालने से दूर जाते जाना. सोचती हूँ जो इनमें फंसे हैं क्या उनकी गर्दन में अकड़े-अकड़े दर्द न होता होगा. जीवन तो हमेशा से इतना ही साफ़ था हमने उसे पहचाना नहीं. इस दौर ने उसे और साफ़ किया है कि हम शायद अब आँखें खोल सकें. समझ सकें कि जो भी है बस यही पल है. इस पल को ईर्ष्या, होड़, अहंकार, हिंसा से नहीं प्रेम से भरना ही उपाय है.
जो करना है अभी इसी पल करना है, कोई बात कहनी है तो अभी इसी पल. शान्ति का अनुभव करना है वो भी अभी इसी पल में है. किसी से प्यार कहना हो अभी इसी पल कहना है. इस सुबह को जी भर जीना है...यह जो चाय का कप रखा है करीब उसकी एक-एक घूँट को महसूस करते हुए पीना है...
आप सबको कहना है कि आपसे प्यार है...कि इस बुरे वक़्त में जिन्दगी की खूबसूरती को आप सभी ने बचाए रखा है. ख्याल रखिये...