Tuesday, February 21, 2023

चलो न मर जाते हैं


'चलो न मर जाते हैं' लम्बी सुनसान सर्पीली सी सड़क पर दौड़ते-दौड़ते थककर बीच सड़क पर पसरते हुए लड़की ने कहा. यह कहकर लड़की जोर से खिलखिलाई. चीड़ के घने जंगलों में जो धूप फंसी हुई थी लड़की की हंसी के कम्पन से वो झरने लगी. धूप का एक छोटा सा झरना लड़की के चेहरे पर कुछ यूँ गिरा कि लड़की का सांवला रंग चमक उठा. जैसे हीरे की कनी चमकती है रौशनी से टकराकर.
लड़की ने फिर से अपनी बात दोहराई, 'चलो न मर जाते हैं'.
लड़के ने उसकी नाक खीचते हुए कहा, 'तू मर जा, मुझे तो अभी बहुत जीना है.' लड़के के चेहरे पर शरारत थी.
लड़की ने उसी अल्हड़ अदा के साथ इतराते हुए कहा,' मेरे बिना जी लोगे?' 
'जी ही रहा था इतने सालों से...'तुम्हारे बिना'...लड़के ने तुम्हारे बिना पर जोर देकर कहा.
'आगे भी जी ही लूँगा.'
'वो जीना भी कोई जीना था लल्लू...' लड़की ने लड़के के हाथ से अपनी नाक छुडाते हुए कहा. और वो फिर से चीड़ के जंगलों में खो जाने को बावरी हो उठी.
'वैसे एक बात बताओगी?' लड़के ने लड़की के पीछे से एक सवाल उछालना चाहा.
लड़की ने हंसते हुए सवाल की इजाज़त दे दी. 
'ये तुम बात-बात पर मर जाने की बात क्यों करती हो? जीना तुम्हें अच्छा नहीं लगता?'
लड़की ने अपने दोनों हाथ कमर पर टिकाकर बड़ी अदा से पीछे पलटकर देखा फिर लड़के की तरफ चल पड़ी. उसके दोनों कंधे अपने हाथों से थाम कर उसने कहा,'मरना और जीना एक ही तो बात है. बिना जिए कौन मरता है भला. बिना जिए तो देह मरती है. जीना सिर्फ सांस लेना तो नहीं. मैं इतना जीना चाहती हूँ इतना जीना चाहती हूँ कि बस मर जाना चाहती हूँ.'
लड़के को कुछ भी समझ में नहीं आया. 
'तुम पागल हो एकदम. कसम से' उसने लड़की के बालों में अटकी पत्तियों को हटाते हुए कहा. 
लड़की ने कहा, 'इस दुनिया को सुंदर बनाये रखना का जिम्मा हम जैसे पागलों के ही हिस्से तो है जनाब. वरना समझदारों ने तो दुनिया का क्या हाल किया है तुम देख ही रहे हो.'
'चलो तो तुम्हें तुम्हारा पागलपन मुबारक.' लड़के ने उठते हुए कहा.
और तुम्हें मुबारक ये रौशनी से भरा लम्हा. लड़की ने लड़के के आगे बंद मुठ्ठी करते हुए कहा. 
लड़के ने जैसे ही उम मुठ्ठी को खोला उसमें रखा धूप का वक्फा बिखर गया.
लड़के की आँखें उस रौशनी से चुन्धियाँ उठीं...लड़की ने हंसते हुए लडके के गालों को चूमते हुए कहा, 'चलो न मर जाते हैं. लड़का मध्धम आवाज़ में बुदबुदाया.'हाँ, चलो न मर जाते हैं.' 

Sunday, February 12, 2023

फ़िज़ूल का प्रेम


जब दुनिया में
हजार मसायल हों
तब प्यार की बात करना
फिजूल ही तो है
हाँ, भला प्यार में डूबे
दो लोग
दुनिया के किस काम के
लेकिन बिना प्यार में डूबे लोगों के
ये दुनिया भी भला किस काम की.

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मामूली सा प्यार
प्यार बहुत मामूली सी चीज़ है
बिलकुल उतना ही मामूली
जैसे दाल में
ठीक-ठीक नमक
जैसे रोटी पर
जरा सा घी
जैसे मजदूर की थाली में
भरपेट खाना
जैसे बच्चों के हाथों में
खिलौने
जैसे आँखों में नींद
नींद में सपने
सपनों में तुम
और तुम्हारा
वो जाते-जाते पलटकर देखना...
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एक रोज खूब भूख लगी
भरपेट खाना खाया
खूब नींद लगी
देर तक सोयी रही
दिन में कई बार चाय पी
बादल थे नहीं आकाश में
लेकिन बारिश की
बाट जोहती रही
आईना देखा नहीं दिन भर
और बेवजह मुस्कुराती रही
फिर देर तक दीवार घड़ी की
सेकेण्ड की सुई की रफ्तार
ताकती रही
कितना सरल सा तो था प्यार.
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एक रोज लड़की ने कहा
‘जा मैं तुझे प्रेम नहीं करती’
यह कहकर वो
देर तलक खिलखिलाई
लड़के ने उसकी खिलखिलाहट को
अपने धानी बोसे में
छुपा लिया.

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सपनों में से
नींदें गुम गयीं
रातों में घुल गयी
सिरफिरी सी एक रात
दिन निकला
लेकिन जाने कहाँ
ठिठका ही रहा
उदास शामें सिमट गयीं
मुस्कुराहटों के आगोश में
बस कि जरा सा
प्यार ही तो हुआ था
और तो कोई बात नहीं थी.

- प्रतिभा कटियार


Thursday, February 9, 2023

तुम्हारा होना


जैसे चिड़ियों को मिलना ऊँची उड़ान
जैसे स्त्रियों को मिलना पूरा आसमान
जैसे पूरा होना धरती पर हर किसी का ख़्वाब
जैसे शीरी का फ़रहाद से मिल जाना
जैसे रेशमा आपा की आवाज़ में
जुदाई नहीं मिलन के गीत गूंजना

तुम्हारा होना
जैसे सदियों से थके जिस्म को
राहत मिलना
और अधूरे ख़्वाबों को मिलना उनकी ताबीर.

Sunday, February 5, 2023

तितली- जीवन की धूप-छाँव के रंग



तितली उपन्यास एक सांस में पढ़ लिया था ऐसा कह सकते हैं लेकिन कुछ भी कहने की बजाय मौन में रहना ज्यादा भला लगा. उपन्यास पढ़ने के बाद जो पहला ख्याल आता है वो यह कि यह उपन्यास मृत्यु के बारे में है लेकिन जाने क्यों मुझे लगा कि असल में यह ज़िन्दगी का उपन्यास है. ज़िन्दगी को थाम के रखने की उस जिजीविषा का जिसमें अवसाद, पीड़ा, बेचैनी शामिल होने लगती है.

तितली उपन्यास को पढ़ते हुए मुझ मारीना बहुत याद आई. नाय्या, मारीना...कार्ल, इरिना.

कोई बात अधूरी छूट जाय तो बहुत दिक करती है यह उपन्यास उसी अधूरी छूटी हुई बात के बारे में है. वो बात जो असल में जिन्दगी थी पूरी.

जीवन क्या है, कितना है. कब कोई जीवन पूरा होता है और कब वो अधूरा रह जाता है. क्या इसका उम्र से कोई लेना-देना है. नहीं जानती, लेकिन इतना जानती हूँ बीच राह में यूँ ही अचानक बिछड़ गए लोग छूट गए लोगों के जीवन में इस कदर रह जाते हैं कि उनका जीवन सच में बहुत मुश्किल हो जाता है.

नाय्या की पीड़ा मारीना की पीड़ा एक जैसी ही तो थी. पीडाएं सहचर होती हैं. वो सच्ची दोस्त की मानिंद साथ हो लेती हैं. किसी भी देश, काल, व्यक्ति की पीड़ा कांधे से आकर टिककर बैठ सकती है. अपने दुःख से, पीड़ा से रिहा होने में कई बार दूसरे की पीड़ा को अपना लेना काम आया है. 

तितली को पढ़ते हुए कई जख्म खुलने लगते हैं, कुछ भरने भी लगते हैं. उपन्यास का पहला हिस्सा दूसरे हिस्से की तैयारी सरीखा है. पूरे वक़्त लगता है कि काफ्का आसपास हैं कहीं. हालाँकि वो उपन्यास में कहीं नहीं है. उपन्यास में बहुत सारे लेखकों का जिक्र है, उनके मृत्यु के बारे में लिखे कुछ अंश हैं. कुछ धूप छाँव सा समां बनता है जैसे जीवन की तैयारी हो रही हो. या शायद मृत्यु की. या शायद लम्हों की. मेरे जेहन में हमेशा से मृत्यु की बाबत सबसे पहले काफ्का का लिखा ही उभरता है फिर कामू फिर नीत्शे लेकिन तितली पढ़ते हुए यह विस्तार बढ़ता जाता है. पढ़ना और जीना दो अलग शय हैं. कुछ भी पढ़ना, किसी का भी लिखा पढ़ना जीने की तैयारी नहीं हो सकता लेकिन जिया हुए का स्वाद पढ़ने के संग जब मिलता है तब समझ तनिक और साफ़ होती है.

मुझसे कोई पूछे कि तितली उपन्यास कैसा लगा तो मैं सिर्फ चुप ही रहूंगी. ‘अच्छा लगा’ कहना मुझे अच्छा तो नहीं लगेगा. हालाँकि यह जरूर है कि इसे पढ़ना अपने भीतर के उन अंधेरों में झांकना है जिन्हें हमने छुपा दिया था. उन जख्मों को तनिक मरहम लगाना है जिसे हम इग्नोर किये बैठे थे. सामना करना है जीवन का, उसके हर रूप का. यह उपन्यास उस एहसास का मीठा स्वाद है जो दूर देश में बैठा कोई व्यक्ति महसूस कर पाता है. एक लेखक जब पाठक होता है और अपने प्रिय लेखक की पीड़ा को अपने भीतर समेट लेता है, उससे मिलने का ख़्वाब उसकी आँखों में दिपदिप करने लगता है.

कोई भी लेखक असल में तो पाठक ही है. तो यह उस उस पाठक के अपने लेखक के प्रति प्रेम की कहानी है. उस कहानी में सात समन्दर पार की यात्रा है, लेखक से हुईं खूबसूरत मुलाकातें हैं और जीवन है.

मुझे इस उपन्यास में शायर का किरदार किसी रिलीफ सा लगा. जैसे तेज़ धूप में पाँव जैसे ही जलने लगते हों शायर की उपस्थिति छाया कर देती हो.

मैं एक स्त्री हूँ और मैंने इसे स्त्री नजरिये से पढ़ते हुए पाया कि क्लाउस की प्रेमिका हो, शायर हो, खुद नाय्या हो कितना कुछ अनकहा रह गया है अभी. कितना कुछ सुनना बाकी है उनसे. लेखक ने उपन्यास भर का सामान जमा किया और जो छूट गया मेरा मन उसमें अटका हुआ है. क्यों समझ से भरी स्त्रियों के हिस्से कोई समझ और संवेदना से भरा पुरुष नहीं आता.

कभी-कभी लगता है कि यह उपन्यास अगर स्त्री ने लिखा होता तब यह कैसा होता? 

लेखक जिद्दी है वो अपने सपनों का पीछा करना जानता है. यह बात इस उपन्यास की ख़ास बात है. यह दो लेखकों की कहानी है, एक पाठक जो लेखक भी है का अपने प्रिय लेखक के प्रति प्रेम की कहानी है. यह कोपेनहेगन की धूप, वहां की हवा, पेड़ और भाषा की कहानी है जिसमें कॉफ़ी की खुशबू घुली हुई है. यह कहानी है इमोशनली एक्स्जास्ट होकर पस्त एक लेखक की यात्रा की. नाय्या की उपस्थिति इन सारी कहानियों का वो सुर है जिस पर सधकर ये सब कहानियां आगे बढ़ती हैं.

लेकिन जाने क्यों लगता है कि बहुत सी कहानियां शेष रह गयी हैं वो जीवन के किसी नए मोड़ पर हमारी बाट जोह रही होंगी. सोचती हूँ छत्तीसगढ़ जाऊं तो शायर से मुलाकात होगी क्या?

किताब में प्रूफ की गलतियाँ अखरती हैं. यूँ भी लगता है कि शायर के पत्रों की भाषा और शैली इतनी परिमार्जित न होती तो शायद और अच्छा होता. यह उपन्यास बहुत से सवाल ज़ेहन में छोड़ता है. इसके पूरा होते ही काफी सारा अधूरापन बिखर जाता और यही इसकी खूबसूरती है.