इधर मारीना की जिंदगी में उम्मीदें महक रही थीं. निराशा हाथ छुड़ा रही थी, मुस्कुराहटें हर वक्त उसके होठों के आसपास खेलती रहती थीं, उधर बोरिस भी अपनी दुनिया में उम्मीदों का नया संसार रच रहा था. बोरिस परस्तेनाक...रूस का वही महान कवि जो मारीना और रिल्के के पत्राचार की पहली कड़ी बना था. वो मन ही मन मरीना के ख्वाब बुनने लगा था. उसी आसक्ति के चलते ही शायद उसने चाहा होगा कि रिल्के के पत्र को पाकर जो खुशी उसे मिली है, वो मारीना को भी जरूर हासिल होनी चाहिए. प्रेम अक्सर हमारी चेतना पर हावी होता जाता है और हम अवचेतन में ठहर चुके स्नेह के बताये रास्तों पर दौड़ पड़ते हैं. अच्छे-बुरे के बारे में सोचने का वक्त ही कहां होता है तब. बोरिस अपनी ही बेख्याली में था. मारीना की कविता 'द एंड' को वो बार-बार पढ़ता था. उसे मारीना के चमकदार व्यक्तित्व और पवित्र रूह से अगाध जुड़ाव हो चुका था. आखिर एक रोज उसने खुद से कन्फेस किया कि हां, उसे मारीना से प्यार है. मास्को के हालात ऐसे थे कि जीवन में सिर्फ उथल-पुथल और अव्यवस्था ही थी. ऐसे में मारीना के ख्यालों का साथ उसे एक बेहद खूबसूरत संसार में ले जाता था.
ओह...मरीना...बरबस वो बुदबुदा उठता.
आखिर 20 अप्रैल को थोड़े संकोच, उलझन और ढेर सारे प्यार के साथ मरीना को उसने एक पत्र लिख ही दिया,
प्रिय मरीना,
आज मैं तुमसे वो कहना चाहता हूं जिसे मैं लंबे समय से अपने भीतर छुपाये हूं. उन शब्दों को तुम्हें सौंपना चाहता हूं जिनकी आग में मैं न जाने कब से झुलस रहा हूं. मरीना, तुम्हारे ख्याल का मेरे आसपास होना मुझे क्या से क्या बना देता है तुम नहीं जानतीं. मैं तुम्हारे पास होना चाहता हूं, तुम्हारे साथ रहना चाहता हूं हमेशा. तुम नि:संकोच होकर अपनी भावनाओं के बारे में मुझे बताना क्योंकि मैं तुम्हारे कारणों को समझने की योग्यता रखता हूं. निकट भविष्य में तुमसे मिलने की इच्छा रखता हूं. जब तुम कहो, जहां तुम कहो...
बोरिस...
यह पत्र पोस्ट करने के बाद बोरिस बेचैनी से मरीना के जवाब का इंतजाऱ करने लगा. उसे पक्का यकीन था कि जवाब उसके हक में आयेगा. लेकिन समय....इसके गर्भ में क्या है हममें से कोई नहीं जानता. बोरिस मरीना के पत्र का इंत$जार कर रहा था और उसके पास पत्र पहुंचा रिल्के का. इस पत्र में रिल्के ने परस्तेनाक से चिंतित भाव से मरीना की कुशल लेनी चाही थी और जानने की कोशिश की कि आखिर उसका लिखा अंतिम पत्र मरीना को क्यों नहीं मिला.
रिल्के के इस छोटे से पत्र से परस्तेनाक अवाक था. उसे रिल्के और मरीना के बीच की नजदीकियों और खतो-किताबत का पूरा आभास हो चुका था, जिसके बारे में उसे कुछ भी नहीं पता था. वो गहरे दु:ख में डूब गया.
जैसा कि मरीना अपनी डायरी में भी लिखा था कि परस्तेनाक एक अधैर्यवान पुरुष था. परस्तेनाक ने 23 मई को मरीना को एक कटु पत्र लिखा.
ये तुमने क्या किया? क्यों किया? कैसे कर पाईं तुम? कल मुझे रिल्के से मिले पत्र ने तुम्हारे और रिल्के के बारे में सब स्पष्ट कर दिया है. मैं इस बात की कल्पना भी नहीं कर सकता मरीना कि तुम्हारी जैसी प्यारी, खूबसूरत दिल रखने वाली स्त्री, जिसका जन्म समय के वाद्य पर मोहब्बत का राग गाने के लिए हुआ है वो कैसे ऐसा बेसुरा राग छेड़ सकी. मुझे नहीं पता अपनी जिंदगी में मैंने इतना दु:ख और गुस्सा एक साथ पहले कब महसूस किया था.
परस्तेनाक गहरे अवसाद में था. अधैर्यवान पुरुषों के लिए अवसाद को साधना अक्सर आसान नहीं होता. हर कोई रिल्के जो नहीं होता. परस्तेनाक ने उसी दिन मरीना के नाम एक और खत लिखा...
मैं इस बारे में रिल्के को कुछ भी नहीं लिख रहा हूं मरीना. क्योंकि मैं उन्हें भी तुमसे कम प्रेम नहीं करता. तुम ये सब क्यों न देख पाईं मरीना. मेरे दो प्रिय लोगों को मुझसे छीन लिया तुमने...
जिन दिनों का यह घटनाक्रम है परस्तेनाक उन दिनों कविताओं की एक श्रृंखला पर काम कर रहा था. उसने मरीना के लिए एक कविता लिखी थी अ डेडिकेशन. इस पत्र के साथ उसने मरीना को यह कविता भी भेजी...
(जारी...)
ओह...मरीना...बरबस वो बुदबुदा उठता.
आखिर 20 अप्रैल को थोड़े संकोच, उलझन और ढेर सारे प्यार के साथ मरीना को उसने एक पत्र लिख ही दिया,
प्रिय मरीना,
आज मैं तुमसे वो कहना चाहता हूं जिसे मैं लंबे समय से अपने भीतर छुपाये हूं. उन शब्दों को तुम्हें सौंपना चाहता हूं जिनकी आग में मैं न जाने कब से झुलस रहा हूं. मरीना, तुम्हारे ख्याल का मेरे आसपास होना मुझे क्या से क्या बना देता है तुम नहीं जानतीं. मैं तुम्हारे पास होना चाहता हूं, तुम्हारे साथ रहना चाहता हूं हमेशा. तुम नि:संकोच होकर अपनी भावनाओं के बारे में मुझे बताना क्योंकि मैं तुम्हारे कारणों को समझने की योग्यता रखता हूं. निकट भविष्य में तुमसे मिलने की इच्छा रखता हूं. जब तुम कहो, जहां तुम कहो...
बोरिस...
यह पत्र पोस्ट करने के बाद बोरिस बेचैनी से मरीना के जवाब का इंतजाऱ करने लगा. उसे पक्का यकीन था कि जवाब उसके हक में आयेगा. लेकिन समय....इसके गर्भ में क्या है हममें से कोई नहीं जानता. बोरिस मरीना के पत्र का इंत$जार कर रहा था और उसके पास पत्र पहुंचा रिल्के का. इस पत्र में रिल्के ने परस्तेनाक से चिंतित भाव से मरीना की कुशल लेनी चाही थी और जानने की कोशिश की कि आखिर उसका लिखा अंतिम पत्र मरीना को क्यों नहीं मिला.
रिल्के के इस छोटे से पत्र से परस्तेनाक अवाक था. उसे रिल्के और मरीना के बीच की नजदीकियों और खतो-किताबत का पूरा आभास हो चुका था, जिसके बारे में उसे कुछ भी नहीं पता था. वो गहरे दु:ख में डूब गया.
जैसा कि मरीना अपनी डायरी में भी लिखा था कि परस्तेनाक एक अधैर्यवान पुरुष था. परस्तेनाक ने 23 मई को मरीना को एक कटु पत्र लिखा.
ये तुमने क्या किया? क्यों किया? कैसे कर पाईं तुम? कल मुझे रिल्के से मिले पत्र ने तुम्हारे और रिल्के के बारे में सब स्पष्ट कर दिया है. मैं इस बात की कल्पना भी नहीं कर सकता मरीना कि तुम्हारी जैसी प्यारी, खूबसूरत दिल रखने वाली स्त्री, जिसका जन्म समय के वाद्य पर मोहब्बत का राग गाने के लिए हुआ है वो कैसे ऐसा बेसुरा राग छेड़ सकी. मुझे नहीं पता अपनी जिंदगी में मैंने इतना दु:ख और गुस्सा एक साथ पहले कब महसूस किया था.
परस्तेनाक गहरे अवसाद में था. अधैर्यवान पुरुषों के लिए अवसाद को साधना अक्सर आसान नहीं होता. हर कोई रिल्के जो नहीं होता. परस्तेनाक ने उसी दिन मरीना के नाम एक और खत लिखा...
मैं इस बारे में रिल्के को कुछ भी नहीं लिख रहा हूं मरीना. क्योंकि मैं उन्हें भी तुमसे कम प्रेम नहीं करता. तुम ये सब क्यों न देख पाईं मरीना. मेरे दो प्रिय लोगों को मुझसे छीन लिया तुमने...
जिन दिनों का यह घटनाक्रम है परस्तेनाक उन दिनों कविताओं की एक श्रृंखला पर काम कर रहा था. उसने मरीना के लिए एक कविता लिखी थी अ डेडिकेशन. इस पत्र के साथ उसने मरीना को यह कविता भी भेजी...
(जारी...)