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Monday, June 15, 2020

तुम्हारी दोस्ती नियामत है सुभाष


दोस्त वो नहीं जो आपकी तारीफ करे, वो नहीं जो पैम्पर करे, वो तो बिलकुल नहीं जो हाँ में हाँ मिलाये. सुभाष भी ऐसे ही हैं डांट लगाने वाले, दुरुस्त करने वाले. लेकिन हमेशा कुछ सिखा देने वाले. वो बेहद शानदार इंसान हैं, उनसे दोस्ती हुई उनसे लड़ाई के साथ.

इतना मुश्किल है सुभाष को झेलना, एक मिनट की देरी पर वो डांट लगा सकते हैं, एक जरा सी बात पर डांट लगा सकते हैं, परफेक्शन की बीमारी है इन शख्श को. काम कोई भी हो पागलपन की हद तक अटैच होते हैं अपने काम से. मैंने न जाने-क्या क्या सीखा सुभाष से. जाना कि स्त्री पुरुष नहीं दोस्त दोस्त होते हैं, उन्होंने मेरी हिचक, संकोच और पूर्वाग्रहों से मुझे वाकिफ कराया, दूर किया.

बिना किसी से कोई भी निजी सवाल किये कैसे साथ हुआ जाता है, कैसे महसूस किया जाता है कि एक दोस्त जो सबसे बड़ा क्रिटिक होता है तो सफर कैसे आसान हो जाता है. मुझे पब्लिक स्पीकिंग में कितनी हिचक थी, सुभाष साथ होते थे और सब आसान हो जाता था...धीरे धीरे उन्होंने साइकिल सिखाने की तरह पीछे से साइकिल पकड़ना छोड़ दिया और कुछ हद तक साईकिल चलती गयी. जब सुभाष कह देते हैं कि ठीक किया तो सांस में सांस आती है इसलिए मेरी नजर उन्हें ढूंढती रहती है कि और इंतजार रहता है कि वो कहें 'हाँ ठीक था.' मतलब उनके ठीक का अर्थ अच्छे से लगाया जा सकता है. रंगमंच, अभिनय और उसके शिक्षा से जुड़ाव को जिस तरह सुभाष रखते हैं वह बेमिसाल है. मैंने उनके साथ काम किया है, उन्हें डूबकर काम करते देखा है.

मैं सुभाष से खुद को इसलिए खूब कनेक्ट करती हूँ कि वो उन सब चीज़ों में मुझसे भी ज्यादा लापरवाह हैं जिनके लिए मुझे खूब डांट पड़ती रही है. सोमाली आप समझ सकती हैं, चाबियाँ खोना, बिल जमा करना भूल जाना, कोई कागज कहीं रखकर ढूंढते फिरना, टैक्स, अकाउंट इन सबमें मेरा और सुभाष का हाल एक सा है इसलिए जब उनकी लापरवाही के किस्से सुनती हूँ तो मजा आता है.

खूबसूरत बात यह है कि आज मेरे इस बहुत प्यारे से दोस्त का जन्मदिन तो है ही उनके साहबजादे सम्यक का भी जन्मदिन है. दोनों पिता पुत्र को जन्मदिन खूब मुबारक.

सुभाष, आज तुम्हारा दिन है तो हो गयी थोड़ी तारीफ शायद, वैसे कोशिश पूरी की थी कि न हो, क्योंकि साल भर तो हमें लड़ना ही है...

हैपी बर्थडे दोस्त.

Saturday, May 21, 2016

जादूगर अनि, जन्मदिन मुबारक!



'आप न तो मेरी नानी की बेटी हो, न मम्मा की बहन तो फिर मेरी मौसी कैसे हुई?' प्यारे से अनि से मेरी दोस्ती की शुरुआत उसके इसी सवाल के साथ हुई थी. मेरा पास कोई जवाब नहीं था, लेकिन वो अब अपने सवाल से खाली था. धीरे-धीरे दोस्ती गहराने लगी, पहले पहल वाली झिझक, संकोच अपनी गठरी बाँध के चलता बना. देवयानी को मैगी और ऑमलेट बनाने किचन की ओर भेजकर हम बिंदास मस्ती करते. चादर तानकर टेंट बनाने का मजा, आहा. बच्चा हुए बिना बचपन का आनंद ले पाना असंभव है, ये राज़  मैं जानती थी. मेरे भीतर का बच्चा मौका पाते ही उछलकर बाहर आने को बेताब रहता ही है. अनि का हाथ थामते ही वो बाहर आ गया.

मैं और अनि  खूब मस्ती करते. उस रोज छुट्टी का दिन था और हमने टेंट बनाने की योजना बनाई. ज़ाहिर है देवयानी के कमरे का हाल तो बुरा होने ही  वाला था लेकिन हम दोनों मूड में आ चुके थे. टेंट बनाने का सामान अनि ने  जुगाड़ना शुरू किया.

हमारा टेंट एक तरफ से बनता तो दूसरी तरफ से गिरने लगता. योजना यह थी कि नाश्ता टेंट में ही होगा. इतने में देवयानी की आवाज आती कि 'चलो उठो, नहाओ तुम दोनो, फिर चलना भी है...' हम दुबक जाते, सोचते कि कैसे न जाने का जुगाड़ बिठाया जाये ताकि सारा दिन खेला जा सके. अनि कहता ' मासी काश कहीं  से फोन  आ जाये कि जहाँ जाना था वहां का प्रोग्राम कैंसिल हो गया .' उसकी इस बात पे उसे खुद ही हंसी आ जाती और हम दोनों मुंह दबाकर हँसते. 

बहरहाल टेंट बनकर ही रहा और हमने नाश्ता टेंट में ही किया. इस दौरान अनि ने पूरे फौजी ढंग से टेंट बनाने में अपनी भूमिका निभाई. जैसे ही मैंने कहा, 'देखो, दुश्मन की फौजें आसपास तो नहीं, हम उनकी बैंड बजा देंगे.' तो वो झट से जवाब देता, ‘हाँ मासी, मैं अभी बैंडवाले को फोन करता हूँ.’ मैं उससे कहती 'हम दुश्मन को हराने की नयी रणनीति बनाएंगे', तो वो मुस्तैद जवाब देता, ‘वैसे मुझे मालूम नहीं है कि रणनीति होती क्या है, लेकिन हम बनायेंगे ज़रूर’ कितनी ही बार वो लम्हे याद करके मुस्कुराई हूँ.

तमाम कुर्सियों और चादर और बहुत सारी स्टिक्स की मदद से बने उस टेंट के अन्दर किये गये नाश्ते के स्वाद और अनि की शरारतों की खुशबू से अब तक सराबोर हूँ. उसकी हर अदा खूबसूरत है. विम्पीकिड की डायरी के लिए उसका दीवानापन, दीवारों पे टंगी उसकी पेंटिंग्स, उसकी तस्वीरों के पीछे की वो तमाम कहानियां जो उसने मुझे बताईं, साथ में मिट्टी के मटके बनाना सीखना, फिर उन्हें धूप में सुखाना, सुबह-सुबह ठंडी हवा में दुबक के खेलना ‘आई स्पाई....’ 

प्यारे अनि, तुम जादूगर हो, तुम्हारे जन्मदिन पर ढेर सारा प्यार तुमको, ढेर सारा दुलार, ढेर सारी मस्ती अभी भी उधार है...लव यू दोस्त...

Sunday, February 5, 2012

रूहे सुखन के लिए !



ना जाने कौन सा पन्ना खुला था उस वक़्त. शायद वर्जिनिया वुल्फ के कमरे में थी मैं या दोस्तोवस्की के गलियारों में...ठीक से कुछ याद नहीं बस इतना याद है कि तेज हवा का झोंका भीतर तक उतरता चला गया था...कुछ पानी के छींटें भी. हालाँकि मौसम एकदम साफ़ था. चमकता हुआ. एक दोस्त ने मुझे एक लिंक दिया था या शायद जिक्र किया था. वो जिक्र था या कुछ और लेकिन जैसे ही मैंने उस जिक्र पर दस्तक दी मानो किसी गिरफ्त में कैद हो गयी. कविताओं में इतना ओज कि पढ़ते हुए प्रेम से भर उठी...वो एक आवारा रूह थी...खानाबदोश...मै भी एक आवारा रूह थी...किसी ठिकाने की तलाश में भटकती.

हम दोनों ने एक दुसरे को पहली ही बार में पहचान लिया. मै लोगों को अपने आस पास चुनने में काफी सतर्क रहती हूँ लेकिन इस गिरफ्त में कैद होना कितना सुखद था. हमने एक झटके में खुद को एक-दूसरे को सौंप दिया. हम एक-दूसरे के पढ़े-लिखे के जरिये दिलों तक पहुंचे और यकीन हुआ कि ये सालों की नहीं, सदियों की पहचान है. फोन पर बात की तो उसकी आवाज से प्यार हो गया. उसने आते ही मुझे दोनों हाथों से थाम लिया. मै तो जाने कब से यूँ थामे जाने को बेकरार थी. वो ठीक वही सुर मुझे भेजती, जिन पर मेरी जान अटकी होती थी...मै उसे कहती 'ये तो मेरा...' 'फेवरेट है....' बात को वो पूरा करती. 'जानती हूँ. सब जानती हूँ. कुछ मत बताओ...मैं तुम्हारी माँ हूँ.'

न जाने कितने मौसम उसके शहर की दहलीज छूकर मुझ तक पहुँचते रहे, न जाने कितनी रातें हमने सड़कों पर एक साथ आवारगी की, न जाने कितने कॉफ़ी के कप भरे के भरे ही रह गए कि हम दिल खाली करने में मसरूफ रह गए. अब तो मानो उसके अहसास के बगैर न सुबह होने को राजी है ना शाम आने को...हमें पता होता है कि किसने किस दिन एक सांस कम ली या किस दिन एक सांस ज्यादा...वो मल्लिका है दिलों की. उसे राज करना आता है लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि उसे प्रेम की गुलामी करने में बहुत सुख मिलता है. दुनिया पर अपनी हुकूमत करने वाली ये मल्लिका इतनी शर्मीली है कि सामने आने पर आँख तक नहीं उठा पाती और इसलिए झट से बाँहों में छुप जाती है. उसकी कवितायेँ सीधे दिलों में उतरती हैं, वार करती हैं, प्यार करती हैं और बेकरार भी करती हैं. उसका जादू सा चलता है. 

आज मेरी उस आवारा रूहे सुखन का जन्मदिन है. उसकी माँ मेरी दोस्त है और वो मेरी माँ. कभी मैं भी उसकी माँ हो जाती हूँ...ना जाने कैसा घालमेल है, पर जो भी है बहुत अच्छा है...जबलपुर में रहने वाली उस मल्लिका को (जिसे दुनिया बाबुशा कोहली के नाम से जानती है) जो निजाम की दीवानी है, प्रेम जिसकी रगों में लहू की जगह दौड़ता है, जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनायें देते हुए खुश हूँ कि मै उस मल्लिका के दिल पर राज करती हूँ और वो मुझ पर. मेरी प्यारी बाबुशा, तेरे लिए गुलाबी कुर्ती की तलाश जारी है...लेकिन मुझे पता है कि इस समय दुनिया का सबसे सुन्दर गुलाबी रंग तुम्हारे गालों पर जा बैठा है...ढेर सारा प्यार मेरी जान...हैप्पी बर्थ डे!