कई दिनों से मन बेहद उदास है और फुर्सत रत्ती भर नहीं है...तो उदासी की गठरी सर पर लादे लादे भटकती फिर रही हूँ...न मिलने वाली फुर्सतों की यह अच्छी बात होती है कि वो आपकी उदासी भी आपसे छीन लेने को बेताब होती हैं...हालाँकि इसके एवज में कई बार चिड़चिड़ाहट साथ हो लेती है.
उतरते शरद के बीच मन का मौसम ऐसा बेढंगा हो यह जरा कम जंचने वाली बात तो है ही...तो आज की सुबह उतरी अपने साथ साहिर को लेकर...दोस्त चन्दर वर्मा की लिखी किताब 'साहिर और मैं' कबसे रास्ते में थी और जब मिली तो खूब मिली...महबूब शायर हैं साहिर उनकी किताब का आना कितना सुख दे गया बता नहीं सकती. हालाँकि यह किताब को सिर्फ पाने का सुख है...पढने का सुख अभी पूरा बाकी है...
दुनिया आज नवरात्र में कन्या जिमाने में लगी थी इसी बीच कुछ लोगों ने भगत सिंह को भी याद किया...भागते दौड़ते जेहन में कभी भगत सिंह, कभी साहिर चलते रहे....कि इसी बीच स्वाति ने आवाज़ दी कि आज लता जी का जन्मदिन है और इस मौके पर लता की सुर साधना का दसवां बरस...दस साल पहले लता की सुर साधना की पहली महफिल जमी थी उत्तर प्रदेश के उन्नाव में...तब भी स्वाति ने आवाज दी थी...तब नहीं पहुँच पायी थी...लेकिन उसके बाद जब भी मौका मिलता है ज़रूर जाती हूँ...
स्वाति खूब मेहनत करती है...संगीत उसका इश्क़ है...मगरूर इश्क...उसी में रमे रहना उसे भाता है...बचे हुए वक़्त में यायावरी करती है...जिन्दगी में और कोई उलझन उसने रखी ही नहीं...मुझे उसकी यह संगीत से, प्रकृति से, जिन्दगी से आशिक मिजाजी बहुत पसंद है...इसी आशिक मिजाजी से उपजी आज की शाम भी. उसकी मिश्री सी आवाज़ में सुनना ये दिल तुम बिन कहीं लगता नहीं हम क्या करें...इस दिलफरेब मौसम से मिलवा गया...
आज की यह महफ़िल महबूब शायर साहिर के करीब ले जाने की शाम थी...नन्हे पौधों को पेड़ बनते देखने की शाम थी, सुकून की शाम थी...
अब सिरहाने शरद का चाँद है, हाथ में साहिर हैं और अभी-अभी बीती संगीत की प्यारी सी खुशनुमा शाम की मीठी सी याद है...ओह शरद...तुम मिल ही गए आखिर...साहिर के बहाने...लता जी के बहाने...सप्तक के बहाने...
(शरद, साहिर, लता और इश्क शहर )