Sunday, November 17, 2024

It begins with self


जीवन इतना खूबसूरत है कि तमाम मुश्किलों के बावजूद इसका आकर्षण खींचता है। खुश होने की इच्छा, सुंदर जीवन की अभिलाषा बार-बार ज़िंदगी को नए सिरे से सँवारने की, फिर-फिर कोशिश करने की ताक़त भी देती है और सलाहियत भी। लेकिन इस कोशिश का नाम सहना नहीं है।

सहने के खिलाफ खड़े होना व्यक्ति के प्रति आक्रोश नहीं है बल्कि वह समझ है जिसमें आत्मसम्मान के फूल खिलते हैं। समझ जो दृष्टि देती है कि परिवार या शादी ही नहीं किसी भी रिश्ते को बचाने में अगर आत्मसम्मान दांव पर लग रहा है तो फैसला लेने का समय आ चुका है।

It Ends with Us पिछले हफ्ते देखी। तब से फिल्म साथ चल रही है, और साथ चल रही हैं न जाने कितनी बातें। आसपास बेवजह रिश्तों को घसीटती स्त्रियों की कहानियाँ। फिल्म पर काफी कुछ लिखा जा चुका है, कहा जा चुका है, दोहराने की मेरी कोई इच्छा भी नहीं सिवाय इतना कहने के फिल्म जरूर देखनी चाहिए।
फिल्म के बहाने मेरे भीतर जो हलचल है यह बात उसी के बारे में है। फिल्म की नायिका का अपनी माँ से पूछना, 'तुमने सहना बंद क्यों नहीं किया'।

फिल्म की नायिका का अपने पति (जो उसे पीटता है) से यह पूछना, 'अगर तुम्हारी बेटी का बॉयफ्रेंड या पति उसे पीटेगा तो तुम उससे क्या कहोगे' और नायक का पूरी ईमानदारी से यह कहना कि वो कहेगा कि, 'उसे छोड़ दो' कहानी की सघनता को सुंदर ढंग से दिखाता है।

नायक का यह कहना कि 'मैं अब वो सब कभी नहीं करूंगा, मैं अपना इलाज कराऊँगा' यह स्वीकारोक्ति फिल्म के अंत की दिशा बदलने की तैयारी सरीखी लगती है। लेकिन लिली जो फिल्म की नायिका है उसके ज़ेहनी स्पष्टता कितनी सहूलियत से अपना रास्ता चुनती है। यह फिल्म की ताक़त है। बिना किसी लाउडनेस के, बिना कोई चीखमचिल्ली के फिल्म का अंत किसी रोशनी सा खुलता है।

वह एक रिश्ते से निकलकर दूसरे रिश्ते में जाने की गलती नहीं करती, वक़्त लेती है, अपने वक़्त को अपने हाथ में थामती है। सूरज उसका माथा सहलाता है। मैं जानबूझकर एटलस के किरदार की बात नहीं कर रही क्योंकि मैं मानती हूँ कि एटलस जैसे सुंदर और यूटोपियन किरदार के बगैर भी लिली का फैसला यही होता और होना चाहिए।
हमारे आसपास जो तमाम लिली मुरझा रही हैं, जो फैसला नहीं ले पा रही हैं। जिनसे साथ सहा भी नहीं जा रहा लेकिन छोड़ भी नहीं पा रही हैं, यह उनके बारे में है। मानो लिली उन सबसे कह रही हो, खुद पर भरोसा करो और उठो। क्योंकि कुछ फैसले जो लगते तो व्यक्तिगत हैं लेकिन वो पीढ़ियों के लिए जरूरी होते हैं। शारीरिक हिंसा तो सिर्फ एक वजह है जो दिखती है, ज़्यादातर वजहें तो दिखती भी नहीं है लेकिन जिनकी मार हर दिन झेलनी होती है, और क्या अलग होना ही अंतिम फैसला है, यह सब व्यक्ति का खुद का निर्णय है। लेकिन आत्मसम्मान जब लगातार रिस रहा हो, रिश्ते में खुद के होने न होने पर रोज सवाल उठ रहा हो तो सोचना तो चाहिए। फैसलों के बाद का रास्ता आसान तो नहीं होता लेकिन रोशनी से भरा होता है इतना तो जरूर है। फिल्म की नायिका उसी रास्ते को दिखाती है।

बच्चों की खातिर जुड़े रहने की तरक़ीब सिखाने वाले चालाक समाज को अब ये बताना होगा कि जिस बच्चे को ढाल बनाकर शादी संस्था को बचा रहे हो उसमें बच्चे भी घुटन के शिकार हैं और आगे चलकर वे उलझे हुए व्यक्ति के रूप में बड़े होते हैं और समाज को कुछ नई किस्म की उलझनें ही देते हैं।

फिल्म का नाम है It Ends With Us लेकिन असल में यह फिल्म कहती है It begins with self.

Saturday, November 9, 2024

मेयअड़गन यानि सत्य की सुंदरता


जैसे जी भर के रो चुकी लड़की के कांधे पर गिरा हो हरसिंगार का एक फूल एकदम बेआवाज़, महक से सराबोर। जैसे खाली पड़े कैनवास पर किसी बच्चे ने रंग उड़ेल दिये हों और कैनवास भर उठा हो उम्मीद की ख़ुशबू से। जैसे तेज़ धूप में नंगे पाँव चलते पैरों से कोई नदी लिपट गयी हो। जैसे निराश मन ने जलाया हो आस्था का एक दिया और ज़िंदगी में उजास फूट पड़ा हो...

मेयअड़गन...(शायद ऐसे ही लिखते होंगे) देखना खुद की हथेलियों में अपना चेहरा रखकर जी भर के रो लेना है। जीवन कितना सादा है, कितना सहज, कितना खूबसूरत। और हम न जाने किन चीजों में उलझे हैं। बाद मुद्दत किसी फिल्म को देखते हुए खूब रोई हूँ, बार-बार रोएँ खड़े हुए हैं। अरविंद तो लाजवाब हैं ही, कार्थी भी कमाल के हैं। फिल्म का विषय, उसका ट्रीटमेंट सबकुछ जैसे स्क्रीन पर लिखी गयी प्रेम कविता हो।
 
छोटी से छोटी चीजों की ऐसी प्यारी डिटेलिंग है कि आसपास पड़ी ज़िंदगी जो हमसे छूटी ही रह जाती है, उसे उठाकर गले लगाने का जी कर उठता है। अगर कोई आप पर भरोसा करता है, निस्वार्थ प्यार करता है, आप बदलने लगते हैं। मैं इस फिल्म के प्यार में हूँ, फिर फिर देखूँगी, सबको देखनी चाहिए। चुप रहकर देखनी चाहिए।
मेयअड़गन तमिल फिल्म है जिसका हिन्दी में अर्थ होता है 'सत्य की सुंदरता'।