जब पास से गुजरे शोर का सैलाब तुम कानों को बंद कर निकल जाना किसी जंगल की ओर. बोलने से बचना प्रिय कि बोलना महसूसने के आड़े ही आता है हर बार. सुनना तुम चुपचाप, पत्तियों पर झरती ओस की पदचाप। साँसों में भर लेना समूचा हरा और जबान पे पिघलने देना कुहरीली रातों का स्वाद।
किसी खेत की मेड पे रख देना खुद को मिलने देना जिंदगी का सुर सांस लेने से. जाती हुई घोड़ागाड़ी पर लपक के चढ़ जाना, घोड़े की टापों की आवाज के बुँदे पहन लेना हंसना जी भर के,
और रो भी लेना जब जी चाहे।
बच्चों की खिलखिलाहटों को जोर से लपेट लेना, जिंदगी के हर लम्हे को सीने से लगा लेना कि नया और कुछ भी नहीं सिवाय हमारी महसूसने की शिद्दत के. ढूंढते फिरते हो जो जिंदगी उम्र भर यहाँ वहां, वो वहीँ है एक कड़क चाय में. हथेलियों पे बैठे मौसम में.गलबहियां डाले स्कूल जाते बच्चों को देखने में, खेतों में आगे जाते-जाते मुड़कर देखती कमसिन मुस्कान में...
किसी खेत की मेड पे रख देना खुद को मिलने देना जिंदगी का सुर सांस लेने से. जाती हुई घोड़ागाड़ी पर लपक के चढ़ जाना, घोड़े की टापों की आवाज के बुँदे पहन लेना हंसना जी भर के,
और रो भी लेना जब जी चाहे।
बच्चों की खिलखिलाहटों को जोर से लपेट लेना, जिंदगी के हर लम्हे को सीने से लगा लेना कि नया और कुछ भी नहीं सिवाय हमारी महसूसने की शिद्दत के. ढूंढते फिरते हो जो जिंदगी उम्र भर यहाँ वहां, वो वहीँ है एक कड़क चाय में. हथेलियों पे बैठे मौसम में.गलबहियां डाले स्कूल जाते बच्चों को देखने में, खेतों में आगे जाते-जाते मुड़कर देखती कमसिन मुस्कान में...