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Tuesday, March 20, 2018

कवि की मृत्यु पर कोहराम


- देवयानी भारद्वाज

मृत्यु एक गरिमामय कर्म है
एक सार्थक जीवन के बाद
चुचाप उठ कर चल देना
जिए गए जीवन के प्रति
गहरी श्रद्धा
ऐसी मृत्यु
जिसे आप अपने मौन में
जज़्ब करते हैं धीरे-धीरे

मृत्यु कोई हादसा नहीं
हत्या या असामयिक मृत्यु
यहाँ मेरा सन्दर्भ नहीं
एक भरपूर जीवन के बाद
विदा की घड़ी
जैसे दूर क्षितिज पर
ढल रहा हो सूरज
धीरे-धीरे
जबकि दीप्त है पृथ्वी
अब भी उसकी आभा में

बिना शोर
बिना कोहराम के
चला गया एक कवि
जैसे चले गए उसके पूर्ववर्ती
जैसे चले जायेंगे अभी और भी कई
अपने जाने के सही समय पर

कवि की मृत्यु पर कोहराम
शोक संदेशों और श्रद्धांजलियों की बाढ़
मृत्यु की गरिमा पर चोट सा पड़ता है
वह जहाँ चला गया है
वहां नहीं पहुंचेंगे तुम्हारे शोक सन्देश
उसके पीछे
इतना शोर मत मचाओ
वह लिख रहा है
अपनी अंतिम कविता
उसके आस पास थोडा धीरे बोलो
कुछ शोर कम मचाओ

Sunday, August 14, 2016

आज़ादी लेकिन एक वर्जित शब्द हो गया...-देवयानी भरद्वाज


चौराहे पर तिरंगा बेच रहे बच्चे के हाथ में
झंडा मुस्कराया
बच्चे ने कहा भारत माता की जय
और हाथ से गिरा सिक्का उठाने बीच सड़क की ओर भागा

खाली पड़ी इमारत में
बस्तर के जंगल में
राजमार्ग के पास खेत में
लहुलुहान मिली किशोरी के पिता को
जब डाक्टरों ने कहा
थाने में रपट लिखना फिर आना
अस्पताल की ईमारत पर लहराता झंडा मुस्कराया

सोलह बरस के बाद
इरोम ने अनशन तोडा
आज़ाद भारत की सरकारें
कुछ और मगरूर हुई
राजभवन की दीवार पर गाँधी ने ऐनक सरकाया
झंडे के साथ वे भी मुस्कराए

आंबेडकर के चरणों में
कमल का फूल अर्पित किया गया
झंडा मुस्कराया

बुलडोज़र उठा कर ले जा रहे थे
रंभाती हुई गायों को
किसी को उसके निवाले की लिए पीटा
कोई अपने रोज़गार के लिए पिटा
दारू की बोतल में पानी बेचने वाला
सबके हिस्से का माल ले कर हो गया फरार
लाल किले पर फहराया गया तिरंगा
सबकी सफ़ेद पोशाकों पर
लाल छींटे चमक रहे थे
आसमान में झंडा मुस्करा रहा था

सब तरफ है जश्न-ए-आज़ादी
आज़ादी लेकिन एक वर्जित शब्द हो गया
जनता की आँखों में धूल है

जिनकी आँखों में नहीं धूल
उनके लिए त्रिशूल है
झंडा है कि मुस्करा रहा है...

Saturday, April 16, 2016

मेरी शिकायत दर्ज की जाए मी लॉर्ड / देवयानी

- देवयानी भरद्वाज 

कितने साल लगते हैं
एक बलात्कार, एक हत्या, एक ज़ुर्म की सजा सुनाने में अदालत को
कितने साल के बाद तक है इजाज़त
कि एक पीड़ि‍त दर्ज़ कराने जाये
उसके विरुद्ध इतिहास में हुए किसी अन्याय की शिकायत

मी लॉर्ड
मेरे जन्म के बाद मेरी माँ को नहीं दिया गया पूरा आराम और भरपूर आहार
इसलिये नहीं मिला मुझे पूरा पोषण
मेरी शिकायत दर्ज की जाये मी लॉर्ड

भाई को जब दी जाती थी मलाई और मिश्री की डली
उस वक़्त मुझे चबानी होती थी
बाजरे की सूखी रोटी
और सुननी होती थी माँ को दादी की जली कटी
एक तो जनी लड़की
वह भी काली कलूटी
कौन इसे ब्याहेगा
कहाँ से दहेज जुटायेंगे
मैं गैर बराबरी और अपमान की शिकायत दर्ज कराना चाहती हूँ मी लॉर्ड
थाने मे जाती हूँ तो सब मेरी बात पर हंसते हैं
घर वाले भी मुझे ही बावली बताते हैं
अब आप ही बतायें मी लॉर्ड
क्या आज़ाद हिन्दुस्तान के संविधान में
मेरे लिये बराबरी की यही परिभाषा थी

मेरी शिकायत दर्ज की जाये मी लॉर्ड
जयपुर के रेलवे स्टेशन पर
पच्चीस साल पहले
जब मेरी उम्र मात्र चौदह साल थी
एक शोहदे ने टॉयलेट के गलियारे में
मेरे नन्हे उभारों पर चिकोटी भर ली थी
और इस कदर सहम गयी थी मैं
कि माँ तक को बता न सकी थी
वह अश्लील स्पर्श मुझे अब भी नींदों में जगा देता है
और मैं बेटी को ट्रेन में अकेले टॉयलेट जाने नहीं देती
पहुँच ही जाती हूँ किसी भी बहाने उसके पीछे
मैं उस अश्लील स्पर्श से छुटकारा चाहती हूँ मी लॉर्ड
मैं इस असुरक्षा से बाहर आना चाहती हूँ
मुझे न अब ट्रेन का नाम याद है,
न घटना की तारीख याद है
मैंने तो उस लिजलिजे स्पर्श का चेहरा भी नहीं देखा
यदि देखा भी होता तो अब याद न रहता
लेकिन मेरे सपनो को उस अहसास से आज़ाद कीजिये मी लॉर्ड
मेरी शिकायत दर्ज की जाये मी लॉर्ड
मेरी न्याय की पुकार खाली न जाये हुज़ूर

मेरे बचपन के अल्हड दिनों को
अश्लील कल्पनाए सौंपने वाले मौसा के विरुद्ध मेरा वाद दर्ज किया जाये मी लॉर्ड
क्या फर्क़ पडता है कि अब उसे लक़वा मार गया है
कि वह अब बिस्तर में पड़ा अपनी आखिरी साँसे गिन रहा है
छह वर्ष से चौदह वर्ष की उम्र तक साल में कम से कम दो बार आते जाते
मासूम देह के साथ किये उसके खिलवाड़ों ने
छीन ली जो बचपन की मासूम कल्पनाएँ वे मुझे लौटाई जायें मी लॉर्ड
मुझे ही क्यों सोचना पड़े कि क्या सोचेंगे उसके नाती और पोतियाँ उसके बारे में
कि बुढापे में ऐसी थू थू लेकर कहाँ मुँह छिपायेगा

क्यों सोचूँ मैं उन चाचाओं, भाइयों और मकान मालिक के बेटों के बारे में
उन सबको जेल में भर दिया जाये मी लॉर्ड
कि अपनी मासूम यादों में आखिर कितने जख्‍मों को लिये जीती रहूँ मैं
मैं उस सहकर्मी के खिलाफ शिकायत दर्ज कराना चाहती हूँ
जो रोज़ाना सामने की सीट पर बैठ कर घूरा करता था
और रातों को किया करता था गुमनाम फोन कॉल
उसे गिफ्तार किया जाये और
मेरे साथ इंसाफ किया जाये मी लॉर्ड

उस लड़के के विरुद्ध भी मेरी शिकायत दर्ज की जाये
जिसने प्यार को औजार की तरह इस्तेमाल किया
और जिसने मेरी देह से सोख लिया सारा नमक

मेरे बच्चों को मेरे ही नाम से जाना जाये मी लॉर्ड
कि बच्चे मेरे रक्तबीज से बने हैं
मैं ही अपने बच्चो की माँ हूँ और पिता भी
बच्चों के नाम के साथ पिता के नाम की अनिवार्यता को समाप्त किया जाये मी लॉर्ड
कि सिर्फ वीर्य की कुछ बूँदें उसे पिता बना देती है और
मेरी मांस मज्जा, मेरे नौ महीने
मेरा दूध
मेरी रातो की नींद,

सिर्फ एक कर्म जिसके पीछे भी छुपा था प्यार
या निरी वासना और गुलाम बनाने की मानसिकता
कैसे उसे दे सकता है मेरे बराबरी का अधिकार
इस व्यवस्था को बदलिये मी लॉर्ड
कुछ कीजिये हुज़ूर कि इसमें छुपा अन्याय का दंश अब और सहा नहीं जाता है

अगर आपका कानून लगा सकता है
तमाम उम्र सुनाने में अपने फैसले
तो मेरी तमाम उम्र की शिकायत क्यूँ आज दर्ज नहीं की जा सकती मी लॉर्ड.