Tuesday, September 29, 2009

यही है सादगी- पाब्लो नेरुदा

खामोशी है ताकत
मुझे बताते हैं पेड़
और गहराई
मुझे बताती हैं जड़ें
और शुद्धता मुझे बताता है आटा।

किसी पेड़ ने नहीं कहा मुझसे
कि मैं सबसे ऊंचा हूं
किसी जड़ ने भी नहीं कहा मुझसे
कि मैं आती हूं
सबसे अधिक गहराई से
और कभी नहीं कहा
रोटी ने
कि कुछ भी नहीं है
रोटी जैसा।
- पाब्लो नेरूदा

Sunday, September 27, 2009

क्रांति- भगत सिंह (जन्मदिन पर )

जब गतिरोध की स्थिति
लोगों को अपने शिकंजे में
जकड़ लेती है
तो वे किसी भी प्रकार की
तब्दीली से हिचकते हैं,
इस जड़ता और निष्क्रियता
को तोडऩे के लिए
एक क्रांतिकारी स्पिरिट की
$जरूरत होती है
इस परिस्थिति को बदलने के लिए
यह $जरूरी हैकि क्रंाति की स्पिरिट
ताजा की जाए ताकि
इंसानियत की रूह में
हरकत पैदा हो।
(असेम्बली में बम फेंकने के बाद अदालत ने जब भगतसिंह से पूछा कि क्रांति क्या है,
तब उन्होंने इस कविता के ज़रिये क्रांति को परिभाषित किया था.)

Friday, September 25, 2009

सीढ़ी

मुझे एक सीढ़ी की तलाश है
सीढ़ी दीवार पर चढऩे के लिए नहीं
बल्कि नींव में उतरने के लिए
मैं किले को जीतना नहीं
उसे ध्वस्त कर देना चाहता हूं।
- नरेश सक्सेना

Tuesday, September 22, 2009

लोहे का स्वाद- धूमिल

लोहे का स्वाद
लोहार से मत पूछो
उस घोड़े से पूछो
जिसके मुंह में है लगाम
- धूमिल

Saturday, September 19, 2009

बीहड़ रास्तों का सफर- मार्क्स

आओ
बीहड़ और कठिन
सुदूर यात्रा पर चलें
आओ ,
क्योंकि छिछला
निरुद्देश्य जीवन
हमें स्वीकार नहीं।
हम ऊंघते,
कलम घिसते हुए
उत्पीडऩ और लाचारी
में नहीं जियेंगे।
हम
आकांक्षा, आक्रोश, आवेग
और अभिमान से जियेंगे
असली इनसान की तरह।
- कार्ल मार्क्स

Friday, September 18, 2009

चुनौती

तुम मुझे
चारों तरफ से बांध दो
छीन लो
मेरी पुस्तकें और चुरुट
मेरा मुंह धूल से भर दो
कविता मेरे धड़कते ह्रदय का रक्त है
मेरी रोटी का स्वाद है
और आंसुओं का खारापन है
यह लिखी जायेगी नाखूनों से
आंखों के कोटरों से
छुरों से
मैं इसे गाऊंगा
अपनी कैद-कोठरी में
स्नानघर में
अस्तबल में
चाबुक के नीचे
हथकडिय़ों के बीच
जंजीरों में फंसा हुआ
लाखों बुलबुले मेरे भीतर हैं
मैं गाऊंगा
मैं गाऊंगा
अपने संघर्ष के गीत।
- महमूद दरवेश

Tuesday, September 15, 2009

हम देखेंगे - फैज अहमद फैज

हम देखेंगे...
लाजिम है कि हम भी देखेंगे
वो दिन कि जिसका वादा है
हम देखेंगे।
जो लाहे अ$जल में लिखा है
हम देखेंगे
ला$िजम है कि हम भी देखेंगे
हम देखेंगे .
जब जुल्मो-सितम के कोहे गरां
रूई की तरह उड़ जायेंगे
हम महरूमों के पांव तले
ये धरती धड़-धड़ धड़केगी
और अहले हकम के सर ऊपर
जब बिजली कड़-कड़केगी
हम देखेंगे
लाजिम है कि हम भी देखेंगे
हम देखेंगे
जब अर$जे खुदा के काबे से
सब बुत उठवाये जायेंगे
हम अहले स$फा मरदूदे हरम
मसनद पे बिठाये जायेंगे
हम देखेंगे
लाजिम है कि हम भी देखेंगे
हम देखेंगे .
बस नाम रहेगा अल्ला का
जो गायब भी हा$िजर भी
जो ना$िजर भी है मं$जर भी
उठेगा अनलह$क का नारा
जो मैं भी हूं और तुम भी हो
और राज करेगी ख़ल्के खुदा
जो मैं भी हूं और तुम भी हो
हम देखेंगे
लाजिम है कि हम भी देखेंगे
हम देखेंगे.

Monday, September 14, 2009

सपने

हर किसी को नहीं आते
बेजान बारूद के कणों में
सोयी आग को
सपने नहीं आते
बदी के लिए उठी हुईं
हथेली के पसीने को
सपने नहीं आते
सेल्फों में पड़े
इतिहास ग्रन्थों को
सपने नहीं आते
सपनों के लिए लाजिमी है
झेलने वाले दिलों का होना
सपनों के लिए
नींद की न$जर होनी लाजमी है
सपने इसलिए
हर किसी को नहीं आते।
-पाश

Saturday, September 12, 2009

हम लड़ेंगे साथी !

हम लड़ेंगे साथी
उदास मौसम के लिए
हम लड़ेंगे साथी
गुलाम इच्छाओं के लिए
हम चुनेंगे साथी
$िजंदगी के टु़कड़े।
कत्ल हुए जज़्बात की कसम खाकर
बुझी हुई न$जरों की कसम खाकर
हाथों पर पड़ी गांठों की कसम खाकर
हम लड़ेंगे साथी...
जब बन्दूक न हुई
तब तलवार न हुई
तो लडऩे की लगन होगी
लडऩे का ढंग न हुआ
लडऩे की $जरूरत होगी
और हम लड़ेंगे साथी....
हम लड़ेंगे क्योंकि
लडऩे के बगैर कुछ भी नहीं मिलता
हम लड़ेंगे
क्योंकि अभी तक हम लड़े क्यों नहीं .....
- पाश

Friday, September 11, 2009

एक आग तो बाकी है अभी

उसकी आंखों में जलन थी
हाथों में कोई पत्थर नहीं था।
सीने में हलचल थी लेकिन
कोई बैनर उसने नहीं बनाया

सिद्धांतों के बीचपलने-बढऩे के बावजूद
नहीं तैयार किया कोई मैनिफेस्टो।
दिल में था गुबार कि
धज्जियां उड़ा दे

समाज की बुराइयों की ,
तोड़ दे अव्य्वास्थों के चक्रव्यूह
तोड़ दे सारे बांध मजबूरियों के
गढ़ ही दे नई इबारत
कि जिंदगी हंसने लगे
कि अन्याय सहने वालों को नहीं
करने वालों को लगे डर

प्रतिभाओं को न देनी पड़ें
पुर्नपरीक्षाएं जाहिलों के सम्मुख
कि आसमान जरा साफ ही हो ले
या बरस ही ले जी भर के
कुछ हो तो कि सब ठीक हो जाए
या तो आ जाए तूफान कोई
या थम ही जाए सीने का तूफान
लेकिन नहीं हो रहा कुछ भी
बस कंप्यूटर पर टाइप हो रहा है

एक बायोडाटा
तैयार हो रही है फेहरिस्त
उन कामों को गिनाने की
जिनसे कई गुना बेहतर वो कर सकता है।

सारे आंदोलनों, विरोधों औरसिद्धान्तों को
लग गया पूर्ण विराम
जब हाथ में आया
एक अदद अप्वाइंटमेंट लेटर....