तुम्हें याद है वो नौजवान
जिसकी आँखों से ख़्वाब छलकते रहते थे जिसकी बाँहों में सामर्थ्य थी
दुनिया के अंधेरों को मिटा देने की
वो नौजवान जो सिर्फ अपने लिए नहीं
पूरी दुनिया के लिए सपने देखता था
वो जो हर वक़्त मोहब्बत में डूबा रहता था
इस दुनिया को मोहब्बत के फूलों से
सजाना चाहता था, संवारना चाहता था
जो चाहता था कि जो सच दिखे
वो सच ही हो भी
क्या तुमने देखा है उस नौजवान को
जो अधूरी नींदों के बीच से जागकर
लोगों के लिए सुकून की नींद बुनना चाहता था
जो कैंटीन में छोड़ देता था अधूरा समोसा
और निकल पड़ता था उस ख़्वाब के पीछे
कि कोई बच्चा मुठ्ठी भर अनाज की कमी से
दम न तोड़े
कोई किसान मुंह न फेरे ज़िंदगी से
वो जो दुनिया के हर मसायल को
अपनी जिम्मेदारी समझता था
वो नौजवान बहुत दिनों से गुम है
उसका नाम नज़ीब था
वो जब से गुम हो गया है
मेरे सपनों में आने लगा है
हर रात वो कुछ सवाल और कुछ सपने
मेरी नींदों में रख जाता है
जागती हूँ तो नज़ीब की माँ की याद आती है
रोहित वेमुला की माँ की याद आती है
उन तमाम माँओं की याद आती है
जिनके बच्चों ने इस दुनिया को
जीने लायक बनाने के सपने देखने की सजा पायी
गर्दन उदासी से झुक जाती है
और आपकी?