मरीना रिल्के के पत्र के इंतजार में अपनी सुबह-शाम बिताती थी. हर दिन बस इंतजार के हवाले रहता था और वो कयास लगाते हुए अपने दिल को बहलाती थी कि हो सकता है वो बीमार पड़ गया हो...हो सकता है वो व्यस्त हो...हो सकता है उसने आज खत लिखा हो और वो कल आ पहुंचे. डाक विभाग जाकर दरयाफ्त करती कि कहीं ऐसा तो नहीं कि पत्र इधर-उधर गुम हो गया हो.
उसने 'अटैम्प्ट इन अ रूम' कविता लिखी जिसमें उसकी सपनों के एक कमरे में रिल्के से मुलाकात होती है.
दिन बीते...सप्ताह बीते...महीने बीते...लेकिन मरीना का इंतजार खत्म नहीं हुआ.
वो साल की आखिरी शाम थी. उसके घर कुछ मेहमान आये थे. मरीना की उदासी रिल्के के पत्रों के इंतजार में स्थायी राग बनकर बजती रहती थी. उन मेहमानों ने उससे कहा कि चलो साल की आखिरी शाम के जश्न में चलते हैं. तुम्हारा मन बदलेगा. लेकिन मरीना अवसाद की चादर में ही सुकून पाती थी. उन्हीं मेहमानों में से किसी ने बेख्याली में ही बस यूं ही बातचीत के दौरान रिल्के की मृत्यु का जिक्र kiya . 'रिल्के की मृत्यु' ये तीन शब्द मरीना के कानों में फ्रीज हो गए. इसके बाद कौन क्या कह रहा था, क्या नहीं उसे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था. दोस्तों की तमाम मान-मनुहार के बावजूद उस बीते साल की आखिरी रात मरीना ने रिल्के के शोक को पहनकर बिताई. दोस्तों के जाने के बाद उसने महसूस किया कि उसकी देह जड़ हो गई है. उसकी समस्त चेतना ध्वस्त हो चुकी थी. वो खूब जोर से चीखना चाहती थी इतनी तेज कि धरती फट जाए और आसमान पिघल जाए...
आखिर उसने कलम उठाई और लिखना शुरू किया...
प्रिय बोरिस,
मेरी आंखों से लगातार आंसू बह रहे हैं...हालांकि इन आंसुओं से जरा भी दुख कम नहीं हो रहा है. बोरिस, मुझे अभी-अभी कुछ दोस्तों से रिल्के की मृत्यु का समाचार मिला है. मैं पिछले कितने महीनों से उसके पत्रों का इंतजार कर रही थी. तुम्हें पता है ना, जहां मैं रहती हूं वहां समाचारों के आने का कोई जरिया नहीं है. ओह रिल्के....बोरिस....इस पूरी दुनिया में सिर्फ तुम इस पीड़ा को हू-ब-हू महसूस कर सकते हो. बोरिस तुमने ही तो हमारे संवादों की बुनियाद रखी थी. तुम खुद भी तो उन्हें कितना प्यार करते थे ना. ऐसा कैसे हो सकता है....तुम्हें पता है बोरिस मैंने 29 दिसंबर को रिल्के के लिए एक कविता लिखी थी...सपने में मुलाकात...उसी रात रिल्के ने आखिरी सांस ली. ये सब क्यों हुआ बोरिस...मैं उससे मिलना चाहती थी. उसे छूकर महसूस करना चाहती थी. वो मुझसे क्यों नहीं मिला...और मिला भी तो ऐसे क्यों मिला? क्यों तुमने मुझे रिल्के से मिलवाया मेरे अच्छे बोरिस....काश कि तुम यहां होते...मेरे पास. इस पूरी दुनिया में मेरे दु:ख को सिर्फ और सिर्फ तुम ही समझ सकते हो...ओह....रिल्के...मेरे प्यारे रिल्के...
मेरी आंखों से लगातार आंसू बह रहे हैं...हालांकि इन आंसुओं से जरा भी दुख कम नहीं हो रहा है. बोरिस, मुझे अभी-अभी कुछ दोस्तों से रिल्के की मृत्यु का समाचार मिला है. मैं पिछले कितने महीनों से उसके पत्रों का इंतजार कर रही थी. तुम्हें पता है ना, जहां मैं रहती हूं वहां समाचारों के आने का कोई जरिया नहीं है. ओह रिल्के....बोरिस....इस पूरी दुनिया में सिर्फ तुम इस पीड़ा को हू-ब-हू महसूस कर सकते हो. बोरिस तुमने ही तो हमारे संवादों की बुनियाद रखी थी. तुम खुद भी तो उन्हें कितना प्यार करते थे ना. ऐसा कैसे हो सकता है....तुम्हें पता है बोरिस मैंने 29 दिसंबर को रिल्के के लिए एक कविता लिखी थी...सपने में मुलाकात...उसी रात रिल्के ने आखिरी सांस ली. ये सब क्यों हुआ बोरिस...मैं उससे मिलना चाहती थी. उसे छूकर महसूस करना चाहती थी. वो मुझसे क्यों नहीं मिला...और मिला भी तो ऐसे क्यों मिला? क्यों तुमने मुझे रिल्के से मिलवाया मेरे अच्छे बोरिस....काश कि तुम यहां होते...मेरे पास. इस पूरी दुनिया में मेरे दु:ख को सिर्फ और सिर्फ तुम ही समझ सकते हो...ओह....रिल्के...मेरे प्यारे रिल्के...
(हालांकि इस बात का कोई प्रमाण नहीं मिलता फिर भी सुना जाता है कि रिल्के के अस्वस्थ होने के कारण मरीना के अंतिम दोनों पत्र रिल्के की सेक्रेटरी ने उन्हें दिए ही नहीं थे)
समाप्त