जब किसान
अपने हक़ के लिए उतरे होते हैं सड़कों पर
स्त्री लिखती है
रोटी पर कविता
जब राजनीति
बो रही होती है
वैमनस्व के, हिंसा के बीज
स्त्री चूम लेती है
प्रेमी का माथा
और लिखती है प्रेम कविता
जब दुनिया भर में
सरहदों की ख़ातिर
छिड़ रहा होता है युद्ध
स्त्री सात समंदर पार बैठी दोस्त को
झप्पी भेजती है
जब दुनिया भर के लोग
सेंसेक्स पर निगाहें गड़ाये
दिल की धड़कनों को
समेट रहे होते हैं
स्त्री नन्हे की गुल्लक में
उम्मीद के सिक्के डालती है
तुम्हें लगता है
स्त्रियों को दुनिया की
राजनीति की समझ नहीं है
असल में स्त्री के
राजनैतिक दखल को
समझ पाने की
तुम्हारे पास नज़र ही नहीं.
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