Thursday, January 26, 2017

कहानी 'सेल्फी'



- प्रतिभा कटियार 

बाहर शदीद बारिश हो रही थी लेकिन मिटटी की खुशबू गायब थी...कन्नू की नींद भी. कन्नू की नींद बड़ी पक्की सहेली थी उसकी. बिस्तर पर पड़ते ही पक्की गुइयाँ की तरह लिपट जाया करती थी. लेकिन इधर कुछ दिनों से उसकी पक्की सहेली से कुछ खटपट हो गयी है...जब नींद नहीं होती तो इंटरनेट होता है...बेवजह की नेट सर्फिंग...और नींद का इंतजार...

कुछ महीनों से यह सिलसिला शुरू हुआ. उस दिन से जब उसने एक रोज खामखयाली में शायद महीनों बाद फेसबुक पे लॉगिन किया था और लॉगइन करते ही उसे नोटिफिकेशन मिला ‘राजेश लाइक्स सुमिता बनर्जी’स पिक’. कन्नू की दिलचस्पी बढ़ी. सुमिता बनर्जी की वॉल लॉक थी लेकिन उसकी हर प्रोफाइल पिक और कवर फोटो पर राजेश के लाइक्स दर्ज थे. कहीं-कहीं कमेन्ट भी.

सुमिता का नाम कन्नू ने राजेश के मुह से कई बार सुना था. कुछ बरस पहले राजेश की बातों में सुमिता का जिक्र आया था. वो उसकी नयी बॉस नियुक्त होकर पूना से आई थी. जब जिक्र आया था तो भरपूर आया था. अक्सर ही राजेश बात-बात में सुमिता की तारीफ किया करता. कई बार कन्नू उसे छेडती भी, 'क्या बात है कोई चक्कर तो नहीं है सुमिता जी से?' जिसे राजेश हंसकर टाल देता, ये कहकर कि 'हाय, काश हो पाता'.

कन्नू को ये सब सुनने में मजा आ रहा था. वो राजेश को छेडती, ‘पहली बार अपने पति के मुह से किसी औरत का नाम सुन रही हूँ, कसम से मजा आ रहा है. मैं तो सोचती थी मेरी जिन्दगी में ये वाली फीलिंग मिसिंग ही रहेगी.’ उन दिनों सुमिता का जिक्र घर में काफी होने लगा था और उसको लेकर कन्नू राजेश को खूब छेडती थी.

कन्नू और राजेश दोनों ही हंस देते. दोनों के रिश्ते का खुलापन दोनों को एक-दूसरे के प्रति आश्वस्त रखता था. कन्नू हमेशा कहती, कभी भी कुछ गड़बड़ हुई न तो घबराना मत, लेकिन मुझे बता देना, पत्नी समझकर नहीं, दोस्त समझकर. राजेश भी कन्नू को यही कहता. दोनों की अंडरस्टैंडिंग मजे की थी. कहने को दोनों पति-पत्नी थे लेकिन दोस्तों की तरह ही रहते थे. लड़ते झगड़ते, प्यार करते...जिन्दगी साथ जीते, देश दुनिया के मसायल पे बात करते. राजेश कन्नू पे इस कदर फ़िदा रहता था कि कन्नू खुद को अभिमानिनी महसूस करने लगती. कभी लाड से डपट भी देती, ‘शादी के इत्ते बरस बाद भी कोई बेवकूफ ही अपनी बीवी का इस कदर दीवाना होता होगा.. जाओ यार, दुनिया में और भी औरतें है, थोडा फ्लर्ट श्लरट करो, मेरा ईगो भी सैटीस्फाईड होने दो....क्या हर वक़्त मेरे ही पीछे लगे रहते हो...’ राजेश ये सुनकर उसके और करीब आ जाता और कहता, ‘तुम्हारे सिवा कुछ नज़र ही नहीं आता. ‘

मेहुल के पैदा होने के बाद राजेश कन्नू और मेहुल दोनों के प्यार और देखभाल में व्यस्त हो गया. जिन्दगी मजे में चल रही थी. इसी बीच कन्नू का ट्रांसफर दूसरी ब्रांच में हो गया....ये दूसरी ब्रांच घर से काफी दूर थी इसलिए जिन्दगी की गति और बढ़ गयी अब. कन्नू को और सुबह निकलना पड़ता, राजेश को मेहुल का टिफिन बनाना होता, घर के बाकी काम निपटाने पड़ते....

इस स्मार्टफोन के ज़माने में भी कन्नू के पास न मेल चेक करने की फुर्सत होती न फेसबुक देख पाने की. एक दिन स्कूल में स्टाफ रूम में फेसबुक अफेयर की गॉसिप के बीच उसने अपना फेसबुक लॉगइन किया. काफी दिनों बाद फेसबुक लॉगइन किया तो नोटिफिकेशन से उसे फिर से सुमिता याद आई. राजेश तो मुझे हर बात बताता है सोचते सोचते कन्नू घर पहुँच गयी.

घर आई, चाय चढ़ाकर नहाने चली गयी...लौटी तो चाय मुस्कुरा रही थी...दोपहर का यह वक़्त उसे बहुत दिनों बाद मिला था. चाय पीते-पीते सोचा कि कैसी हो जाती है जिन्दगी. सब कुछ है भी और कुछ नहीं भी है. और जो नहीं है उसे महसूस कर पाने का वक़्त भी नहीं. उसके मन में वो नोटिफिकेशन कहीं अटका हुआ था ‘राजेश लाइक्स सुमिता बनर्जी'स पिक.’ राजेश ने कभी बताया नहीं कि सुमिता से टच में है. फिर खुद पर ही हंसी आई. फेसबुक भी कोई संसार है, और ये भी कोई बताने वाली बात है कि फेसबुक पे कौन-कौन टच में है.

शाम को राजेश थोडी देर से आया था, मेहुल अपने दोस्त की बर्थडे पार्टी में गया था...कन्नू ने थोडा रोमेंटिक होते हुए बाहें बढा दीं, राजेश अचकचा गया...’अरे...’वो पीछे हट गया. ‘क्या हुआ’ कन्नू ने सहमकर पूछा. ‘कुछ नहीं यार, थका हूँ बहुत, नहाकर आता हूँ ‘

‘ठीक है नहा लो फिर थोडा घूम के आते हैं...कित्ते दिन हो गए न?’

राजेश बिना कुछ जवाब दिए नहाने चला गया. कन्नू तैयार होने लगी...चाय का पानी भी उसने चढ़ा दिया. राजेश नहाकर आया और लैपटॉप खोलकर कुछ काम करने लगा...कन्नू चाय लेकर आई तो उसे काम करते देख उदास हो गयी...’हम घूमने जाने वाले थे न? ‘

‘आज नहीं...बिलकुल मन नहीं....थका हूँ बहुत...’राजेश ने चाय लेते हुए कहा.

‘कित्ते दिन हो गए हमें कहीं गए. कैसे मशीन से जीते जा रहे है हम...चलो न राजेश....बस बाइक से एक चक्कर.’

‘प्लीज़ कन्नू....एकदम मन नहीं....तुम तो समझती हो न. तुम्हारा तो अक्सर ही मन नहीं होता था, थकी होती थी...तुमसे बेहतर कौन समझेगा.’ कन्नू खामोश हो गयी...टीवी चैनल पलटने लगी...इस तरह खाली बैठकर टीवी देखना भी उसे लक्सरी सा महसूस हुआ...टीवी पर वही हत्या, बलात्कार, राजनीति, हाहाकार....घरेलू चैनलों पर वही सास बहू, इसका चक्कर उससे, उसका चक्कर उससे या फूहड़ गानों पर अधखुले जिस्म. टीवी बंद कर उसने फिर से मोबाईल ऑन किया. फेसबुक नोटिफिकेशन में फिर वही ‘राजेश लाइक्स सुमिता बनर्जी'स पिक.’ उसने सोचा वही सुबह वाला बासी नोटिफिकेशन होग. आगे बढ़ गयी. तभी एक और नोटिफिकेशन आ गया, ‘राजेश लाइक्स सुमिता मुखर्जी'स स्टेटस.’

खाना खाते वक़्त कन्नू ने राजेश को छेड़ा, ‘आजकल सुमिता जी के क्या हाल हैं? कैसी हैं वो?’
राजेश ने कौर तोड़ते हुए जवाब दिया, ‘ठीक ही होंगी...क्यों?’
‘नहीं, ऐसे ही पूछा.’
‘तुमने कभी बताया नहीं कि वो दिखती भी स्मार्ट हैं? ‘
कन्नू ने बात जारी रखी
‘इतने ध्यान से देखा नहीं...’ राजेश ने जवाब दिया.
‘प्रोफाइल पिक ध्यान से देखे बिना ही लाइक कर देते हो?’
कन्नू अपने भीतर की अनजान उलझन को सहेज नहीं ही पायी

‘ओह ? तो तुम मेरी जासूसी कर रही हो?’ राजेश एकदम से भडक गया.
‘जासूसी? कैसी बात कर रहे हो....इसकी ज़रूरत क्यों होगी भला.’
‘वही तो?’ राजेश झल्लाया
‘आज यूँ ही स्कूल में बात हो रही थी फेसबुक की. प्रिंसिपल थी नहीं तो गपशप चल रही थी. तभी मैंने महीनो बाद लॉगइन किया. तुम जानते हो मैं नहीं जाती फेसबुक तेस्बुक पे. टाइम ही नहीं है यार. और करना भी क्या है वहां जाकर. जब दिन में लॉगिन किया तभी नोटिफिकेशन आया कि तुमने उनका स्टेटस लाइक किया है और अभी देखा तो पिक्चर लाइक की है.’ कन्नू ने साफ़-साफ़ बता दी सारी बात.

राजेश शांत होते हुए बोला, ‘वो दुनिया तुम्हारी जैसी भली औरतों के लिए है भी नहीं...मत जाया करो वहां...’
‘ये कैसी बात है राजेश? यानि जो औरतें फेसबुक पे हैं वो भली नहीं हैं? ‘
‘अरे यार, मुद्दा मत बनाओ...बात मुंह से निकली नहीं कि तुम मुददा बनाने के लिए लपक लेती हो बस. मैं तो बस कह रहा था...वो अजीब जंगल है...किसी का कुछ पता नहीं...किस तस्वीर के पीछे कौन है...किसके शब्द कितने नकली हैं. हम अपनी दुनिया में खुश हैं न? तुम इस सब झंझट से दूर ही रहो..’ .राजेश ने स्थिति को सँभालते हुए कहा.
‘तो उस जंगल में तुम क्या कर रहे हो?’
‘मैं तो स्त्री नहीं हूँ न? मुझे उस तरह के खतरे कम उठाने पड़ते हैं जैसे औरतों को उठाने पड़ते हैं. कितनी ही बराबरी की बात कर लें लेकिन हम मर्दों के भीतर स्त्री देह को लेकर जो लोलुपता है उसे नहीं बदल पाए हैं हम. पुरुषों की तस्वीरें क्या वो खुद ही खुले पड़े रहें किसी को फर्क नहीं पड़ता लेकिन औरतें...उनके पीछे लपक पड़ते हैं लोग... एक लड़की प्रोफाइल पिक बदले तो लाइक्स बरसने लगते हैं. ये सब अजीब सा लगता है मुझे तो. किसी औरत की तस्वीर क्यों सरे बाज़ार रखी हो, क्यों उसे कई सौ लोग लाइक करें...वाह वाह करें....ये मुझे पसंद नहीं...तुमको मैं वहां देख ही नहीं सकता.’ राजेश ने भी बिना लाग-लपेट के अपनी बात रख दी.
‘तुम मेरी जान हो....’ कहकर राजेश ने कन्नू का मूड बदलने की कोशिश की.
‘वो पता नहीं, लेकिन ये मामला महज़ फेसबुक का तो नहीं है. ये तो पूरी दुनिया का है. घर के भीतर तक औरतों के लिए सांस लेना आसान नहीं. मिसेज सक्सेना रोज़ बताती हैं कि किस तरह संयुक्त परिवार के नाम पर मर्दों से भरे घर में हर वक़्त पल्ला समेटने की मजबूरी में कितना कुछ झेलना पड़ता है. बराबर के जवान देवर, जेठ, ससुर....हर वक़्त स्कैन करती नजरे....इनसे मुक्ति कहाँ...फेसबुक का कंट्रोल तो फिर भी कुछ हद तक अपने हाथ में है...है न?’ कन्नू को राजेश की बात से वाकई दिक्कत हो रही थी.
‘पता नहीं...बस मुझे पसंद नहीं वो बाज़ार...’ राजेश झुंझला गया था.
‘अगर इतना ही बुरा लगता है तो तुम खुद क्यों लाइक करते फिरते हो औरतों की तस्वीरें....बोलो?’ कन्नू अब अड़ चुकी थी.
‘क्योंकि वो औरतें मेरे घर की नहीं हैं...वो चाहती हैं कि लोग उन्हें पसंद करें इसलिए करते हैं लोग. मैं भी करता हूँ.’
‘ये गलत है. ये तो मौकापरस्ती हुई.’
‘अच्छा बाबा, अब नही करूँगा. ओके ?’ राजेश ने समझैतापरक मुद्रा अख्तियार की.
‘अच्छा हो कि जो हम सोचते हैं, वो ही करते भी हों...’ कन्नू ने उलाहने में कहा और उठकर चल दी.

कन्नू के जेहन में सुमिता वाली बात अटकी हुई थी. जो आदमी सुमिता की इतनी बात करता था, वो अब उसका जिक्र तक नहीं करता. जबकि फेसबुक पर दोनों टच में हैं.

सुबह हुई और जिन्दगी की गाड़ी फिर झटपट दौड़ने लगी. अब कन्नू कभी-कभार फेसबुक के चक्कर मारने लगी थी हालाँकि अब उसको राजेश की कोई हलचल वहां नहीं मिलती. काफी दिन हो जाते तो सुमिता की वॉल भी देख आती. वहां भी कोई हलचल नहीं, कोई अपडेट नहीं मिलती. कन्नू सोचती, ये क्या हो गया है उसे, क्या वो ईर्ष्यालु और शक्की होती जा रही है. फिर इस ख्याल को झटक देती.

इधर फेसबुक से उसकी यारियां बढ़ने लगी थीं. चलते-फिरते लॉग इन करती और अल्लम-गल्लम सामने आने लगता. उसे खीझ भी होती कि किस तरह संवेदनशील मुद्दों का मखौल उड़ रहा है. सबको अपनी दिखाने की पड़ी है. हर कोई चीख रहा है कि मैं कितना बड़ा तुर्रम खां हूँ. एक रोज उसने सोनाली से हंसी-हंसी में कहा भी था, ‘ऐसा लगता है कोई चारागाह है फेसबुक. सब मेमने हैं, मैं मैं करते रहते हैं.’ ‘लेकिन ये मेमने मासूम नहीं शातिर हैं.’ सोनाली ने उसे दुरुस्त किया. ‘और इस शातिरपन में विनम्रता की एक तख्ती भी खुद ही अपने गले में टांग लेते हैं कि भाई, हमें तो कोई लेना-देना ही नहीं इस सबसे...हम तो निर्विकार हैं इन सबसे. लेकिन पांच मिनट तक अगर उनकी प्रोफाइल पिक पर एक भी लाइक न आये तो डिप्रेशन का अटैक पड जाये...और किसी के समाजवादी चिन्तन पर अगर विमर्श का ढेर न लग गया तो बंदा धमकी भरे अंदाज में कहता है कि ये दुनिया रहने लायक नहीं रह गयी...सो अलविदा....अब इस अलविदा वाले स्टेटस को कितने लाइक मिले कितने कमेंट ये देखे बिना छोड़ें कैसे, और उनके बिना भी ये दुनिया मस्त चल रही है ये सहें कैसे सो वापसी फिर से...कि हरी बत्तियों और भाषाई चाशनी में सारा समाज यहीं तो सुधर रहा है, सारे राजनैतिक प्रपंच यहीं, सारे चुनाव यही, सारी संवेदनाओं का बाज़ार यहीं...’ सोनाली ने फेसबुक का पूरा विश्लेष्ण कर डाला जिसे सुनते हुए कन्नू मुस्कुराती रही.

कन्नू को कुछ ही दिनों में इस संसार का सारा सच समझ आ गया था लेकिन साथ ही यह भी कि उसे यहाँ कुछ अच्छे दोस्त भी मिलने लगे और कुछ पुराने बिछड़े हुए दोस्त भी. वैभव भी उसे कॉलेज टाइम के बाद १५ बरस बाद फेसबुक पे मिला. ‘कितना मुटा गया है तू....’ कन्नू ने छूटते ही उसे मैसेज भेजा था.

एक रोज एक कवि महोदय का इनबॉक्स मैसेज चमका, ‘आप बहत खूबसूरत हैं मैम.’ कन्नू का जी किया एक चमाट धरे कान के नीचे. सच ही कहता है राजेश कि ये दुनिया है ही नहीं भली औरतों की.

‘भली औरतें.’ ये शब्द हालाँकि अटका हुआ था कहीं. उसकी बहुत सी दोस्त हैं फेसबुक पे और वो जानती है कि वो कैसी हैं. ये भले बुरे की सीमायें भी खूब तय की हैं समाज ने. उसका मन कसैला हो उठा.

भला होना जो पहले से तय है, उसकी सलीब ढोते-ढोते बूढ़े होते जाना...खुद को लगातार इग्नोर करते हुए. गोल-गोल घूमते जाना. बेवजह.

उसके मन में तमाम बेचैनियाँ बढ़ने लगी थीं. अपने दायरों के बाहर जाने की उलझन थी. राजेश से बात करने का वक़्त ही नहीं होता था. अक्सर दोनों में घर गृहस्थी की बात के अलावा बात हुए महीनों बीत जाते. हालाँकि फेसबुक पर उसका जाना काफी बढ़ने लगा... बीच-बीच में वो सुमिता की प्रोफाइल देखना नहीं भूलती.

एक रोज़ डिनर के वक्त कन्नू ने मुसुकुराकर कहा, ‘सुनो मैं भी अब भली औरत नहीं रही. मुझे बधाई दो.’
‘मतलब?’
‘मतलब फेसबुक पे मजा आने लगा है...मुझे भी.’
‘हाँ, देख रहा हूँ.’ राजेश ने कहा.
‘मतलब देख रहे हैं आप चुप्पे चुप्पे. लेकिन आप तो हमको नहीं दीखते...’
‘मैं बिजी रहता हूँ यार, कभी-कभार गया तो देखता हूँ तुम्हारी सक्रियता.’
‘बहुत बुरा भी नहीं है वैसे, कितने सारे नए लोग मिलते हैं, और काफी कुछ नया देखने सुनने को भी...’
‘देख रहा हूँ तेज़ी से राय बदल रही है तुम्हारी.’ राजेश ने कहा
‘जीवन में जब कुछ न बदल रहा हो तो राय बदल लेने में भी कोई बुराई नहीं है न?’ कन्नू मुस्कुराई...
इधर उसकी वैभव से बातचीत बढ़ने लगी थी. एक रोज जब वैभव ने भावुकता में उसे प्यार जैसा कुछ कहा तो कन्नू सकपका गयी. लॉगाउट तो हो गयी लेकिन सिहरन सी होती रही कई दिनों तक. शादी के १४ बरस हो गए. इस तरह की सिहरन उसके भीतर अब भी बाकी है, उसे पता नहीं था. कॉलेज के ज़माने के वो कमसिन दिन याद आ गए जब कोई निगाह भर देख भी लेता था तो महीनों नींद नहीं आती थी.

वैभव के उस इज़हार की अजीब बात यह हुई कि कन्नू को बुरा नहीं लगा. वो असहज ज़रूर हुई लेकिन गुस्सा आया हो, चिढ हुई हो ऐसा भी नहीं था.
कुछ दिन वो फेसबुक पर जाने से बचती रही लेकिन जल्दी ही सिलसिला फिर शुरू हो गया.
कन्नू और वैभव में बातचीत भी होने लगी. उसे वैभव से बात करना अच्छा भी लगता था लेकिन साथ ही कन्नू के भीतर कोई अपराधबोध भी घिरने लगा. शायद उसी अपराधबोध के चलते अब वो राजेश को ज्यादा वक़्त देना चाहती. उसका ख्याल रखती, उसकी पसंद-नापसंद का और ज्यादा ख्याल रखने लगी. घर में होने वाली रोजमर्रा की तकरार में कमी आने लगी थी.

वो दिन में चार बार खुद को बताती कि बात ही तो कर रही है, और तो कुछ नहीं है. वैभव को भी बता दिया है उसने कि वो अपनी शादी से खूब खुश है इसलिए ज्यादा इधर-उधर की सोचने की ज़रूरत नहीं. अपने भीतर के असमंजस से लड़ने के लिए वो राजेश की और अपनी तस्वीर भी वॉल पे चिपका देती जिसे सबसे पहले लाइक करने वाला वैभव ही होता. वैभव भी अपनी पत्नी के साथ वाली तस्वीरें चिपकाता. दोनों एक-दुसरे की हैपी फैमली वाली तस्वीरें लाइक करते और घंटों चैट करते.

वजह का ठीक-ठीक पता नहीं था, फिर भी कन्नू जिन्दगी में कुछ तो बदलाव महसूस कर रही थी. उसके तैयार होने में थोड़ी और नफासत आने लगी थी, स्टाफ रूम में होने वाले हंसी-मजाक में उसकी भी मुस्कुराहटें शामिल होने लगी थीं. मेहुल को पड़ने वाली डांट में कुछ कमी आई थी.

एक रोज राजेश ने उसे बताया कि उसे हफ्ते भर के लिए बड़ोदा जाना है, मीटिंग के सिलसिले में. कन्नू ने फटाफट उसकी तैयारी कर दी.
राजेश चला गया. जाने क्यों इस बार राजेश का जाना कन्नू को बुरा नहीं लगा. काम निपटाकर इत्मीनान से लॉगइन हुई. वैभव का मैसेज उसका इंतजार कर रहा था.
‘कहाँ हो, कबसे इंतजार कर रहा हूँ.’ कनु मैसेज देखते ही मुस्कुरा दी.
‘क्यों कोई काम नहीं है क्या?’ कन्नू ने मैसेज टाइप किया.
स्माइली आ गयी तुरंत.
‘राजेश गया?’ वैभव ने पूछा.
‘हाँ.’ कन्नू ने जवाब दिया....
‘आज तो हम आपको नहीं छोड़ेंगे. आपकी सेवा में हाज़िर...’ वैभव शरारत के मूड में था.
‘अच्छा जी...’ कन्नू ने भी स्माइली भेज दी.
देर रात तक दोनों बातें करते रहे....बारिश होती रही...मिट्टी महकती रही.

सुबह कन्नू ने छुट्टी का मैसेज डाला और मेहुल को स्कूल भेजकर फिर से बिस्तर में सिमट गयी. दिन में उसने बड़े दिन बाद फरीदा खानम को सुना...’आज जाने की जिद न करो...’
इसी इसरार के साथ वैभव ने रात उसे छोड़ा था.
कोई नशा सा महसूस हो रहा था कन्नू को.
वो लगातार सोचती जा रही थी कि इतने बरसों में क्या था जो कम था उसकी जिन्दगी में. राजेश ने उसे कम प्यार तो नही किया. फिर ये क्या हो रहा है उसे. क्यों वैभव की बातें उसे बुरी नहीं लगतीं. क्यों अचानक बारिशें सिर्फ धरती पर नहीं बरस रहीं, उसके मन में यह भाव भी आता कि राजेश के प्रति गलत तो नहीं ये.

पर गलत क्यों होगा...? क्या पति-पत्नी होने का अर्थ एक दुसरे की भावनाओं पर कब्ज़ा करना है. अगर ऐसा है तो मेरे भीतर ये भाव आने ही नहीं चाहिए. इस तरह की भावनाएं सिर्फ राजेश के लिए ही होनी चाहिए. ये वैभव कहाँ से आ गया? क्यों वैभव की बातें उसके भीतर एक पुलक, एक थिरकन जगाती हैं.

‘शाम को साथ में काफी पियें?’ दो सवालों के बीच से निकलकर कनु का मन निकलकर कॉफ़ी टेबल पर खिलखिलाने लगा.
लगातार गृहस्थी में दौड़ते-भागते कन्नू के भीतर की नदी सूखने लगी थी...राजेश का निरंतर मिलता प्रेम भी उसकी नमी को लौटा नहीं पा रहा था...और अब बेवजह ये नदी कलकल बहे जा रही थी...

उस रोज जब कन्नू वैभव के साथ फिल्म देखकर निकल रही थी और अपने पोर-पोर में वैभव के शरारती स्पर्श की थिरकन को छुपाने की कोशिश कर रही थी कि उसकी नजर उसी हॉल के कोने में बैठे जोड़े पर पड़ी...राजेश और सुमिता...

राजेश के कंधे पर सुमिता का सर था और और सुमिता की पीठ पर राजेश का हाथ...वो चुपचाप घर आ गयी...चेंज करके किचन में गयी...तभी राजेश भी आ गया...यार कुछ अच्छा सा खिलाओ आज...बड़ी भूख़ लगी है...राजेश की आवाज़ में चहक थी...कन्नू की आंखें बरसना नहीं ही रोक पायीं और हमेशा की तरह वाशरूम की पनाह काम आई...

फेसबुक सामने खुला था...राजेश अच्छा सा खाकर सो चुका था...’थैंक्स फॉर सच अ स्वीट ईवनिंग डार्लिंग. लव यू’ वैभव का मैसेज पड़े-पड़े मुरझा चुका था...बाहर बारिश हो रही थी लेकिन मिटटी की खुशबू गायब थी...

(निकट के दिसम्बर १६ के अंक में प्रकाशित )

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