Monday, September 19, 2022

हाँ, तुमसे मोहब्बत है...



सोचा था खामोश रहूंगी. कुछ न कहूँगी. और सच खामोश ही हूँ अरसे से. ज़िन्दगी अपने तमाम रंग और मौसम लिए मुझ पर उतर रही है. अचानक बैठे-बैठे कोई मुस्कुराहट गालों से सटकर बैठ जाती है. फिर अचानक महसूस करती हूँ कि आँखों से होते हुए गालों पर कोई नदी उतर रही है. सुख में सुख की और उदासी में उदास होने की वजह को ढूंढना कब का छोड़ दिया है. भीतर जाने कितना कुछ जमा है, जाने किस मौसम की आहट पाकर क्या-क्या पिघलने लगता है. उस पिघलन में अपनी तमाम जकड़न से आज़ाद होना चाहती हूँ. कभी हो पाती हूँ, कभी नहीं.

एक बार एक दोस्त ने कहा था, 'भावुक होना सबसे बुरा होता है, भावुकता से बाहर निकलो' मैंने यह बात सुनी थी और भावुक हो गयी थी. जो भाव स्व है उसी का नाम तो स्वभाव है. उससे कोई बाहर कैसे निकले भला. तो उसके खामियाजे भी भुगतने की तैयारी रखनी होती है. कभी-कभी वो तैयारी कम पड़ जाती है.

मुझे भावुक होने से कभी कोई दिक्कत नहीं हुई. मुझे कभी किसी ने दुःख नहीं दिया. धोखा नहीं दिया. धोखा जैसा कुछ नहीं होता. कोई किसी को दुःख कैसे दे सकता है जब तक हमने उसे इसकी इजाज़त न दी हो.

हाँ, यूँ हुआ जरूर कि भावुकता ने मुझे कुदरत के बहुत क़रीब पहुँचाया. प्यारे लोगों से मिलाया और जी भर के रोने का शऊर सिखाया. खुलकर खिलखिलाने का हौसला दिया. ज़िन्दगी की हर बूँद को घूँट-घूँट पीना सिखाया.

जबसे ख़ुद के इश्क़ में हूँ ज़िन्दगी सरककर और क़रीब आ गयी है...मुझे ज़िन्दगी के हर रंग से मोहब्बत है चाहे वो उजला हो या स्याह...

4 comments:

Sudha Devrani said...

बहुत खूब...
जो भाव स्व है उसी का नाम तो स्वभाव है. उससे कोई बाहर कैसे निकले भला।
बहुत सटीक एवं सार्थक सृजन ।

सप्तरंग said...

मैम, पढ़ कर ऐसा महसूस हुआ मानों आपने मेरी पीड़ा को बयान किया हो... अद्भुत 💙

Anhad Naad said...

बहुत खूब !

Shekhar Suman said...

बेहतरीन