-कृष्ण बिहारी नूर
और क्या जुर्म है पता ही नहीं
इतने हिस्सों में बट गया हूँ मैं
मेरे हिस्से में कुछ बचा ही नहीं
ज़िंदगी मौत तेरी मंज़िल है
दूसरा कोई रस्ता ही नहीं
सच घटे या बढ़े तो सच न रहे
झूट की कोई इंतिहा ही नहीं
ज़िंदगी अब बता कहाँ जाएँ
ज़हर बाज़ार में मिला ही नहीं
जिस के कारन फ़साद होते हैं
उस का कोई अता-पता ही नहीं
कैसे अवतार कैसे पैग़मबर
ऐसा लगता है अब ख़ुदा ही नहीं
चाहे सोने के फ़्रेम में जड़ दो
आईना झूट बोलता ही नहीं
अपनी रचनाओं में वो ज़िंदा है
'नूर' संसार से गया ही नहीं.
मेरे हिस्से में कुछ बचा ही नहीं
ज़िंदगी मौत तेरी मंज़िल है
दूसरा कोई रस्ता ही नहीं
सच घटे या बढ़े तो सच न रहे
झूट की कोई इंतिहा ही नहीं
ज़िंदगी अब बता कहाँ जाएँ
ज़हर बाज़ार में मिला ही नहीं
जिस के कारन फ़साद होते हैं
उस का कोई अता-पता ही नहीं
कैसे अवतार कैसे पैग़मबर
ऐसा लगता है अब ख़ुदा ही नहीं
चाहे सोने के फ़्रेम में जड़ दो
आईना झूट बोलता ही नहीं
अपनी रचनाओं में वो ज़िंदा है
'नूर' संसार से गया ही नहीं.
12 comments:
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा 8.4.2021 को चर्चा मंच पर होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
धन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" ( 2092...अनिश्चिताओं के घन हो चले हैं भारी... ) पर गुरुवार 08 अप्रैल 2021 को साझा की गई है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
इतने हिस्सों में बट गया हूँ मैं
मेरे हिस्से में कुछ बचा ही नहीं
- बिलकुल ठीक कहा - स्थिति यही है .
सुन्दर गीतिका।
खूबसूरत ग़ज़ल लायी हैं ।
बेहतरीन लेखन
जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज गुरुवार (०८-०४-२०२१) को (चर्चा अंक-४०३०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
बहुत सुंदर रचना।
वाह बेहतरीन 👌
आहा....शुजात खान ने क्या गाया है सितार के साथ सुनिएगा ।
वाह शानदार ग़ज़ल एक एक शेर जड़ाऊ ।
बेमिसाल।
सुन्दर प्रस्तुति
Post a Comment