Wednesday, July 29, 2020

खिलना और झरना


उगना ही झरना है, सुबह ही शाम है, रात ही में दिन छुपा है, उदासी सुख का ही दूसरा रूप है. जब फूल को देखते हैं तब हमें जड़ें नहीं दिखतीं. यह जड़ें नहीं दिखना ही कारण है दुःख का. यानी दुःख दुखना नहीं है, दिखना है. इन दिनों जीवन बहुत करीब आया हुआ लगता है. बहुत करीब, जैसे काँधे से सटकर बैठा हो. 

बोलती कम हूँ इन दिनों. अब सुनना भी कम होता जा रहा है. बात सुनती हूँ, आवाज नहीं. दिल की धडकनें कैसे बिना शोर किये हजारों मील की दूरी पार कर सुनाई दे जाती है और नहीं सुनाई देती पास में घनघनाते फोन की घंटी. 

जीवन की मेहरबानी है. वो न जाने कितने रास्तों से चलकर आता है. कई बार मृत्यु के रास्ते भी चलते हुए वो हम तक आता है. कभी भय के रास्ते भी. लेकिन वो आता है और यही सच है. दिक्कत सिर्फ इतनी है कि हम उसी के इंतजार में कलपते रहते हैं जो हमारे बेहद करीब है. यानी जीवन, यानी प्रेम. वो तो कहीं गया ही नहीं, और हम उसे तलाशते फिर रहे हैं. कारण हम जीवन को पहचानते नहीं.

जीवन फाया कुन है...जिस मृत्यु का डर है, जिस मृत्यु से डर है वो बिना जीवन आये कैसे आएगी...तो मृत्यु से डरने से पहले खुद से पूछना जरा कि जिंदा हो क्या? सिर्फ साँसों के बूते जवाब मत तलाशना...जीवन के बारे में सांसें नहीं बतायेंगी, जीवन खुद बतायेगा जैसे मृत्यु के बारे में वो खुद बतायेगी...

जीना जीने से आता है...मरना मरे बगैर भी आ ही जाता है कि एक ही ज़िन्दगी में कितनी बार तो मरते हैं हम. शायद जितना जीते हैं उससे भी ज्यादा. क्या लगता है?

खिलना और झरना एक साथ देखते हुए जीना सीख रही हूँ...

8 comments:

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 30.7.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
धन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क

Onkar said...

बहुत सुन्दर

Ravindra Singh Yadav said...

नमस्ते,

आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 30 जुलाई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!


Onkar said...

बहुत सुन्दर

anita _sudhir said...

मार्मिक सत्य

Rakesh said...

बहुत सुंदर

Rakesh said...

सुन्दर

Anuradha chauhan said...

बेहद हृदयस्पर्शी