Sunday, December 18, 2016

तुम्हारी याद स्थगित है इन दिनों...



सुनो, अब मुझे तुम्हारी याद नहीं आती
न, ज़रा भी नहीं

अब मेरी पलकों में
याद की कोई बदली नहीं अटकी रहती
न भीतर मचलता है
रोकी हुई सिसकियों का कोई तूफ़ान
मुस्कुराती हूँ जी भर के
और तुम्हारी याद को कहती हूँ, 'फिर कभी'

अब मैं फूलों की पंखुरियों में
तुम्हारा चेहरा नहीं तलाशती
न ही हवाओं की सरगोशियों में
तुम्हारी छुअन को महसूस करती हूँ
अब मैं परिंदों को नहीं सुनाती
तुम्हारे और मेरे प्यार के किस्से
उन लम्हों की दास्ताँ
जो हमने साथ जिए थे

अब बारिशों को देख
तुम्हारे साथ भीगे पलों को याद नहीं करती
न दिसम्बर की सर्द रातों में
तुम्हारी हथेलियों की गर्माहट याद करती हूँ

सुनो, अब मुझे तुम्हारी याद नहीं आती
जरा भी नहीं

रसोई में कुछ भी बनाते समय
अब नहीं सोचती तुम्हारी प्रिय चीज़ों के बारे में
न घर से निकलने से पहले
चुनती हूँ तुम्हारी पसंद के रंग
मौसम कोई भी हो,
तुम्हारा यह कहना कभी याद नहीं करती
कि 'सारे मौसम तुम ही तो हो...
प्रेम की आंच में धधकती गर्मियां हों,
बौराया बसंत, या शरारती शरद..'

देखो न, मैने कितनी आसानी से तुम्हारी याद को
चाँद की खूँटी पे टांग दिया है

तुम कहते थे 'सिर्फ याद न किया करो
कुछ काम भी किया करो.'
तो अब काम करती हूँ हर वक़्त
कि तुम्हें याद करने का काम स्थगित है इन दिनों

मुझे सब पता है देश दुनिया के बारे में
पड़ोस वाली आंटी की बेटे के विवाहेतर सम्बंध से लेकर
भारत में नोटबंदी और
अमेरिका में ट्रम्प की जीत तक के बारे में
मुझे सब्जियों के दाम पता हैं आजकल
सच कहती हूँ, इन सबके बीच तुम्हारी याद कहीं नहीं

हालाँकि घर से ऑफिस और ऑफिस से घर के बीच
किसी भी मोड़ पे तुम्हारा चेहरा दिख जाना
मुसलसल जारी है
फिर भी मैं तुम्हें याद नहीं करती...

जिन रास्तों ने पलकों से छलकती तुम्हारी याद को सहेजा था
वो अब मुझे देखकर मुस्कुराते हैं
उनकी चौड़ी हथेलियों पर मुस्कुराहट रख देती हूँ
जाने कैसे वो मुस्कुराहट तुम्हारा चेहरा बन जाती है
मैं तो तुम्हें दिन के किसी भी लम्हे में याद नहीं करती
फिर भी...



4 comments:

Onkar said...

बहुत सुन्दर

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (19-12-2016) को "तुम्हारी याद स्थगित है इन दिनों" (चर्चा अंक-2561) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Sadhana Vaid said...

इतनी शिद्दत से याद करने और उसे नकारने की यह अदा बहुत पसंद आई ! बहुत प्यारी अभिव्यक्ति !

जसवंत लोधी said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है 'शांत मन की भावनाए ।