हर साल 17 जून हाथ पकडकर मुझे ढेर सारी स्मृतियों में लेकर जाता है. नन्ही उम्र की एक छोटे भाई की हसरत जो पूरी हुई थी इस रोज. पहली बार जब अस्पताल में मेरे नन्हे हाथों ने तुम्हें उठाया था. पहली बार हथेलियों में तुम्हारा चेहरा खिला था.
कामकाजी माँ की व्यस्तताओं ने हमें एक-दूसरे के और करीब किया. लड़ने-झगड़ने, प्यार करने, शैतानियाँ करने और मम्मी से एक-दुसरे की शिकायतें करने में कोई कसर नहीं छोड़ी हमने. फैंसी ड्रेस में पार्टिसिपेट करने को तुम्हें तैयार करना हो या स्कूल से साइकिल पर बिठाकर घर लाना जिन्दगी कितनी मजेदार थी. गर्मी की छुट्टियाँ एक कमरे वाले बिना कूलर वाले घर में बाज़ार खेलते हुए बिताते हुए कभी कोई कमी तो महसूस नहीं हुई. घर में पहले फ्रिज, पहले टेपरिकॉर्डर, पहले टीवी, कूलर आने की ख़ुशी हमने मिलकर सेलिब्रेट की.हमने पापा के लेम्ब्रेटा पर सपरिवार घुमाई की.
तुम हमेशा से मेरे फेवरेट हो. आज जब तुम परेशानियों में मजबूत छाया की तरह खड़े होते हो न तो बहुत सुख होता है. तुम्हारा जन्मदिन मेरे लिए तमाम त्योहारों से बहुत बड़ा है. तुम्हारा होना मुझे इत्मिनान से भरता है. भाइयों को ऐसा ही होना चाहिए.अपने होने से मुक्त रखते हुए अपने होने की ताकत से भरने वाला और अपने कदमों पर भरोसा बना सकने लायक बनने को प्रेरित करने वाला.
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