वो रोज खुशबुओं के गुच्छे उतारकर लाती और उन्हें घर के हर कोने में लटका देती. खुशबुओं के उन गुच्छों को हर रोज एक नया रंग देती. कभी गुलाबी रंग वाला गुच्छा बाहर वाले कमरे के ठीक सामने टांग देती और बैंगनी रंग का गुच्छा रसोई में. सफेद रंग की खुशबू वो अपने सोने के कमरे में ले जाती और और दीवारों से लेकर छत तक, खिडकियों से लेकर फर्श तक बिखरा देती. सोने के कमरे में कोई बिस्तर नहीं था...सफेद फूलों की खुशबू जमीन पर बिखराकर वो खुद भी जमीन पर बिखर जाती....कभी-कभी खुशबुएं अपना रंग बदलतीं, जगह बदलतीं. हवाओं में हलचल होती और वे उठकर एक कमरे से उठकर दूसरे कमरे की ओर चल पडतीं. सुर्ख रंग की खुशबू अमूमन दरवाजे पर टंगी होती थी और बडी हसरत से सफेद खुशबू वाले कमरे की ओर देखती थी.
एक रोज लडकी सारी खुशबुओं को समेटकर बैठी थी. सुर्ख भी, सफेद भी, गुलाबी भी, नारंगी भी....उसने खुशबुओं के चेहरों पर अपना हाथ फिराया और पल भर में उनकी पहचान गुम हो गई. सारी खुशबुएं उसकी हथेलियों में उतर आईं और रंग वहीं बेजान से पडे रहे...लड़की वक्त के दरख्त पर पीले रंग की खुशबू तलाश रही थी...वो खुशबू जिसमें राग यमन की सी मिठास होती थी और गंगा की लहरों सी शान्ति. वो तलाशती रही....उसकी आंखों में गंगा यमुना, ब्रहृमपुत्र, गोदावरी, कावेरी सब की सब उतर आईं. अपनी खुशबू भरी हथेलियों से उसने उन नदियों को साधना चाहा लेकिन नहीं साध पाई...उसकी हथेली में सिमटी हुई सारी खुशबुएं नदियों में बह गईं...हर नदी का पानी महकने लगा...लेकिन लडकी की हथेलियां भी सूनी हो गईं, आखें भी और घर भी....
लडकी का मन हल्का हो रहा था. अपनी आंखों से प्रवाहित होने वाली नदियों में उसने समस्त इच्छाओं का तर्पण जो कर दिया था...नदियों के पानी में उसके अवसाद का नीला रंग घुल गया. खुशबू के साथ अवसाद के नीले रंग का मेल किसी नई कंपोजिशन सा मालूम होता.
बिना खुशबू वाले उस घर से उस रोज पहली बार चंदन की खुशबू आती लोगों ने महसूस की...लडकी फिर कभी नहीं दिखी ऐसा लोग कहते हैं, हालाँकि खुशबू और नदियां हमेशा उसके होने का ऐलान करती हैं...