Sunday, April 19, 2020

वो मिले मुझे


एक पत्ती मिली
उसके हरे में थोड़ा कत्थई घुलने लगा था
डाल मजबूती से पकड़ी हुई थी उसने
वो पत्ती मेरी उम्र की होगी शायद

एक तितली मिली
वो फूलों के ऊपर चक्कर काट रही थी
खुश लग रही थी,
उदास तितली कभी मिली नहीं मुझे
या मुझे तितलियों की उदासी
पढनी आती नहीं

एक पंछी मिला
वो मुझसे मिलने आया था
उसने शायद पढ़ी थी विनोद कुमार शुक्ल की कविता
और वो मुझसे मिलने आया
क्योंकि मैं उससे मिलने नहीं गयी
वो अपने साथ नदी क्यों नहीं लाया?

एक सडक मिली मुझे
जो कहीं नहीं जाती थी
एक मौसम मिला
जो अपने तमाम वैभव के बावजूद
मुस्कुराहट गुमा आया था कहीं

एक बच्चा मिला जो
जिसका बचपन खो गया था
वो उसे ढूंढ भी नहीं रहा था

एक आईना मिला
जिसने झूठ बोलना सीख लिया था...

4 comments:

कविता रावत said...

कुछ न कुछ सीख छुपी रहती है हर चीज में बस देखने के लिए आंखे चाहिए उस तरह की
बहुत अच्छी रचना

Sudha Devrani said...

वाह!!!
कमाल का सृजन...अद्भुत...
लाजवाब।

रेणु said...

वाह!!!!!! 👌👌👌👌👌

अनिता मिश्रा said...

बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण ।