- मोनिका भंडारी
दैनिक जीवन मे पढ़ने लिखने की आदत निजी और पेशेवर तौर पर आज की टेली कान्फ्रेंस की बातचीत इसी पर आधारित थी और इस बातचीत को हमारे बीच रखने के लिए दो उम्दा शख्सियतें आई थी. प्रतिभा कटियार जी और रेखा चमोली जी. बातचीत की शुरुआत अशोक जी ने की तथा आज की बातचीत का संदर्भ रखा. इसके बाद श्वेता जी ने दोनों लेखिकाओं का स्वागत किया. श्वेता ने कहा कि पढ़े लिखे शिक्षक होने के साथ साथ पढ़ते लिखते शिक्षक होना जरूरी है. इसके बाद दोनों लेखिकाओं के परिचय के लिए जाने माने साहित्यकार एवं शिक्षक मनोहर चमोली मनु को आमंत्रित किया गया. मनु सर ने प्रतिभा जी का परिचय देते हुए बताया कि ये गंगा जमुनी संस्कृति को जीने वाली लेखिका हैं. वर्तमान में अजीम प्रेमजी फाउंडेशन से जुड़ी हुई हैं. ये हिंदी, इंग्लिश दोनों भाषाओं की कलम कार हैं. ये डायरी, ब्लॉग लिखती हैं तथा संपादन भी करती हैं. ये विचारवान हैं तथा दुनिया को संवारना चाहती हैं.
वहीं रेखा जी का परिचय देते हुए मनु सर ने कहा कि वे कर्णप्रयाग में जन्मी हैं तथा इनकी लेखनी मे मिट्टी, पानी, पहाड़ का यथार्थ झलकता है. ये वर्तमान में नौनिहालों के बीच उत्तरकाशी मे बहुत बढ़िया काम कर रही हैं.परिचय को समेटते हुए मनु सर ने कहा कि दोनों ही अपने क्षेत्र में संवैधानिक मूल्यों के साथ खड़ी हैं बराबरी और समानता के सपने बुनती हैं और साकार करना चाहती हैं.
परिचय सत्र के बाद प्रतिभा जी सबसे मुखातिब हुईं. लगभग 92 लोग इस कॉन्फ्रेंस मे शामिल थे.4:30 बजे से शुरू हुई ये बातचीत अब प्रतिभा जी आगे बढ़ा रही थी. प्रतिभा जी ने अपनी बातचीत आज के चुनौती पूर्ण समय को लेकर शुरु की. उन्होंने कहा कि आज के लॉक डाउन के समय में पढ़ने लिखने पर बातचीत करना एक अच्छा विषय है. लेकिन वो कहती हैं की पढ़ने लिखने की बातचीत अलग से क्यों की जाए? यह तो हमारे जीवन का हिस्सा होना चाहिए. सबसे जरूरी है कि हम क्या और कैसे पढ़ते हैं? उन्होंने कहा कि आजकल उन्होंने फिर से पहले पढ़ी हुई किताबें पढ़ी हैं और हर बार उन्हे पिछली बार से अलग लगता है अपना पढ़ा हुआ. उनका मानना था कि पढ़ने से हर बार कुछ नया महसूस होता है. प्रतिभा बड़ी गहरी बात कहती हैं कि पढ़ना हर बार खुद को जानने और तराशने जैसा है. प्रतिभा की विशेषता है कि वो बहुत गहरी बात भी सहजता से कह जाती हैं. कहती हैं कि हर शब्द की एक अलग यात्रा है. उन्होंने जोड़ा कि आजकल मदद, परोपकार, संवेदना जैसे शब्द प्रचलन मे बहुत हैं लेकिन इसका अर्थ सिर्फ एक हाथ देने वाला तथा एक हाथ लेने वाला सा लगता है. यह सिर्फ आर्थिक मसला नही है, क्यों नहीं हम उनके साथ खड़े हो जाते? प्रतिभा कहती हैं ये संवेदना भी साहित्य पढ़ने से आती है. साहित्य हमें बदलना सिखाता है. पाठक के तौर पर साहित्य हमे समृद्ध करता है. प्रतिभा का मन प्रकृति मे भी रमता है जब हम उनको पढ़ते हैं तो हम महसूस कर सकते हैं कि वो प्रकृति के बहुत करीब हैं. नदी, बारिश, पेड़, सब उनके दिल से होकर गुजरता है. वे कहती हैं कि हमारे अंदर जो नदी है साहित्य उसे सूखने नहीं देता. कहती हैं साहित्य और प्रकृति कभी भेद nhi करती. शिक्षा मे भी भेद नहीं होने चाहिए. उन्होंने लाल बहादुर वर्मा जी का जिक्र करते हुए कहा कि उनकी एक बात उन्हे बड़ी अच्छी लगी कि धरती उन शिक्षकों को ज्यादा प्यार करती है. जो धरती से प्यार करते हैं क्योंकि जो बच्चे इन शिक्षकों के बीच से होकर गुजरेंगे वो सही मायनों मे मनुष्य होंगे.
साहित्य पढ़ने की आदत कैसे हो इस बात पर प्रतिभा जी ने कहा कि आजकल कई लोगों को फेसबुक और whatsaap पर पढ़ना पसंद होता है लेकिन वो कहती हैं कि ये पसंद का क्षेत्र होता है. कुछ और कहीं पढ़ने मे मजा आता है कहीं नहीं भी आता.ये चस्का लगने जैसा है कहती हैं मुझे विरासत मे अपने पापा से पढ़ना लिखना मिला है और कई लोग हैं जिनको पढ़ने की आदत मे शामिल करने के लिए हाथ बढ़ाने की जरुरत है. उन्होंने अपना अनुभव बताया कि उनके पापा किताबें घर पे लाया करते थे. कोई रूसी किताब और पिता के पत्र पुत्री के नाम जैसी किताबें बचपन में पढ़ ली थी और उनके पिता उन किताबों पर बातचीत किया करते थे. वो मानती हैं कि यही बात जरूरी है कि बच्चों के साथ बातचीत करें, सवाल जवाब करें.पढ़ने के बाद यदि बच्चे हमें कहीं पर गलत साबित करते हैं तो ये बहुत अच्छा है. वो कहती हैं कि किताबों से प्यार करना जरूरी है. उनको साहित्य से प्यार था और आज तक चल रहा है.
वो ये भी कहती हैं कि किताबें हमें बदलती है. साहित्य हमें नजरिया देता है. चित्रलेखा किताब का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि ये सबको पढ़नी चाहिए. यदि हम किसी चीज को नहीं मानते तो उसको ना मानने के जो कारण हैं उसको जानने के लिए हमें और ज्यादा उसे पढ़ना पड़ेगा.उन्होंने उन शिक्षकों के बारे मे भी बात की जो अपनी कक्षाओं मे साहित्य के साथ शिक्षण कर रहे हैं. और बच्चों को प्यार के साथ सिखा रहे हैं. यहीं पर प्रतिभा जी ने अपनी बात समाप्त की और रेखा जी को अपनी बात रखने के लिए कहा.
रेखा जी ने अपनी बात शुरु करते हुए कहा कि प्रतिभा को सुनना किसी लंबी "प्रेम कविता "को सुनने जैसा है. उन्होंने अपनी चिर परिचित अंदाज में संवाद से जुड़ने के लिए सबका शुक्रिया अदा किया और कहा कि उन्हे प्रतिभा की बातों से सहमति है.. रेखा जी ने कहा कि एक शिक्षिका होने के नाते मै शिक्षकों के पढ़ने लिखने की बातें करूँगी.रेखा जी भी बहुत सहज शब्दों मे अपनी बातें रखती हैं जो कि हमें अक्सर अपने दिल के करीब लगता है. उन्होंने कहा कि जैसे किसी दुकान या व्यवसाय को सजाने सँवारने के लिए कुछ टूल्स की जरूरत होती है उसी तरह कक्षा शिक्षण मे भी नई चीजें, आनी चाहिए जैसे किताबें, साहित्य, जो कुछ भी देश, दुनिया मे लिखा या बुना गया है उसे बच्चों के बीच मे आना जरुरी है. वो कहती हैं कि मैं किसी विषय विशेष की नहीं बल्कि व्यापक रूप से इस बात को देखती हूँ. बच्चा हमारे पास आता है और कुछ समय बाद जब वो जाता है उस पूरी प्रकिया मे उसके बीच हम क्या करते हैं ये जरुरी है.रेखा बच्चों के साथ बहुत शिद्दत से जुड़ी हुई हैं उनकी छोटी सी बात को भी महसूस करती हैं. उन्होंने कहा कि जिस शिक्षक ने तोतोचान पढ़ी होगी, यदि उसकी कक्षा मे कोई ऐसा अलग सा बच्चा आता है तो वो उसको शरारती और बिगड़ा हुआ घोषित करने से पहले रुककर सोचेगा कि ये बच्चा क्या कहना चाहता है?. इसी तरह जिसने पहला अध्यापक पढ़ी है वो खुद से सवाल करना सीखता है. वो सीखता है कि क्या नये तरीके हैं सीखने और सिखाने के? वो सहजता से कहती जाती हैं कि जरुरी नही कि 100 लोगों द्वारा किया जाने वाला काम सही है और 10 लोगों द्वारा किया जाने वाला गलत.
कहती हैं कि आज की शिक्षा प्रणाली सही नही है कहीं ना कहीं इसमें गड़बड़ है वरना आज हम ऐसी दुनिया ना तैयार कर रहे होते. साहित्य के बारे मे उनका कहना था कि कोई शिक्षक जब पढ़ता है तो वह सवाल करना सीखता है. पढ़ना सीधे हाँ या ना को नही उसके बीच की तमाम बातों को जगह देता है. फेसबुक और सोशल मीडिया की सामग्री को एकदम से आत्मसात करने पर उन्होंने असहमति जातायी. कहा कि इस तरह की सामग्री पर सोच समझ कर विश्वास करने की जरुरत है.. वो कहती हैं की यदि हम पढ़ते लिखते शिक्षक होंगे तो कक्षा मे हमारा नजरिया बिल्कुल अलग होगा. हम चीजों, लोगों और घटनाओं को लेकर पूर्वाग्रहों से ग्रसित नहीं होंगे.
अपनी बेबाक शैली मे उन्होंने अपने अनुभव भी सुनाए. अपनी 9 वी कक्षा में पढ़ी गयी किताब अपने अपने राम का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि किसी किताब की कहानी, पात्र, कथानक का प्रभाव आपको बदल देता है. और आप पूर्वाग्रहों से मुक्त हो जाते हैं. कोई आपके बारे मे क्या सोचता है फिर आपको कोई फर्क नहीं पड़ता. आप खुद पर भरोसा करने लगते हैं. कुल मिलाकर आप एक स्वतंत्र व्यक्तित्व वाले शिक्षक बन जाते हैं. यह बात मुझे भी महत्वपूर्ण लगी. बात आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि हमारे बच्चों को पढ़ने की सामग्री और अवसर कम मिलते हैं. घरों में कोई ऐसी छपी हुई सामग्री नहीं होती जिसे वो पढ़ सकें. ऐसे में हमारी और जिम्मेदारी बन जाती है कि बच्चों को पढ़ने लिखने से जोड़ा जाए. हमें ऐसा माहौल बनाना होता है कि बच्चे खुद पढ़ने लग जाएं. बच्चों के साथ चित्र, चित्रकथा अनुभव खेल पर बात करना जरुरी है.
एक अनुभव सुनाते हुए कहा कि एक बच्ची चीनी के लिए दस रुपए ले कर आई है पर वो चुप है कि पैसे लाने पर डांट ना पड़े. लेकिन जब उससे इस बारे मे बात की तो उसे महसूस हुआ कि उसकी दस रुपए की चीनी भी उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी किसी और की. कविता छह साल की छोकरी पर भी उन्होंने अपनी बात रखी. बोली कि बच्चों को चयन का अधिकार होना चाहिए. बच्चों को स्वतन्त्र छोड़ना जरुरी है लेकिन पहले उनसे बात करना जरूरी है. फिर वे चीजों को अपना समझते हैं और तोड़ फोड़ नहीं करते. पढ़ने के बाद प्रस्तुतिकरण भी जरूरी है. बच्चों ने क्या पढ़ा कितना पढ़ा उसे अपने साथियों से साझा करना भी जरूरी है. पढ़ने की खुशी बच्चे बांटना चाहते हैं और ये टीचर के लिए प्रेरणा हो सकते हैं. इसके बाद रेखा जी ने दीवार पत्रिका पर भी बात की. कहा कि विषय का चयन चित्र बनाना लिखना यदि बच्चे सीख गए तो बड़ी बात है. अंत मे उन्होंने अपनी बात को समेटा और कहा कि शिक्षक के काम मे निरंतरता जरूरी है.रेखा जी की बात समाप्त होने के बाद सवाल जवाब का दौर शुरू हुआ.
शिक्षक साथियों की तरफ से आये सवालों को मुदित जी ने रखा. एक प्रश्न था कि बच्चों मे पढ़ने की आदत कैसे डालें? जवाब मे रेखा जी ने कहा कि यदि हमारे घर मे खूब सारी किताबें हैं तो बच्चों को उनके साथ जोड़ा जा सकता है. उनसे बात करके किताबों के कुछ पन्ने पढ़के किताब के प्रति रुचि जगाई जा सकती है.
दूसरा प्रश्न था कि एक ही तरह का साहित्य पढ़ना सही है या नहीँ ? उत्तर था कि नही हमे अलग अलग तरह का साहित्य पढ़ना जरुरी है. प्रतिभा जी ने कहा कि हमें एक ही विचार का साहित्य ना पढ़कर बहुत तरह का पढ़ना चाहिए. जैसे यदि मुझे धर्म मे विश्वास नही तो उसको सिद्ध करने के लिए मुझे और ज्यादा पढ़ना होगा जिससे हम उन चीजों को और अच्छे से जान पाएँ. अगला प्रश्न था कि बहुत से लोग पढ़ने को एकाकी प्रक्रिया मानते हैं जबकि ये समाज मे सीखा जाता है. और हमारी जिम्मेदारी है कि हम सीखे हुए को समाज को वापिस करें तो कैसे ये समाज का हिस्सा ban सकता है? यह एक महत्वपूर्ण सवाल था लेकिन रेखा जी ने अपने धैर्य वान सहज शब्दों मे उत्तर दिया कि भले ही हम स्वयं की रुचि से एकांत में पढ़ना पसंद करते हैं लेकिन पढ़ने के बाद हम जैसे मनुष्य बनते हैं उसी सोच और समझ के साथ हम समाज मे व्यवहार करते हैं. फिर एक प्रश्न था कि पढ़ने लिखने में कैसे सब्जेक्विटी और जजमेंटल होने से बचा जा सकता है? तो रेखा जी ने जवाब दिया कि हमारी सजगता ही हमें इनसे बचा सकती है.. इसके बाद समूह मे शिक्षण पर प्रश्न पूछे गए जिनका जवाब रेखा जी ने अपने कक्षा शिक्षण के अनुभव और उदाहरण दे कर दिया. इसी रोचक बातचीत के साथ समय सीमा भी खत्म होने पर थी. सभी साथी ध्यान से संवाद सुन रहे थे. पूरी बातचीत कहीं ना कहीं दिल के करीब थी क्योंकि हम ऐसी शिक्षिकाओं को सुन रहे जो हम जैसे ही बच्चों के बीच काम कर रहीं थीं और उन्हीं चुनौतियों को बीच जो हम सबके सामने होती हैं.. आज के इन दोनों मेहमानों को सुनना बहुत सुखद रहा. पढ़ते लिखते रहना क्यों जरुरी है एक शिक्षक के तौर पर ये जान पाना मेरे और मेरे ही जैसे अनेक शिक्षकों के लिए महत्वपूर्ण रहा.
पूरी बातचीत को अंत मे जगमोहन कठैत जी ने समेकित किया.6:15 बजे तक पूरी वार्ता चली और सबने सुनी.
कठैत सर ने सबका धन्यवाद किया और कहा कि कक्षा के ये अनुभव बहुत काम के रहे.
इसी के साथ सबने विदा ली.
26 अप्रैल 2020.
कठैत सर ने सबका धन्यवाद किया और कहा कि कक्षा के ये अनुभव बहुत काम के रहे.
इसी के साथ सबने विदा ली.
26 अप्रैल 2020.
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