Sunday, January 30, 2022

पुकार लेना बारिश


कई बार चाहा अपना नाम बदल लूं, नदी रख लूं अपना नाम. कभी जी करता कोई बारिश कहकर पुकारे तो एक बार. बहुत दिल चाहता कोई गुलमोहर कहता कभी. कभी मौसम कहकर पुकारे जाने का दिल चाहता कभी गौरेया, कभी तितली, कभी धान, कभी सरसों कभी रहट. मैं अपने बहुत सारे नाम रखना चाहती थी, लेकिन मेरा एक नाम रखा जा चुका था लिहाजा उसी नाम की परवरिश करने लगी, धीरे-धीरे उसी नाम को प्यार भी करने लगी.
भाषा की दुनिया में मेरे नाम का अर्थ जो भी रहा हो मेरे लिए मेरे नाम का अर्थ अब भी वही है जो कुदरत के रंग हैं।

मैं जो अपने बारे में बताना चाहती थी, उसे सुनने में किसी को कोई दिलचस्पी नहीं थी। लोग वही सुनना चाहते हैं जो वो सुनना चाहते हैं। इसलिए बचपन से हमें वही बोलने की प्रैक्टिस करवाई जाती है, जो लोग सुनना चाहते हैं। बहुत सारी जिंदगी जी चुकने के बाद हमें समझ में आता वो जो हम रहे हैं अब तक वो तो कोई और था, जो मुझमें जीकर चला गया।

मेरे भीतर कोई और जीकर न चला जाए इसकी पूरी कोशिश करती हूँ तुम भी देना मेरा साथ इस कोशिश में इसलिए जब पुकारना मेरा नाम तो पुकार लेना बारिश...

10 comments:

Ravindra Singh Yadav said...

नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (31-01-2022 ) को 'लूट रहे भोली जनता को, बनकर जन-गण के रखवाले' (चर्चा अंक 4327) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

#रवीन्द्र_सिंह_यादव

Anita said...

वाह! बारिश की तरह ही आपकी शब्द वर्षा न जाने कितने सूखे हुए दिलों को हरा भरा कर देगी, उनकी हरियाली को सोंधी ख़ुशबू किसी न किसी तरह आप तक पहुँच ही जाएगी

अनीता सैनी said...

बहुत ही सुंदर हृदयस्पर्श सृजन।

भावों की एकरूपता सी लगी
"मेरे भीतर कोई और जीकर न चला जाए इसकी पूरी कोशिश करती हूँ "

मन की वीणा said...

अद्भुत! मैं बरखा दी कह रही हूँ आपको आप मुझे झील कहकर पुकारना।
अप्रतिम अभिनव अद्वितीय!!!

Manisha Goswami said...

वाह बहुत ही अद्भुत वा उम्दा रचना!
हमारे भीतर कोई और चिकन ना चला जाए
वाह क्या बात कही आपने!चंद शब्दों में आपने जिंदगी को जीने का एक नया नजरिया दे दिया!
हर पल खुल कर जिओ अपनी जिंदगी अपने तरीके से जियो... क्योंकि जिंदगी ना मिलेगी दोबारा

Kamini Sinha said...

लोग वही सुनना चाहते हैं जो वो सुनना चाहते हैं। इसलिए बचपन से हमें वही बोलने की प्रैक्टिस करवाई जाती है, जो लोग सुनना चाहते हैं। बहुत सारी जिंदगी जी चुकने के बाद हमें समझ में आता वो जो हम रहे हैं अब तक वो तो कोई और था, जो मुझमें जीकर चला गया।

सही कहा आपने, जीवन के आखिरी पड़ाव पर महसूस हो रहा है मुझमें तो कोई और जी रहा है..
बहुत खूब... सादर नमस्कार आपको

दीपक कुमार भानरे said...

उम्दा सृजन आदरणीय ।

शुभा said...

वाह!बहुत खूब!

Bharti Das said...

बहुत ही सुन्दर रचना

kalpanathjaeckle said...

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