Thursday, January 6, 2022

एक नर्म खुशबू के घेरे में हूँ





दिल की धड़कनें इतनी तेज हैं कि लगता है अभी दिल उछल कर बाहर आ जायेगा. नब्ज़ थमी सी है. आँखें नम हैं. सारी रात नींद नहीं आई. भूख भी गुल है. पेट में चक्का सा घूम रहा है. क्या किताब आने पर ऐसा होता है?

कैसा मीठा सा अनुभव है जो संभल नहीं रहा. बिटिया हाथ थामे बैठी है. बिटिया की प्रति आ गयी है. मेरी लेखकीय प्रति अभी रास्ते में है. मैं उसे देर तक देखने के बाद हौले से छूती हूँ तो रुकी हुई रुलाई और रुकने से इंकार कर देती है.

किताबें दोस्तों तक पहुँचने लगी हैं. दोस्तों का कहना है किताब को देखते ही जाने को जी करता है इतनी सुंदर है यह. मैं सब सुनकर कहीं छुप जाना चाहती हूँ. छलक पड़ती हूँ.

जब लिखे जा रहे थे ये खत तब क्या पता था कि इस तरह सहेज लिए जायेंगे. जब लिख रही थी तब इसलिए लिख रही थी कि लिखना सांस लेने के लिए जरूरी था. अब जब ये संकलित होकर सामने रखे मुस्कुरा रहे हैं तब दिल की धड़कनें बेकाबू हो रही हैं. ऐसी हरारत, ऐसी बेचैनी तो महबूब से मिलने के वक़्त भी न हुई...
प्रकाशक ने कठिन दिनों के प्रेम पत्रों को प्रेम से ही सहेजा है और यह भी उनकी खूबी है कि किताबें अपने चाहने वालों के घर के पते की ओर तुरंत निकल पड़ी हैं...

मुझे तो कुछ सूझ नहीं रहा कि सहमे हाथों से छूती हूँ किताब को, टटोलती हूँ लिखे गए पत्रों को जैसे बाद मुद्दत अपना ही चेहरा टटोल रही हूँ...यह एहसास कितना अद्भुत है...किताब की ख़ुशबू में तर-ब-तर दिल की धड़कनों को समेट लूं जरा, तब तक आप अपनी प्रतियों का इंतज़ार करिए. पहुँचती होंगी...

1 comment:

कविता रावत said...

बहुत अच्छा लगता हैं उन दिनों में फिर से खो जाना और वही प्रेम महसूस करना
हार्दिक शुभकामनाएं