Sunday, January 23, 2022

कहानी- अरुणिमा


- प्रतिभा कटियार

हरसिंगार के फूल हथेलियों में भरकर अरुणिमा के ऊपर गिराने में तरुण को जितना सुख मिलता अरुणिमा को उससे ज्यादा सुख मिलता कभी ठंडा पानी, कभी बर्फ के टुकड़े तरुण पर उछालकर. जब तरुण उसे धप्पा देने के लिए उसके पीछे भागता तो आगे भागती खिलखिलाती अरुणिमा की आभा पूरे घर में बिखर जाती. दोनों की जान बसती है एक दूसरे में. बहुत प्यार करता है तरुण अरुणिमा को और अरुणिमा तरुण को. हालाँकि वो तरुण के मुकाबले थोड़ा कम प्यार करती है तरुण को ऐसा वह खुद मानती है क्योंकि उसे लगता है वह थोडा सा प्यार खुद से भी करती है यह इनके प्रेम का शुरूआती दौर नहीं है. क्योंकि शुरूआती दौर की प्रेम कहानियों में तो ऐसे ही छलकता है प्रेम यह सामान्य बात है. लेकिन तरुण और अरुणिमा की यह प्रेम कहानी है 32 बरस पुरानी. पुरानी मतलब बीत नहीं चुकी चल रही है 32 बरसों से.

पूरे दो बरस बाद अपरिमित वापस आने वाला है. हालाँकि जीवन में आये तो उसे 28 बरस हो चुके हैं. पढ़ाई के लिए ऑस्ट्रेलिया गया था दो बरस बाद घर लौट रहा है. उसकी वापसी पर होना तो ख़ुशी का माहौल था लेकिन छाई उलझन, चिंता और बेचैनी है. हालाँकि यह सब तरुण की तरफ से ही है जिसे देख अरुणिमा को गुस्सा आ रहा है कि उसे कुछ बताया भी नहीं जा रहा और मुंह टेढ़ा है अलग. यूँ दोनों बाप बेटे हमेशा दोस्तों की तरह ही रहे हैं लेकिन अब जब आमने-सामने खड़े हैं तो दोस्त नहीं बाप और बेटे ही हैं. घर का माहौल हमेशा लोकतांत्रिक रहा. हमेशा सबके विचारों की इच्छाओं की स्पेस रही. तरुण खुद आज़ाद ख्याल था. कई बार तो वो अरुणिमा से इसलिए लड़ा कि वो अपने अधिकार के लिए चुप क्यों रही. या इसलिए कि इच्छा नहीं थी किसी काम की तो खुलकर मना क्यों नहीं किया. चाहे वो प्रेम के आंतरिक क्षण ही क्यों न हों. तरुण कहता, ‘किसी को बुरा न लग जाए इस ख्याल के साथ ही रिश्तों में समर्पण और त्याग की शुरुआत होती है और धीरे-धीरे ये किसी एक को निगल जाती है. इसीलिए बहुत कम रिश्ते बराबरी की बुनियाद पर खड़े होते हैं. हालाँकि दिखते जरूर हैं अब काफी रिश्ते बराबरी जैसे. यह भी एक ट्रेंड बन गया है फैशन, आधुनिक विचारों का चोला पहनना, लोकतान्त्रिक दिखना. लेकिन दिखने और सचमुच होने में अभी काफी दूरी है.’ अरुणिमा उसकी बात को लापरवाही से सुनते हुए आसमान में कुछ ढूँढने लगती. या खिड़की के बंद शीशे के बाहर हवा में लहराते झूमते पेड़ को देखने लगती. हालाँकि वह जानती थी कि तरुण कितनी महत्वपूर्ण बात कह रहा है.

इसी तरह के समझ भरे माहौल में परवरिश हुई है अपरिमित की. अरुणिमा और तरुण दोनों अलग-अलग विश्वविद्यालय में प्रोफेसर. अरुणिमा को इतिहास में दिलचस्पी थी तो वो बच्चों को इतिहास पढ़ाने लगी तरुण को राजनीतिशास्त्र में दिलचस्पी थी तो पढ़ाने लगा राजनीतिशास्त्र.

अपरिमित इन दोनों की संतान जरूर है लेकिन दोनों से अलग. उसकी आदतें अलग, ख्वाहिशें अलग और सपने अलग. उसे महंगे मोबाईल, बाइक की दरकार होने लगी. अरुणिमा ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘अब ये घर, घर हुआ. अब यहाँ दुनिया की ख्वाहिशें आयीं, बाज़ार आया...तरुण हंस देता लेकिन वो अपरिमित की हर ख्वाहिश पूरी करने को मना भी करता. तरुण कहता मुझे इस पीढ़ी की यह बात बहुत अच्छी लगती है कि इन बच्चों में जेंडर को लेकर दुराव नहीं है. हमारे ज़माने में तो लड़कों का लड़कियों से बात करना बहुत बड़ी बात होती थी लेकिन ये सब कितने सहज हैं एक दूसरे से. अरुणिमा हंस देती. ‘सच कह रहे हैं यह पीढ़ी खुलेपन में बहुत आगे है लेकिन काश विचारों के खुलेपन में भी होती.’ अरुणिमा का ध्यान देश के हालात से हट नहीं पाता. ‘छात्रों को किस तरह बरगलाया है भगवा राजनीति ने उन्हें उनके ही खिलाफ करने की उनकी साजिश और वे समझ ही नहीं पा रहे.’

‘सब लोभ की राजनीति है. सब समझ पा रहे हैं. वो अपने और अपने परिवारों के भीतर पलती न जाने कितने पुरानी नफरत को साधने निकल पड़े हैं.’ तरुण को तस्वीर के पार देखना आता था.

‘लेकिन दौर कोई भी हो कोई नेता क्यों नहीं मरता?’ अरुणिमा कहती तो तरुण गांधी..सुभाष...नेहरु...लाल बहादुर शास्त्री....इंदिरा...राजीव...भगतसिंह के नाम गिनाकर उसके सवाल का मुंह बंद कर देता. अरुणिमा सोचती कि इन नामों में कलबुर्गी, दाभोलकर, गौरी लंकेश, रोहित वेमुला और बहुत से नाम भी तो जुड़ने चाहिये. उसे अर्बन नक्सल के नाम पर जेल में ठूंस दिए गए तमाम चेहरे नजर आने लगे. और याद आ गया वो किस्सा जब तरुण की कक्षा में तरुण ने गौतम नवलखा, सुधा भारद्वाज आदि को एक्टिविस्ट कहा था तब कुछ छात्र उन्हें नक्सली कहकर उग्र हो गए थे. ‘वैसे सर, आपको इतना ही प्यार है उन लोगों से तो आपको भी उन्हीं के पास भिजवा देना चाहिए.’ कहते हुए शैलेश की आँखों में जो हिंसा उभरी थी वो अब तक सिहरन पैदा कर देती है. कितनी मुश्किल से उस दिन कक्षा संभली थी. तरुण को किसी तरह बचाकर स्टाफ रूम तक लाये थे कुछ छात्र छात्राएं लेकिन उस पर स्टाफ रूम में हमले शुरू हो गए थे. तमाम प्रोटेस्ट में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने के कारण तरुण को यूँ भी साथी प्रोफेसर ज्यादा पसंद नहीं करते थे. अरुणिमा को भी काफी अपरोक्ष टिप्पणियाँ सुननी पड़ती थीं जिनका वह मजबूती से प्रतिवाद करती. लेकिन उस दिन की घटना के बाद से अरुणिमा भी डर गयी थी.

इधर ये दोनों देश के हालात से अपनी तरह से जूझ रहे थे उधर इन दोनों का लाडला देश की राजनीति पर लानतें भेजते हुए चला गया ऑस्ट्रेलिया. अपरिमित मेडिकल की आगे की पढ़ाई के लिए ऑस्ट्रेलिया गया था. आर्थोपेडिक में एमएस करने. वहां उसे अनम मिली और अनम से उसकी दोरती बिना ज्यादा वक्त गंवाए लिवइन रिलेशनशिप में बदल गयी थी. यह बात भी अरुणिमा और तरुण से छुपी नहीं थी क्योंकि छुपाई भी नहीं थी अपरिमित ने. अपरिमित के शब्दों में अनम ब्यूटी विद ब्रेन एंड करेज है. बचपन में माँ बाप को खो चुकी अनम को उसकी मौसी ने पाला. कम ही उम्र में अनम पढाई के साथ काम करने लगी. खुद को खुद उठाया और खुद बनाया.

अरुणिमा ने अपरिमित की परवरिश में उसकी टीन एज में हुए पहले ब्रेकअप के वक्त एक ही बात कही थी, ‘जो भी रिश्ते बनाना तब बनाना जब उन्हें संभाल पाने की कूवत हो जाय. उन रिश्तों को जैसे भी जीना, उनमें कितना गहरे उतरना कितना नहीं यह सब तुम खुद तय करना लेकिन याद रहे कभी किसी कंधे की तलाश नहीं करना. यानी अपने दुःख उठाने की ताकत खुद पैदा करना. और ध्यान रखना कि किसी के दुःख की वजह तुम न बनो. एक सत्रह साल के लड़के के लिए जिसका अभी-अभी पहला ब्रेकअप हुआ हो ये सब बातें बहुत अजीब थीं. उसे ज्यादा कुछ समझ तो नहीं आया सिवाय इसके कि मम्मी पापा को उसके अफेयर से कोई प्रॉब्लम नहीं है.

अपरिमित आकर तरुण के पाँव छूने झुका तो तरुण ने उसे हमेशा की तरह लपक कर सीने से लगाने की बजाय रूखा सा ‘खुश रहो’ भर कहा. अरुणिमा ने सीने से लगा लिया अप्पू को पीठ पर हाथ फेरते हुए बिना यह जाने कि गड़बड़ क्या है उसके कान में फुसफुसाकर कहा, ‘सब ठीक हो जाएगा.’ एक अबोला घर में डोलने लगा हालाँकि सब आपस में बात कर रहे थे फिर भी. जब तक कोई बात जो केंद्र में हो उस पर बात नहीं होती सारी बातें फिलर जैसी ही लगती हैं.

अरुणिमा जानती है कि फिलर्स कई बार बहुत कीमती होते हैं. तरुण और अरुणिमा जब शुरूआती दिनों में मिला करते थे, दुनिया भर की बातें किया करते थे सिवाय प्रेम के. राजनीति, समाज, धर्म, खबरें जाने क्या क्या. और घंटों बातें करने के बाद भी प्यासे ही लौट जाते थे. एक रोज अरुणिमा ने ही खिसियाकर कहा, ‘मुझे नहीं करनी ये सब बातें’ और वो रुआंसी हो आई थी. तरुण समझ तो गया था लेकिन अनजान बनते हुए बोला, ‘तो तुम बताओ कौन सी बात करनी है...’ अरुणिमा ने अपनी बड़ी-बड़ी आँखें तरुण की आँखों में धंसा दीं. ‘तुम्हें नहीं पता?’ वो बोली. तरुण ने ढीठ बनते हुए मुस्कुराकर कहा, ‘नहीं’. अरुणिमा गुस्सा होकर चल दी, ‘तो ठीक है फिर मैं जा रही हूँ.’ तरुण ने उसे रोक लिया था, रुको एक कविता सुनाता हूँ उसके बाद जाना..’

क्या जीवन की इस ऊबड़-खाबड़ डगर पर
घनी धूप में मेरे साथ चलोगी
क्या तुम धारधार बारिश में
जीवन भर मेरे साथ भीगोगी
क्या तुम सर्द रातों में
जीवन के अलाव की आंच बढ़ाने को
अपने साँसों का ईंधन खर्च करोगी
मैं तुम्हारे जूड़े में अमलतास लगाना चाहता हूँ
तुम पर हरसिंगार बरसाना चाहता हूँ
तुम्हारे साथ गुलमोहर का एक पौधा रोपना चाहता हूँ
जो तब भी खिले जब हम न रहे...
बोलो क्या तुम मेरे साथ वो पौधा लगाओगी?


वो कविता नहीं थी अरुणिमा की जिन्दगी थी. उसकी आँखें डबडबा आई थीं. उस कविता का असर यह हुआ कि गुलमोहर का पौधा घर के बाहर खिलखिला रहा है और अपरिमित प्यार जीवन में लहक रहा है.

लेकिन अभी अरुणिमा को यह जानना था कि साहबजादे ने ऐसा क्या कर दिया कि तरुण इस कदर गुस्से में है. ‘तुम्हें पता है अनम प्रेग्नेंट है ?’ गुस्से में उफनते हुए तरुण ने कहा. 28 साल का मैच्योर लड़का ऐसी फूहड़ गलती कैसे कर सकता है’ तरुण ने दांत भींचते हुए कहा.

अरुणिमा को अब जाकर मामला समझ में आया.
उधर अपरिमित सोच रहा था कि कैसे बताये पापा को कि प्रिकाशन लिया था उसने, फेल हो गया. साले कंडोम कम्पनी वालों पर केस करना चाहिए. इनके चक्कर में न जाने कितनी फटे हुए कंडोम की औलादें जन्म ले रही हैं.

‘ह्म्म्म तो यह बात है, अब इस समस्या का समाधान एक ही हो सकता है शादी.’ अरुणिमा ने अपनी ख़ुशी को जज्ब करते हुए कहा. हालाँकि अरुणिमा को शादी को हल के रूप में देखना खुद भी अजीब लग रहा था. शादी न भी हो तो भी क्या लिव इन लीगल है भाई. बस क्लियर हो जाओ और रहो साथ. लेकिन रहना साथ. यह जरूरी है. लिव इन को लाइटली लेकर निकल मत लेना बीच से.

अनम बच्चा अबौर्ट करने को राजी नहीं है. अपरिमित ने कहा.
‘हाँ तो क्यों अबौर्ट करना है?’ अरुणिमा को इस बात का कोई तुक ही समझ में नहीं आया.
‘यानी वो तुम पर शादी का दबाव बना रही है? क्यों? समाज के डर से ही न? वो सिर्फ तुम्हें धमका रही है. ब्लैकमेल कर रही है.’ तरुण ने अपना तमाम अनुभव विश्लेष्ण में पिरो दिया.
‘नहीं पापा, अनम शादी की बात इसलिये नहीं कह रही है कि सोसायटी से डरती है वो. वो बहुत हिम्मती है. वो शादी करना चाहती है क्योंकि वो मुझसे सच में प्यार करती है, और मुझसे ज्यादा तो उसे मेरा फैमली पसंद है. खासकर मम्मा. शी वांट्स अ फैमली’ कहते हुए अपरिमित के भीतर की तरलता उसकी आवाज में घुल गयी.
अरुणिमा इतनी खुश हुई यह सुनकर, ‘अनम मुझे बहुत पसंद है अगर वह बहू बनती है तो इससे अच्छा क्या होगा भला.’ उसने कहा.
तरुण ने गुस्से में कहा,’ तुम बिना कुछ जाने रिश्ते मत बनाने लगो.’
‘तो बताओ मुझे कि असल समस्या क्या है?’

‘अप्पू को आये चार दिन हो गए आप लोग कोई बात ही नहीं कर रहे. सस्पेंस खत्म करो और बताओ मुझे कि क्या चल रहा है तुम दोनों के दिमाग में जो मैं नहीं जानती.’ अरुणिमा ने चाय टेबल पर रखते हुए कहा. बाहर गुलमोहर अपनी रंगत पर इतरा रहा था. भीतर तनाव पसरा हुआ था.
‘क्या बताऊँ? ऐसा फंसा दिया है साहबजादे ने?’ तरुण ने चश्मा उतारकर टेबल पर रखा और चाय उठाई.
‘पापा मैं भी तो फंस गया हूँ मैं क्या करूँ. हो गयी गलती.’
‘तो मैं बता रही हूँ, अप्पू और अनम की शादी करा दो बस बात खत्म’ मैं दादी बनने वाली हूँ इस बात की कोई ख़ुशी भी नहीं मनाने दे रहा.’ अरुणिमा ने हंसते हुए माहौल को सहज करते हुए कहा.
‘यार वो लड़की मुसलमान है, पाकिस्तान से है कैसे होगी शादी?’ तरुण ने शब्दों को चबा चबाकर कहा. अरुणिमा को झटका लगा तरुण के मुंह से यह सुनकर. हालाँकि अनम मुसलमान है पाकिस्तानी है यह बात नहीं पता थी अरुणिमा को लेकिन तरुण ‘इस बात’ से परेशान है इस बात का झटका लगा अरुणिमा को.
‘क्या? इस बात से परेशान हो तुम? तुम तरुण?’ अरुणिमा ने बेहद हैरत से कहा. उसे लगा वो इस तरुण को जानती ही नहीं है. तरुण ने अपनी निगाहें खिड़की के बाहर टिका दीं.
‘तुम जरूर मजाक कर रहे हो यह वजह नहीं हो सकती तुम्हारी चिंता की. सच बात बताओ.’ अरुणिमा की नायकीनी बढ़ती ही जा रही थी.
‘मैं कोई मजाक नहीं कर रहा.’ तरुण ने खिड़की के बाहर नजर टिकाये हुए ही कहा.
‘तुम तो हमेशा ऐसी बातों की खिलाफत करते रहे. सारी जिन्दगी प्रोटेस्ट किया, हिन्दू मुस्लिम एकता की बातें की. हिंदुस्तान पाकिस्तान के बीच दोस्ताना संबंधों की बात करते रहे, छात्रों को एकता के पाठ पढ़ाते रहे. आज जब घर में प्यारी सी बहू और पोता या पोती आने को है तुम यह कह रहे हो? यह बात?‘ अरुणिमा ‘यह बात’ पर केन्द्रित थी. यह ‘यह बात’ यूँ तो कॉमन है समाज में खासकर इन हालात में लेकिन तरुण ऐसी बात कहेगा यह अरुणिमा के लिए आश्चर्यजनक और असहनीय हो रहा था.

‘एक तो तुम पहले ये बहू और पोता पोती की बात करना बंद करो मम्मी.’ यह अपरिमित का स्वर था. एकदम चिढ़ा हुआ. अब अरुणिमा हैरत से बेटे को देख रही थी.

‘पापा, मुझे धोखा दिया है उस लड़की ने. मैं आपसे कह रहा हूँ आप सुनते क्यों नहीं मेरी बात?’
अरुणिमा को लग रहा था वो अजनबी लोगों के बीच है.

‘धोखा दिया है?’ ये क्या बात कर रहे हो? क्या हुआ है बताओगे मुझे भी. मैं भी रहती हूँ न इसी घर में. कोई मुझे कुछ बतायेगा.’ अरुणिमा लगभग चीख पड़ी थी.
‘मम्मा उसने मुझे बताया ही नहीं कि वो मुसलमान है. लिव इन में आने के साल भर बाद मुझे पता चला जब उसकी मासी आईं उससे मिलने. उसे देखकर कोई कह ही नहीं सकता वो मुसलमान है.’
‘क्या....क्या बात कर रहा है ये लड़का. कोई बताता है क्या कि वो मुसलमान है? क्या कोई लड़की किसी लड़के से मिलने से पहले मैं मुसलमान हूँ का टैग लगाकर जायेगी. उसे देखकर लगता नहीं का क्या मतलब है. पता चला का क्या मतलब है और अगर है तो फर्क क्या पड़ता है.’ अरुणिमा बौखला गयी थी एकदम. तरुण की बात अप्प्पू की बात. एक पति है, दूसरा बेटा है.
जिन्दगी भर सेकुलर दिखने वाला पति कह रहा है वो मुसलमान है, पाकिस्तान से है कैसे होगी शादी?’ और मुक्त लोकतान्त्रिक परिवेश में पले बढ़े साहबजादे कह रहे हैं, ‘उसने मुझे धोखा दिया यह न बताकर कि वो मुसलमान है.’
‘फर्क पड़ता है...’ अप्पू और तरुण दोनों ही एक साथ बोले.
‘तुम उसे बोल दो कि तुम्हारे पैरेंट्स नहीं मान रहे?’ तरुण ने अप्पू को समझाते हुए कहा.
‘पापा आप समझ नहीं रहे हैं. मैं खुद उससे शादी नहीं करना चाहता. मैं एक पाकिस्तानी से शादी कैसे कर सकता हूँ. लिबरल होने का यह अर्थ तो नहीं कि मैं मुसलमान बच्चे पैदा करूँ’. अपरिमित ने अपना पक्ष स्पष्ट कर दिया.
‘अरे वाह, फिर तो मामला क्लियर है’ तरुण के चेहरे पर ख़ुशी के भाव आ गए.
‘नहीं है क्लियर मामला क्योंकि वो अबार्शन के लिए राजी नहीं है.’ अप्पू ने कहा. और अगर उसने बच्चे को जन्म दिया जो वो देगी ही क्योंकि वो बहुत जिद्दी है और खुद मुख़्तार भी तो जीवन भर दिल में फांस रहेगी कि मेरा एक बच्चा है जिसकी माँ मुसलमान है. लिव इन से हुए बच्चे भी लीगल राईट रखते हैं न अब तो.’
अपरिमित बोले जा रहा था. अरुणिमा को चक्कर से आने लगे थे. उफ्फफ कितना कुछ सोच चुका है वो. इतनी घृणा उससे जिससे प्रेम किया जिसकी कोख में इसका बच्चा है? और घृणा का कारण देश और धर्म. तरुण जो हमेशा कहता था ‘बच्चे हिन्दू मुसलमान पैदा नहीं होते’ वो इस बात पर इतना खुश कि अप्पू शादी नहीं करना चाहता उससे.
‘मैं तो यह सोचकर आया था कि मम्मा शायद अनम से बात करें तो वो मान जाए. मम्मा को बहुत पसंद करती है वो. उन्हें बहुत एप्रीशिएट भी करती है...’ अप्पू ने रुक रुक कर कहा.
‘क्या?’ अरुणिमा के चौंकने का सिलसिला लगातार चले ही जा रहा था. शाम अब रात का रूप धरकर घर के भीतर घुस आई थी. अरुणिमा को लगा घर के भीतर ही नहीं जीवन के भीतर भी घुस आई है रात.
‘मुझे लगा था मुझे तेरे पापा को मनाना है तेरी शादी के लिए लेकिन मुझे तो अनम को मनाना है एबार्शन के लिए..?’ अरुणिमा लगभग रो पड़ी थी कहते-कहते.
‘तो इसमें प्रॉब्लम क्या है. कुछ बातें प्रैक्टिकल होकर सोचनी ही पड़ती हैं.’ तरुण ने अरुणिमा की ओर देखते हुए कहा.
अरुणिमा को अनम का चहकता हुआ चेहरा याद आने लगा. ‘प्रॉब्लम’ कहाँ है समझ ही तो नहीं पायी मैं तरुण’. कोई दुःख चीरता हुए नसों में उतर गया अरुणिमा के.
‘धोखा अनम ने तुम्हें नहीं दिया बेटा धोखा तो मुझे मिला है.’ अरुणिमा ने कहा तो तरुण ने मानो सुना ही नहीं.
टेबल पर रखा अपरिमित का फोन बज उठा. अनम का फोन था. अरुणिमा ने कहा ‘उठा ले अप्पू तू चाहता था न मैं उससे बात करूँ ला मैं करती हूँ बात.’ अरुणिमा के यह कहते ही तरुण और अपरिमित दोनों के चेहरे पर राहत सी आ गयी. अप्पू ने फोन उठाकर अरुणिमा को दे दिया,
‘हैलो आंटी..’ अनम ने बोला तो सुनते ही अरुणिमा की आँखें छलछला आयीं. वो भीगी हुई आँखों से अनम को देखती रही. स्त्री जब गर्भ से होती है तो एक अलग ही आभा दिपदिपाती है उसके चेहरे पर. वही आभा थी अनम के चेहरे पर जिसमें अपरिमित की बोई अवसाद की लकीरें भी शामिल थीं.
‘अनम, कैसी हो तुम? अपना ख्याल तो रख रही हो न?’
‘जी आंटी. आप कैसी हैं?’ अरुणिमा सोचने लगी कि वो कैसी है और गीली सी हंसी चेहरे पर बिखेर कर उसने कहा’ अच्छी हूँ. बहुत अच्छी हूँ.’ उधर तरुण और अपरिमित इस प्रेमिल वार्तालाप को ध्यान से सुन रहे थे कि उन्हें इस वार्तालाप में से आती उम्मीद की धुन सुनाई दे रही थी.
‘अनम, तुम अपना और बच्चे का ख्याल रखना. चिंता एकदम न करना.’ ‘अनम का चेहरा खिल उठा उसे लगा उसकी शादी फैमिली से और अपरिमित से अप्रूव हो गयी है हालाँकि वो क्यों इस अप्रूवल का इंतजार कर रही थी उसे भी पता नहीं. वो अपरिमित से अक्सर कहा करती थी ‘मैंने अपनी माँ को नहीं देखा लेकिन आंटी को देखकर मुझे लगता है काश वो मेरी माँ होतीं.’ जब वो यह कहा करती थी तब शादी और प्रेगनेंसी की बात दूर-दूर तक नहीं थी.
‘मैं जानती थी आंटी अपरिमित को आप जरूर समझा सकेंगी. वो मान गया न?’ अरुणिमा ने मोबाईल के स्क्रीन से नजर उठाकर अपरिमित के सपाट चेहरे की ओर देखा. ‘सॉरी अनम, मैं किसी को कुछ नहीं समझा सकी. खुद ही समझ गयी हूँ कुछ बातें.’ यह कहते हुए अरुणिमा ने बारी-बारी से तरुण और अप्पू को उदास गुस्से के साथ देखा.
अनम की आँखें डबडबा आई थीं. अरुणिमा की आँखों में भी कोई धार फूट पड़ने को थी. और ये बरसने को व्याकुल आंसू कमजोरी की निशानी हरगिज़ नहीं थे.
‘अनम मेरा एक काम करोगी प्लीज़?’ अरुणिमा ने मानो मन ही मन कोई फैसला कर लिया हो.
‘जी आंटी बताइए न’ अनम के कहने में अपनापन छलक रहा था.
‘मेरा एक एयर टिकट करा दो अपने पास आने का. मैं जल्दी से तुम्हें गले लगाना चाहती हूँ.’ यह कहते हुए रुकी हुई धार अरुणिमा की आँखों से बह चली.
‘हाँ, जरूर’ कहते ही अनम का दुःख का रोना सुख के रोने में बदलकर मोबाईल स्क्रीन पर मोतियों की तरह बिखरने लगा.
तरुण और अपरिमित किसी पराजित सैनिक की तरह सर झुकाए बैठे थे.

2 comments:

Ravindra Singh Yadav said...

नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (24-01-2022 ) को 'वरना सारे तर्क और सारे फ़लसफ़े धरे रह जाएँगे' (चर्चा अंक 4320 ) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

#रवीन्द्र_सिंह_यादव

Anita said...

दिल को छूने वाली सुंदर कहानी