Thursday, January 13, 2022

ज़िन्दगी के सुरों का रियाज़


- प्रतिभा कटियार

सरगम का ‘स’ साधने जैसा ही होता है जीवन साधना. जीवन में मिठास को सहेजने के लिए जो सिर्फ एक ‘स’ भर ही ठीक से लग जाये एक जीवन में तो वह भी कम नहीं. सारा जीवन बस उस एक सुर के ठीक से लग जाने का रियाज़ ही तो है. ये पत्र जिंदगी का वही रियाज़ हैं. कभी छलकी कभी, रुकी हुई उदासी, कभी कोई मीठा लम्हा जो कसैली ज़िंदगी की हथेली पर आ गिरा हो, कभी कोई गुनगुनाती धुन कभी कोई सुबह गुमसुम.

मार्च 2020 को हुई कुछ घोषणाओं के साथ पूरी दुनिया विषाद में घिर गयी. पूरी दुनिया घरबंदी में घेर दी गयी. कोरोना नामक वायरस जाने कैसा था कि इसने एक-दूसरे से मिलने पर ही रोक लगा दी. इस दौरान उन सबको याद किया जिनकी याद व्यस्तता की आड़ से छुपकर फुर्सत मिलने की इंतजार तक रही थी. अब तमाम यादें, बातें, स्मृतियां बाकायदा पाँव पसारे बैठी थीं. एक तरफ भीतर की दुनिया खुल रही थी. दूसरी तरफ बाहर की दुनिया जूझ रही थी.

एक वायरस जिसने खांचों में लड़ी जा रही तमाम लड़ाइयों को एक कर दिया था जीवन जीने की जीवन को बचाने की लड़ाई. यह वायरस हिन्दू मुलसमान, अमीर गरीब, स्त्री पुरुष का भेद नहीं कर रहा था. एक डर जिसने समूचे विश्व को एक सूत्र में बाँधा. अवसर था ज्यादा मनुष्य होने का. लेकिन क्या हम हो पाए?

शुक्रगुजार हूँ कुदरत की कि इस मुश्किल वक्त में यह राह खुली. जब बाहर की यात्राएँ बंद हुईं तब भीतर की यात्रा की टिकट हाथ में थमाकर मानो प्रकृति ने कहा हो, ‘जाओ घूम आओ कुछ दिन.’ यह लिखते हुए मेरी आँखे नम हैं कि इन बुरे दिनों ने मुझे बहुत मांजा है भीतर से. मन-जेहन की जमीन पर उग आये खर-पतवार बीनने का समय मिला कुछ.

इस दौरान खिले फूलों की खुशबू है इन खतों में, पंछियों का गान है, उनसे की गयी बाते हैं, देश के बड़े वर्ग के पाँव की बिवाईयों का दर्द है. इंतजार के आगे सजदा किये रहने की चाहत है, देखी हुई फिल्मों, पढ़ी गयी किताबों की बाबत कुछ बातें हैं जो प्रेम पत्र में ढलकर अपने गंतव्य तक पहुँचने की इच्छा रखती हैं. ये पत्र लेटर बौक्स में पोस्ट ही नहीं किये गये तो जिसके लिए लिखे गये उसके द्वारा पढ़ी कैसे जाते. और जो किसी एक के न हुए वो सबके हुए. आप सबके. जिसके भी हाथ में यह पुस्तक है उसके ही लिए लिखे गए हैं ये खत. माया मृग जी ने इन खतों को एक जगह समेटकर तरतीब दी और अब ये बुरे समय के प्रेम पत्र आपके हवाले हैं. प्रेम पत्रों को बुकशेल्फ में सजाये जाने की नहीं दिल में रखे जाने की चाह होती है, उम्मीद है ये आपके दिल में थोड़ी सी जगह बनायेंगे.

किताब मंगवाने का लिंक- https://www.amazon.in/gp/product/B09PJB1PR2/ref=ox_sc_act_title_1?smid=A1GRCEHOR5E0TF&psc=1

2 comments:

Ravindra Singh Yadav said...

नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (14-01-2022 ) को 'सुधरेगा परिवेश अब, सबको यह विश्वास' (चर्चा अंक 4309) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

#रवीन्द्र_सिंह_यादव

Anita said...

जीवन में मिठास को सहेजने के लिए जो सिर्फ एक ‘स’ भर ही ठीक से लग जाये एक जीवन में तो वह भी कम नहीं. सारा जीवन बस उस एक सुर के ठीक से लग जाने का रियाज़ ही तो है. ये पत्र जिंदगी का वही रियाज़ हैं।
वाह! कितनी सुंदर बात कही है आपने, यकीनन आपकी यह पुस्तक जीवन के सुरों को साधने में बहुत साथ निभाएगी