परिंदा देर तक चक्कर काटकर उड़ गया
बैठा नहीं शाख पर
जैसे किसी उलझन में रहता है वो
इन दिनों
---
कोई किताबों की सूची साझा कर रहा है
कोई सिनेमा के दृश्यों को ढूंढते हुए
भुलाने की कोशिश कर रहा है
वर्तमान समय की दर्दनाक तस्वीरों को
कोई राशन बांटने के बाद लौटता है सिसकते हुए
कि हर रोज कुछ बढे हुए हाथ और सूखी आँखें
खाली ही छूट जाती हैं उससे
खाने बैठता है तो रुलाई फूटती है
फिर वो ढूंढता है गये खुश मौसम की तस्वीर
किसी को लगता है यह कविता लिखने का वक़्त नहीं
यह कहते ही फूटती है उदासी की एक नदी
इन दिनों उदास कविता हाथ थामे चलती है
---
उदास मन से चाय बनाते हुए
जब वो बजाता है कोई मीठी धुन
ठीक उसी वक्त उसके भीतर
गल रही होती है बेहद उदास धुन
---
पांव दुखते रहते हैं आजकल हमेशा ही
जैसे सदियों से चले जा रहे हों
हालाँकि घर से निकले जमाना हुआ
ये किसकी थकन चली आई है
पैरों में
ये किसकी उचटी नींद है
जो सोने नहीं देती, पल भर भी
---
जो नहीं दिख रहे आंसू बहाते
उनके दुःख को भी समझो
कि दुःख आंसुओं से बहुत बड़ा होता है.
---
जो लड़ते हुए नजर नहीं आ रहे
वो भी हो सकते हैं गहन लड़ाई में
कि 'सुख' लिखना 'दुःख' से लड़ने का
ढब भी तो हो सकता है.
---
फोन पर बात करते हुए
हंस रही है जो लड़की
अभी-अभी उसने पोछे हैं आंसू
और बालों में लगाये हैं मोगरे के फूल
बस कुछ देर पहले
सिसकियों में गोते लगा रही थी वो
पांव दुखते रहते हैं आजकल हमेशा ही
जैसे सदियों से चले जा रहे हों
हालाँकि घर से निकले जमाना हुआ
ये किसकी थकन चली आई है
पैरों में
ये किसकी उचटी नींद है
जो सोने नहीं देती, पल भर भी
---
जो नहीं दिख रहे आंसू बहाते
उनके दुःख को भी समझो
कि दुःख आंसुओं से बहुत बड़ा होता है.
---
जो लड़ते हुए नजर नहीं आ रहे
वो भी हो सकते हैं गहन लड़ाई में
कि 'सुख' लिखना 'दुःख' से लड़ने का
ढब भी तो हो सकता है.
---
फोन पर बात करते हुए
हंस रही है जो लड़की
अभी-अभी उसने पोछे हैं आंसू
और बालों में लगाये हैं मोगरे के फूल
बस कुछ देर पहले
सिसकियों में गोते लगा रही थी वो
No comments:
Post a Comment