मैं जानबूझकर अनखिले फूलों को छूती हूँ. लहरों को महसूस करती हूँ. चिड़ियों से बातें करती हूँ. मैं अपने ख्यालों को जानबूझकर दूर कहीं ले जाती हूँ. लेकिन एक दुःख है जो लगातार मेरा हाथ थामे रहता है. एक दुःख जो लगातार मुझे भीतर से भिगोता रहता है. मैं खुश होने की कितनी भी कोशिश करूँ. क्या इसका अर्थ यह है कि मैं कभी खुश नहीं हो सकती...'
(मारीना पुस्तक से)
2 comments:
बहुत सुन्दर
बहुत सुन्दर।
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