Thursday, May 28, 2020

रंग गुलाबी था दिन का


बहुत तेज आंधी आई थी आज. देर तक उस आंधी में बाहें पसार कर खड़ी रही. बहुत सारे फल टूटे पेड़ों से, पत्ते टूटे. तेज़ हवा एक जगह के सामान को उठाकर दूसरी जगह रख आई. सोचा था, इस तरह खड़ी रहूंगी तो ये तेज़ आंधी स्मृतियों के अंधड़ को भी उड़ा ले जायेगी. मेरे शहर का मौसम तुम्हारे शहर के मौसम से जब हाथ मिलाएगा तो मेरा संदेशा भी देगा. संदेशा याद का, प्यार का. तुम्हारे दिल की धडकनों को थोड़ा तेज करेगा. शायद तुम्हारे भीतर भी स्मृतियों की हलचल उठे और एक पुकार उठे उस शहर से इस शहर के नाम.

बार-बार बाहर जाती हूँ, हवाओं को टटोलती हूँ. कोई संदेशा तो नहीं इन हवाओं में टटोलती हूँ. नहीं मिलता कोई संदेशा. लौट आती हूँ. समय यूँ भी कम उदास नहीं, उस पर स्मृतियों का यह बवंडर.

बात करने से कुछ नहीं होता फिर भी जाने क्यों बात करने की इच्छा मरती ही नहीं.

गिरे हुए हर पत्ते को उठाकर देखती हूँ
कोई सन्देश तो नहीं
तितलियों से पूछती हूँ उसने कुछ कहा तो नहीं
नम सुबहों से पूछती हूँ
तुम्हारे शहर के मौसम का हाल
अख़बार के पन्ने पलटते हुए सोचती हूँ
क्या तुम भी पढ़ते होगे
मेरे शहर की ख़बरें
और पूछते होगे मौसमों से मेरा हाल
कि रंग गुलाबी था आज दिन का
तुम्हारी भेजी ओढ़नी
रही सर पर दिन भर....

4 comments:

Sweta sinha said...

वाह एहसास का स्पंदन बेहद सुंदर।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

मार्मिक...
पद्य कहूँ या गद्य कहूँ इसको।

Bhawna Kukreti said...

वाह !

ANHAD NAAD said...

नेह की बारिश !