Thursday, May 28, 2020

मुझे कविता होने में कोई दिलचस्पी नहीं


सारी धूप पी लेना चाहती हूँ
जो जला रही है
मजदूर से मजलूम बना दिए गए लोगों को

साइकल के पैडल बन
सोख लेना हूँ सारी थकान
कि बेटियाँ बिना थके पहुंचा सकें
पिताओं को घर
और पिता अपने बच्चों को

सारे सांप गले में लपेट लेना चाहती हूँ
सारे बिच्छुओं से कह देना चाहती हूँ
कि आओ मुझे डसो
कवारन्तीन सेंटर का रास्ता भूल जाओ कुछ दिन

रेल होना चाहती हूँ
कि जहाँ सोये हों मजदूर
बदल सकूँ उधर से गुजरने का इरादा
पानी होना चाहती हूँ
कि हर प्यास तक पहुँच सकूं
पुकार से पहले
रोटी होना चाहती हूँ
कि भूख से मरने न दूं
धरती पर किसी को भी

चीख बन गुंजा देना चाहती हूँ समूची धरती को
कि दुःख अब सहा नहीं जाता
आग बन भस्म कर देना चाहती हूँ
कायर, मक्कार धूर्त राजनीति को
मीडिया को, चाटुकारों को

संवेदना और समझ बन उतर जाना चाहती हूँ
हर बेहूदा तर्क के गर्भ में

बच्चों की आँखों में खिलना चाहती हूँ
गुलमोहर की तरह
अमलताश बन सोख लेना चाहती हूँ
मुरझाये, पीले पड़े चेहरों की उदासी
शिव की भांति गटक जाना चाहती हूँ
धरती पर फैलाई गयी नफरत का तमाम विष

बहुमत होना चाहती हूँ
कि पलट सकूँ
मगरूर, हत्यारी सत्ता को अभी इसी पल

मुझे कविता होने में कोई दिलचस्पी नहीं

इरेजर होना चाहती हूँ जो
'सभ्यता' के पहले गहराते जा रहे 'अ' को
मिटा सके पूरी तरह से.

14 comments:

Onkar said...

प्रखर रचना

Meena Bhardwaj said...

सादर नमस्कार,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (29-05-2020) को
"घिर रहा तम आज दीपक रागिनी जगा लूं" (चर्चा अंक-3716)
पर भी होगी। आप भी
सादर आमंत्रित है ।

"मीना भारद्वाज"

Sweta sinha said...

काश कि ऐसा हो पाये तो मुझे भी रोटी बनना है,धूप पीनी है किसी के काम आ सकूँ कुछ होकर तो.जन्म सफल हो।
उत्कृष्ट सृजन,आदरणीया।
सादर।

Sweta sinha said...

जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २९ मई २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

अच्छा विश्लेषण है।

विभा रानी श्रीवास्तव said...

सादर प्रणाम
सोच को सलाम
काश पूरी हो पाती

अनीता सैनी said...

वाह !लाजवाब... मनोकामना फले फूले.
सादर

~Sudha Singh Aprajita ~ said...

बहुत खूबसूरत सृजन👌👌👌

शुभा said...

इरेजर होना चाहती हूँ ...वाह!काश ऐसा हो सके ।
बहुत खूब !!

Anuradha chauhan said...

अद्भुत लेखन

Subodh Sinha said...

तो फिर देर किस बात की है .. आइए .. आप भी निकल पड़िये घर से .. जाने-अन्जाने तो आपने अन्ततः एक कविता ही तो रच डाली .. बस ! .. काश ! ...

एक नई सोच said...

बहुत खूब लिखा है आपने ... 👌👌

मेरा मन पंछी सा said...

कोमल भावसिक्त भावपूर्णं अभिव्यक्ति

मन की वीणा said...

उच्च भावों को व्यक्त करती कोमल सार्थक कविता ।