कवि नाजिम हिकमत का पत्र पत्नी के नाम
(नाजिम हिकमत: तुर्की का महान क्रांतिकारी कवि, जिसकी कविताओं में सैकड़ों सूर्यों की गर्मी और तेज मौजूद है....जिसके जीवन का दु:खद अंत पागलखाने में हुआ...यह पत्र नाजिम हिकमत ने जेल से लिखा था)
मेरी प्रियतमे,
पिछले पत्र में तुमने लिखा है, यदि तुम्हें फांसी दे दी जायेगी और मैं तुम्हें खो दूंगी तो निश्चित ही मैं जीवित नहीं रह सकती। प्रियतमे! तुम जियोगी, जियोगी और जीती ही रहोगी. हे मेरे ह्रदय की अरुणकेशी सहोदरे, इस बीसवीं सदी में मरने वाले के लिए एक साल के अर्से तक ही रोया जाता है.हे मेरी जीवनसाथिन, प्रिये, हे कोमल खामोश ह्रदय वाली. मैंने गलती ही की, जो तुम्हें लिख दिया कि ये मुझे फंासी पर चढ़ा देने के लिए बेचैन हैं. अभी तो मुकदमा शुरू ही हुआ है और वे एक आदमी का सिर धड़ से अलग करना चाहते हैं और यह काम उतना आसान नहीं है, जितना कि शलजम का उखाडऩा. तुम बेकार चिंता न करो. मेरी मौत अभी बहुत दूर है. तुम्हें यह भी नहीं भूलना होगा कि कैदी की पत्नी को सदा ही प्रसन्न रहना चाहिए.
सबसे आकर्षक है वह महासागर, जिसे हममें से किसी ने अभी तक नहीं देखा. सबसे सुंदर है वह बच्चा, जो अभी तक इस धरती पर चल नहीं सका. सबसे मोहक हैं वे दिन जो अभी इस जीवन में आए नहीं. सबसे प्यारी हैं वे बातें जो मुझे तुमसे अभी कहनी हैं, जिन्हें मेरे होंठ अभी तक कह नहीं पाए.
नाजिम
सिलसिला जारी....
3 comments:
moving indeed!
if u cud remove d' word verification tool ,it will b easy to comment.
रोचक पढ़वाने का शुक्रिया ..
apka
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