Thursday, April 30, 2009

हँसता हुआ आंसू

हंसता हुआ एक खूबसूरत आंसू कब से संभालकर रखा था एक आंसू. वो आखिरी आंसू था. कितनी ही बदलियां आंखों से होकर बरसती रहीं बरसों. लेकिन ये एक आंसू. इसे जमाने की नजर से बचाया. अपनी ही नजर से भी. झाड़-पोंछकर रख दिया मन के सबसे भीतर वाले कोने में।

पूरी ताकीद की थी उसे, देखो तुम यहीं रहो. तुम्हें जाया नहीं करना है मुझे. औरों के लिए नहीं, अपने लिए बचाया है तुम्हें. मेरी मजार पर चढऩे वाला पहला आंसू. क्या पता आखिरी भी. फूल की तरह खिला हुआ, हीरे की तरह चमकता हुआ. मेरा खुद का आंसू, मेरे खुद के लिए।

उसकी चमक में कैसा तो सम्मोहन था. उसका सौंदर्य अप्रतिम था. लोग इल्जाम लगा सकते हैं कि सबसे सुंदर और अनमोल आंसू तो मैंने बचा लिया अपने लिए, इसीलिए मोहब्बतों की मिठास फीकी ही रही. जिंदगी की भी. लेकिन आज यह अपनी पूरी शानो-शौकत के साथ बाहर क्यों आ पहुंचा है।

जरा तेवर तो देखिये इनके और मुस्कुराहट. इतिहास बदल देगा ये कम्बख्त तो. मुस्कुराता हुआ आंसू. कभी देखा है किसी ने? डांटकर पूछा- क्यों मना किया था न तुम्हें? क्या तुमने भी मेरी बात न मानने की ठान ली है. बोलो?

हंसा वो जोर से. उसके हंसने से उसकी चमक झिलमिला उठी. पास में खिले हुए फूलों की आंखें चुंधियाने लगीं उस झिलमिलाहट में. वो बोला, तुमने मुझे अपनी मजार के लिए ही तो बचाकर रखा था ना?
क्या तुम अब मजार ही नहीं बन चुकी हो अपनी?

मैं खामोश, हीरे से चमकते उस एक आंसू में डूबते हुए अजब सा सुख महसूस करने लगी.

12 comments:

Amitom said...

ये आंसू भी चमकता है ,हीरे सा ,किरने निकलती हैं इससे सूरज सी ,
बता देता है सबको ,क्यूँ बहा ये ,खुशी में या किसी गम में ,
की चीज है ये एक दिखावे की ,दबाना इसको जरुरी नहीं ,
और ना ही आसान ,
शानदार ब्लॉग मैडम

के सी said...

अद्भुत है आपके शब्दों की दुनिया, हर आह पे वाह का आलम है, आपकी के कोमल मनोभावों ने शब्दों सहस्र सेतु बांधे हैं, हर बार की तरह ये पोस्ट भी .... आप ही बताओ क्या कहा जाये ?

abhivyakti said...

आप के अभिव्यक्ति बहुत सटीक है
में आप का रचना पाठ कर रो पड़ी ।दिल से कहती हुँ बहुत ही जबरदस्त रचना है
हम सब के लिये रत है और अपने किये कुछ बचत ही नही बहुत ही अच्छा लगा का आप ने एक आंसू बचाया था और उस
ने आप का बात भी नाम ली मेरी तो कोई सुनता ही नही आंसू भी नही

gargi

संध्या said...

sagar ka ek katra hai aansu nahi jindgi ka ek mukhra....bahad alhada dhang sae kahi aapnae aansu ki kahani..

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

आप का ब्लाग बहुत अच्छा लगा।आप मेरे ब्लाग
पर आएं,आप को यकीनन अच्छा लगेगा।

श्यामल सुमन said...

आँसू भी हँसने लगे शीर्षक है बेजोड़।
प्रतिभा जी ने बात को अलग दिया है मोड़।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

Udan Tashtari said...

सुन्दर प्रवाहमय अभिव्यक्ति..अच्छा लगा पढ़कर.

संगीता पुरी said...

बढिया लिखा है .. सुंदर अभिव्‍यक्ति।

geetashree said...

क्यों रुला रही हैं..पहले ही कम है क्या चीजें..
गीताश्री

अभिषेक said...

कभी देखा है...अपने बच्चों की सफलता पर किसी माँ के आंसू..दर्द से तड़पते किसी मरीज के आंसू..ब्लास्ट और दंगों में किसी अपने को खो देने वाले इंसान के आंसू...भूख,बेबसी और गरीबी के आंसू...क्योंकि हर आंसू कुछ कहता है.
कहते तो यह भी हैं की प्रेम का सबसे बड़ा उपहार आंसू ही होता है..
बेहतरीन पोस्ट..शुभकामनाएँ..

Anonymous said...

हमें अपने अंदर की सबसे दर्दीली जगहों के प्रति एकाग्र और सचेत रहना चाहिए क्योंकि अपने पूरे व्यक्तित्व से भी हम इस दर्द को समझ नहीं सकते. अपनी पूरी जीवन शक्ति से हर चीज को अनुभव करने के बाद भी बहुत कुछ बाकी रह जाता है और वही सबसे महत्वपूर्ण है.
abhi mazar nahi ban sakti aap hum jaiso ka kay hoga jo aapke blog ke deewane hai.

निर्झर'नीर said...

bhavnaon ki sundar abhivyakti..