सुबह के कान में धीरे से कहा, 'मन नहीं लग रहा यार'. सुबह ने पलकें झपकायीं, सर पर हाथ फेरा और अपनी बाहें फैला दीं. उन बाहों में समाती गयी और मन का लगना जाने कहाँ गुम हो गया. कासे के लहराते फूल, पानी की मीठी सी आवाज़, लाल पंख और सफ़ेद धारी वाली चिड़ियों की शरारतें, सिर्फ मोहब्बत के आगे झुकने वाले पहाड़ों पर गिरता सुबह की धूप का टुकड़ा. कुदरत का एक ऐसा कोलाज कि उदास रातों को इस कोलाज के आगे पनाह मिले.
एक बार एक दोस्त ने कहा था कि हर आने वाले लम्हे का उत्सुकता से इंतज़ार करता हूँ कि न जाने उसकी मुठ्ठी में क्या हो. अब मैं भी वही करती हूँ. आने वाले लम्हों की आहटों पर कान लगाये रहती हूँ, उम्मीद के काँधे पर सर टिकाये ज़िन्दगी के खेल देखती हूँ. वो ज़िन्दगी है, हैरान करने का हुनर उसे खूब आता है. कब कौन सा रास्ता बदल दे, कब कहाँ से उठाकर कहाँ पहुंचा दे कुछ कह नहीं सकते. बस कि खुद को ज़िन्दगी के हवाले करना होता है और उसके सारे रंगों से मोहब्बत हो ही जाती है.
मैं ज़िन्दगी की आँखों में झाँककर मुस्कुराती हूँ, वहां मेरी ही सूरत नज़र आती है.
2 comments:
उम्दा प्रस्तुति
अहा! एक और सकारात्मक सोच जहाँ ना बीता हुआ कल है ना आने वाला कल बस आज है 🙏
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