ढलने को होती है कोई रात
उसके आगे सूरज की किरणें बिछा देती हूँबिखर चुकने को होती है कोई खुशबू
उसके आगे हथेलियां बढ़ा देती हूँ
मुरझाने को होती है कोई उम्मीद
कि एक पौधा लगाने लगती हूँ
दिल घबराता है जब भी
जूते की फीते बाँधने लगती हूँ
इस कदर जीना चाहती हूँ
कि बस मर जाना चाहती हूँ....
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