Thursday, November 17, 2022

याद का मौसम



याद का मौसम बदल रहा है 
याद अब भी आती है
लेकिन अब वो उदास नहीं करती
चुपचाप बैठी रहती है काँधे पर सर टिकाये
गुनगुनाती है मीठी धुन
मुस्कुराती है हौले से

याद ने अब सीख लिए हैं ढब
फूलों की खुशबू में ढलकर महक उठने के
सुबह की किरणों में समाकर बिखर जाने
धरती के इस छोर से उस छोर तक

इंतजार की आहटों में नहीं रहती याद
उसने खोज निकाले हैं रास्ते
नदियों की रवानगी में ढल जाने के
फूलों के संग खिलने के
परिंदों की ऊंची उड़ान में शामिल होने के

सिरहाने जो उम्मीद की शाख रख गए थे न तुम
वो मुरझाई नहीं है अब तक
उस पर उगती रहते हैं तेरी याद के गुंचे

जाना एक क्रिया है पढ़ा था हमने
जाने के भीतर जो रह जाना है वो तो जाना है अब
और यह जो रह जाना है
यही तो है इश्क़ की खुशबू

अब जबकि कि तू नहीं, तेरी जुस्तजू भी नहीं
पर ये जो मैं हूँ ये क्या हूँ
तेरी याद की खुशबू में रची-बसी.

No comments: