Friday, June 3, 2022

नीला गुलमोहर और प्रेम


अभी-अभी डाकिया रख गया है एक पत्र
देहरी पर
जिसके भीतर लहरा रहा है
आशाओं का संसार
जिसे छूते घबरा रही है लड़की
मुस्कुरा रही है दूर से देखकर ही

अभी-अभी अम्मा ने सांकल खोली है
तमाम नियम कायदों की
वो निकल गयी हैं घर से बहुत दूर
देर रात
उन्हें बाद मुद्दत सांस आई हो जैसे

अभी-अभी ज़िन्दगी की कुम्हलाई शाख पर
उम्मीद की कोंपलें फूटने की आहट हुई
प्रेमासिक्त कबूतर के जोड़े ने 
देखा एक-दूसरे को
और मूँद ली हैं आँखें

अभी-अभी नन्हे ने किलक के उंगली बढ़ाई है
गुस्से से भरे उस अजनबी की ओर
जिसकी आँखों में कुछ देर पहले
उतरा रही थी हिंसा
अब उस अजनबी की आँख में 
उतरा रही है एक नदी 

अभी-अभी शाख से टूटकर गिरा है
नीला गुलमोहर  
प्रेमी जोड़े के कंधे पर 
रास्तों ने मुस्कुराकर कर देखा उन्हें
एक बदली घिर आई है आसमान पर

अभी-अभी तुमने मेरी हथेलियों को चूमा है
और देखो धरती प्रेम से भर उठी है...

5 comments:

अनीता सैनी said...


जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(४-०६-२०२२ ) को
'आइस पाइस'(चर्चा अंक- ४४५१)
पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर

जिज्ञासा सिंह said...

सुंदर मनहर रचना।

विश्वमोहन said...

रूमानी अहसास से भीगे अल्फ़ाज़!!!

Onkar said...

सराहनीय प्रस्तुति।

Anita said...

बहुत सुंदर! कोमल भावनाओं को मोहक शब्द दिए हैं