Thursday, June 16, 2022

अच्छा लगना कैसा होता है...


तुम्हारे जाने के बाद जागती रहती हूँ रातों को
ख़्वाब  देखती हूँ  ख़्वाब आने का
टटोलती हूँ उन जगहों को जिन्हें छुआ था तुमने
कभी सोफे पर
कभी तुम्हारे पानी पिए गिलास में
सिगरेट की छूटी हुई गंध में   
आसमान में, जिसे देखा था साथ में हमने 
सूरजमुखी के उन फूलों में
जो हमें ताक रहे थे उस वक़्त
जब हम बात कर रहे थे
चेतन और अवचेतन दिमाग की कारस्तानियों की

जाते वक्त तुम्हारा 
पलटकर न देखना भी याद आता है 
माथे पर चुम्बन दिए बगैर 
तुम्हारा लौट जाना अटका रह जाता है 
वैसे ही जैसे अटका रह जाता है 
बालों में लगा फूल 
और बालकनी में चहलकदमी करता कबूतर 
ज्यादा साथ रह जाता है तुम्हारा कहना 
कि तुम सिर्फ वो करो जो मन करे 
और मैं कहते-कहते रुक जाती हूँ 
कि मन है तुम्हारे संग बूढ़ा होने का 
जाने कैसे पढ़ लेते हो मन 
और दो झुर्रीदार हथेलियाँ 
हमारी हथेलियों में समाने लगती हैं 

रोना चाहती हूँ 
कहना चाहती हूँ 
कि मुझे जीवन ने 
खुश होना नहीं सिखाया 
अच्छा लगना असल में कैसा होता है 
नहीं जानती 

अपनी पलकों पर तुम्हारे ख़्वाब रखने को होती हूँ 
कि गीली आँखें मुस्कुरा देती हैं 
तुम्हारे ख़्वाब में तो मैं हूँ 
अपनी ही पलकों पर अपने ख़्वाब उठाये 
बारिश के इंतजार में हथेलियाँ आगे बढ़ा देती हूँ 
कि अचानक तुम्हारी याद  
उन हथेलियों को चूम लेती है  
बारिश अपनी लय में बरसती जाती है 
जानती हूँ तुम होते तो 
तोड़ देते हर लय

तुम्हारे जाने के बाद  
अपने भीतर थोड़ा और उगने लगती हूँ 
हर बार...

4 comments:

Ravindra Singh Yadav said...

नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार 17 जून 2022 को 'कहना चाहती हूँ कि मुझे जीवन ने खुश होना नहीं सिखाया' (चर्चा अंक 4464) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

#रवीन्द्र_सिंह_यादव

Jyoti Dehliwal said...

दिल को छूती बहुत ही प्यारी रचना, प्रतिभा दी।

कविता रावत said...

अपनी किसी भी प्रिय के दूर होने या बिछुड़ने के बाद गुजरे पल कैसे कर एक-एक कर हमारे सामने आकर मन उद्वेलित कर देते हैं इसकी मर्मस्पर्शी प्रस्तुति है यह आपकी रचना

मन की वीणा said...

हृदय स्पर्शी सृजन।
सुंदर ।