
हमारी ढेर सारी सांसें तैयारी होती हैं कुछ लम्हों को जीने की. तैयारी वाले उन लम्हों में हमें पता नहीं होता कि जीने वाले लम्हे जब हथेलियों पर होंगे तब हमें कैसे रिएक्ट करेंगे. कैसा महसूस करेंगे. सच में कुछ भी पता नहीं होता.
आँखें मूंदती हूँ तो खुद को एक जंगल में पाती हूँ. बारिश की बूदों को खुद पर उतरते हुए महसूस करती हूँ. जंगल की खुशबू का नशा तारी होने लगता है. आँखें खोलती हूँ तो जंगल मुस्कुराता है, हवा का तेज़ झोंका अपनी खुशबू में बूँदें समेटे हुए आता है और चेहरे को तर-ब-तर कर देता है.
ऐसा लगता है अब तक का सारा जीवन इन लम्हों तक आने की तैयारी था. लम्हे जिनमें मैं जी रही हूँ, लम्हे जो मुझे गढ़ रहे हैं. बीता सबकुछ छूट चुका है. स्मृति भी. स्मृतिविहीन होने की कोशिश में जितने जख्म कुरेद रखे थे वो अब भरने लगे हैं. कितने बरस का वक़्त काफी होता है स्मृतिविहीन होने के लिए कहना मुश्किल है.
स्मृतिविहीन होना असल में स्मृति से असम्पृक्त होना है.
नये मौसम में सब कुछ नया है. नए रास्ते हैं, नए रंग, नई खुशबू. उम्मीद अब भी कोई नहीं है जिन्दगी से, भरोसा है उस पर कि उसकी झोली में कुछ तो होगा मेरे लिए. पलकें झपकाती ज़िन्दगी कभी धूप, कभी बारिश और कभी कचनार के फूल रख देती है हथेली पर.
इनका होना मेरी हथेलियों में लकीरों के न होने को खुशरंग कर देता है. गुलाबी कचनार इन दिनों सुहा रहे हैं. पूरा शहर कचनार की रंगत में डूबा हुआ है.
खुद को आईने में देखती हूँ. कोई और दिखता है वहां. जो दिखता है उससे प्यार है.
कुछ नए सुर साथ हैं...सुख है...
Yellow paper daisy
You've made me crazy, lately
My heart's been so racy
Maybe I'm falling in love again
I'm falling in love again...
https://www.youtube.com/watch?v=JDfsMiovE1A
2 comments:
Having read your article. I appreciate you are taking the time and the effort for putting this useful information together.
बहुत सुंदर
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