Friday, May 27, 2022

तेरी आँखों के सिवा...



'तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रखा क्या है...' पार्क की उस  कुछ भीगी, कुछ सूखी बेंच से उठते हुए लड़का बरबस गुनगुना उठा था. सांझ अपनी पायल की रुनझन को उतारकर आई थी उस रोज. बेआवाज़ सी किसी धुन में डूबी हुई शाम थी वो. लड़की के मध्धम गति में बढ़ते कदम रुक से गये थे. नदी भी मानो बहते-बहते पल भर को ठहर गयी हो. लड़की की आँखें भर आई थीं. वही आँखें जिन्हें देखने को बेताब रहा करता था लड़का. वही जो अब इन आँखों से बहुत दूर जा रहा था.

एकदम से फफक के रोने का जी हो आया लड़की का. कि छोड़ दे मान सम्मान की सारी बात और जाए लिपट जाए उसके सीने से, चीख-चीख के आसमान को घायल कर दे और रोक ले लड़के को. लेकिन...बड़ी मेहनत से कमाया हुआ जो थोड़ा सा गुरूर है उसे कैसे छोड़ दे आखिर कि यह गुरूर अपने होने का है. और यह भी कि रोकने से तो रुकती है सिर्फ देह जाने वाला तो तभी जा चुका होता है जब वो जाने के बारे में सोच लेता है.

अपनी सिसकियों को भीतर ही घोंटते हुए लड़की ने अपने ठहरे हुए कदम आगे बढ़ा दिए. लड़का जानता था कि बात खत्म हो चुकी है. और यही तो वो चाहता था. यही करने तो वो आया था. बात खत्म. इसीलिए तो एक आखिरी बार मिलने आया था. जब वही हो रहा था तो कैसी उदासी. लड़की ने तो अपनी सिसकियों को किसी और मौके के लिए संभाल लिया था लेकिन लड़का इतना मजबूत नहीं था. उसे नहीं मालूम वो क्या चाहता है लेकिन इस लम्हे में उसे लड़की पर बहुत गुस्सा आ रहा था. ये क्यों ऐसी है? क्या इसे कोई दुःख नहीं हो रहा. क्यों ये उसे रोक नहीं रही? क्यों इस तरह उठकर चली जा रही है. इतना भी क्या मगरूर होना.

लड़की के कदमों की रफ्तार में इंतज़ार था कि लड़के के कदम उस रफ्तार का साथ दें शायद. या वो आवाज़ जिस पर बौराई फिरती है इस बार रोक ले उसके कदमों को. कचनार के झरे हुए गुलाबी फूलों से भरा हुआ रास्ता जिस पर अभी बरस के रुके बादलों के निशान काबिज़ थे आज लड़की को उदास कर रहा था. पार्क के मुहाने पर पहुंची तो हवा के हल्के से झोंके ने पत्तों पर रुकी बूंदों को उस पर गिरा दिया. उदास मुस्कराहट के साथ उसने सर उठाकर पेड़ की तरफ देखा, मन ही मन कहा, ‘दोस्त तू समझता है सब हाल का मन का.’ तभी चंद बूँदें टप्प से उसकी नाक और गालों पर टपक गईं.

मुझसे पहली सी मोहब्बत मेरे महबूब न मांग...लिखते वक्त फैज़ ने क्या सोचा होगा कि उनके लिखे का कोई यूँ बेजा इस्तेमाल भी करेगा. अपनी बेवफाई को छुपाने के लिए.

बेवफाई...हाँ, बेवफाई ही तो. बेवफाई किसी और के साथ जाना ही तो नहीं होती, जब और जहाँ आपको होना हो वहां न होना भी तो होती है. इश्क़ में होना और इश्क़ की आंच को सह न पाना भी बेवफाई ही तो हुई. लड़की को महसूस होने लगा था कि लड़का सच्चे प्यार की आंच सह नहीं पा रहा है. वो पिघल रहा है. साथ रहना तो चाहता है लेकिन डरता भी है. कमिटमेंट तो पहले ही कोई नहीं था दोनों के बीच. बस एक इच्छा थी साथ होने की जिसने दोनों को बाँध रखा था. फिर हुआ यूँ कि इश्क़ की खुशबू बिखरने लगी. और खुशबू की तो कोई सीमा होती नहीं. वो कब पाबन्द होती है कि कितना बिखरना है, कितना नहीं. कि सारा आलम उसकी गिरफ्त में आने लगा. चाँद, सितारे मगरूर होने लगे, दिन के पैरहन में टंके घुंघरुओं की छुन छुन बढ़ने लगी. रातरानी की खुशबू में कोई नशा घुलने लगा. रास्तों पर बिखरने लगी इंतज़ार की खुशबू.

लड़के ने इश्क़ के इत्र को न कभी छुआ था, न देखा था. हाँ, किस्से सुने थे, कहानियां पढ़ी जरूर थीं. वो नहीं जानता था नसों में घुलता ये जादू धीरे-धीरे वजूद का हिस्सा बनने लगता है और फिर एक रोज हम खुद से बेज़ार होने लगते हैं. लड़की का साथ उसे अच्छा लगता था लेकिन वो इस खुशबू क संभाल पाने में नाकामयाब होने लगा.

लड़की समझ रही थी कि लड़के के कंधे इश्क़ को सहेजने के लिए मजबूत नहीं हैं, एक रोज जब लड़की जुगनुओं को हथेली पर लिए उनसे लाड़ कर रही थी तो लड़के ने मिनमिनाती सी आवाज़ में कहा, ‘मैं तुम्हारे पास रहना चाहता हूँ लेकिन...’ वो रुक गया था. लड़की ने सारे जुगनू हथेली से उड़ाते हुए उसके होंठो पर उंगली रखते हुए उसे चुप रहने का इशारा किया. वो जानती थी कि लड़के के मन में क्या है. वो जानती थी उन दोनों के बीच कोई नहीं है. है तो लड़के की खुद की कमजोरी. वो जानती थी कि जो इश्क़ मोहता बहुत है उसके करीब जाना, उसे आत्मसात करना उसे जीना आसान भी नहीं.

लड़का इश्क़ के मोह में आ तो गया था लेकिन अब उसके कंधे छोटे पड़ने लगे थे.

लड़का धीरे-धीरे चलते हुए लड़की के पास आ पहुंचा था. दोनों खामोश साथ चलते रहे. लड़का आया तो था लड़की को विदा कहने लेकिन चाहता था उसे रोक ले लड़की. और लड़की ने किसी को भी रोकना बहुत पहले छोड़ दिया है. बादल फिर घिर आये थे. हल्की बूँदें भी गिरने लगी थीं.

‘तुम रुको मैं कार यहीं लेकर आता हूँ, इतनी दूर पैदल जाओगी तो भीग जाओगी’ लड़के ने हाथ थामकर उसे रुक जाने को कहा.

'छोड़कर जाने वालों को इतनी फ़िक्र करने का हक़ नहीं होता...' कहकर लड़की मुस्कुरा दी.
‘इतना बुरा लग रहा है तो रोक क्यों नहीं लेती?’ लड़के ने कहा. लड़के की उदासी उसकी आवाज़ में बिखर गयी थी.
‘अरे, मैंने कहा था क्या आने को? खुद आये थे खुद ठहरे जब तक ठहरना था और अब खुद ही जा रहे हो. तो मैं क्यों रोकूँ?’ लड़की ने मन में सोचा लेकिन कहा कुछ भी नहीं.

बस वो रुकी नहीं, और बारिश में भीगते हुए कार की ओर बढ़ने लगी.

लड़का रुआंसा हो गया था. उसने पीछे से आवाज़ दी, ‘सुनो, तुम्हें कोई और मिल गया है न?’ यह सबसे सस्ता और अंतिम प्रहार था लड़के का कि लड़की का गुरूर कुछ टूटे तो सही.

लड़की मुस्कुराई. उसने कहा ‘हाँ’.
जानता लड़का भी था कि उसने क्या किया है, जानती लड़की भी थी लड़के ने ऐसा क्यों कहा है लेकिन दोनों खामोश रहे. बाहर बारिश तेज़ हो आई थी भीतर का तूफ़ान थमने लगा था. दोनों कार तक पहुंचे तो एकदम भीग चुके थे.

‘मुझे रोक लो, मैं तुम्हारे पास रुकना चाहता हूँ. लड़के ने कहना चाहा पर वो चुप रहा.’
कार चल पड़ी...फैज़ की गज़ल बज उठी, 'अब भी दिलकश है तेरा हुस्न मगर क्या कीजे...' लड़की ने मुस्कुराकर अपनी हथेलियाँ बरसती बूंदों के आगे कर दीं...

1 comment:

संजय भास्‍कर said...

सिर्फ एक शब्द ...लाज़वाब !