जब रायपुर जाने की योजना बनी तब हर तरफ से एक ही बात सुनने को मिली, कैसी पागल लड़की है. जब सारी दुनिया गर्मी से राहत पाने को पहाड़ों की तरफ भाग रही है ये पहाड़ छोड़कर रायपुर जा रही है. इतनी गर्मी में. मैं हर सवाल पर मुस्कुरा देती कि यह सिर्फ मैं जानती हूँ कि अपने जिस प्रिय लेखक से मुलाकात का सपना बरसों से मन में छुपा हुआ है उनसे मुलाकात से जो सुकून की ठंडक मुझे मिलने वाली है उसके आगे इस मौसमी ताप की बिसात ही क्या.
मेरे मन में विनोद जी से मिलने की इच्छा में एक संकोच, एक झिझक थी जबकि मेरी प्यारी माया आंटी के मन उत्साह का तूफ़ान था. उन्होंने खुद आनन-फानन में टिकट करायीं और साफ़ कहा, कोई ना-नुकुर नहीं, चलना है तो बस चलना है. मैं तो खुद ही जाना चाहती थी बस मुझे फ़िक्र थी उनकी कि उनके उत्साह का मेल उनकी सेहत से बना रहना भी जरूरी है. मैंने उन्हें समझाया हम फिर चल सकते हैं कभी अच्छे मौसम में. उन्होंने डपट दिया, कोई न-नुकुर नहीं, बस हम जा रहे हैं. और मैं मन में बुदबुदाई हाँ, हम जा रहे हैं.
इंदौर प्रवास के दो दिनों में खूब सारे दोस्तों से मिलना हुआ लेकिन एक मध्धम सुर लगा रहा विनोद जी पास जाने का. सबके कुछ प्लान थे, सबके पास योजनायें थीं. क्या देखना है, कहाँ जाना है, क्या खाना है, क्या खरीदना है. मेरे पास था सिर्फ इंतज़ार कि मुझे विनोद जी से मिलना है.
हालाँकि हर वक़्त वो झिझक साथ ही थी कि क्या कहूँगी मिलकर उनसे. क्या कोई सवाल करुँगी? सवाल तो कोई है नहीं मेरे पास. उन्हें अपने बारे में क्या बताउंगी. विनोद जी माया आंटी को जानते हैं. कई बरसों से. माया आंटी से मैंने कहा,'मुझसे पूछेंगे कि मैं कौन हूँ तो मैं कह दूँगी कि मैं आपका सामान उठाने आई हूँ, आपकी अस्सिटेंट.' वो हंस देतीं इस बात पर. लेकिन मैंने सच में उनसे कहा, 'आप बातें करना मैं चुपचाप सुनूंगी. मैं बस कुछ देर उनके करीब बैठना चाहती हूँ.'
ऐसी ही उहापोह के बीच हम रायपुर पहुंचे. बारिश की बौछारों ने ठंडे मौसम ने हमारा स्वागत किया. सैनिक गेस्ट हाउस की तरह भागती टैक्सी के भीतर दो प्रेमिल छवियाँ एकदम चुप थीं. विनोद जी की तमाम कवितायें साथ चल रही थीं. लेकिन उस वक़्त सबसे करीब थी उनकी कविता की ये पंक्तियाँ-
'मैं फुरसत से नहीं
उनसे एक जरूरी काम की तरह
मिलता रहूँगा।
इसे मैं अकेली आखिरी इच्छा की तरह
सबसे पहली इच्छा रखना चाहूँगा।'
('जो मेरे घर कभी नहीं आयेंगे' कविता से)
हाँ, हम एक बेहद बेहद जरूरी काम नहीं, इच्छा की तरह उनसे मिलने जा रहे थे. उनके लिए तोहफे में क्या ले जाते तो थोड़ी सी बारिश थोड़ा सा ठंडा मौसम मंगा लिया था...
मिलता रहूँगा।
इसे मैं अकेली आखिरी इच्छा की तरह
सबसे पहली इच्छा रखना चाहूँगा।'
('जो मेरे घर कभी नहीं आयेंगे' कविता से)
हाँ, हम एक बेहद बेहद जरूरी काम नहीं, इच्छा की तरह उनसे मिलने जा रहे थे. उनके लिए तोहफे में क्या ले जाते तो थोड़ी सी बारिश थोड़ा सा ठंडा मौसम मंगा लिया था...
1 comment:
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 22 मई 2022 को साझा की गयी है....
पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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