Monday, April 20, 2020

फ्रेंड रिकवेस्ट


पहले कुछ सौ के करीब थीं,
फिर हजारों हो गयीं
कुछ कुम्हलाने लगीं
बैठे बैठे
शायद उन्हें था इंतजार
कि एक रोज
स्वीकारा जायेगा उन्हें
कुछ में धैर्य था
कुछ में आवेग
कुछ ने तंज किये
कुछ ने गर्वीला समझा
कुछ चुपचाप बनी रहीं
इंतजार में

कुछ भूल चुकी थीं
कि वो हैं
भेजने वाले भी भूल चुके थे
भेजकर उन्हें
वो नहीं जानते थे
कि मैं दुनिया की तमाम मित्रताओं पर
आँख मूंदकर करना चाहती हूँ भरोसा
चाहती हूँ हर बढे हुए हाथ को
थाम लेना
हर पुकार की राह पर
दौड़ जाना चाहती हूँ

लेकिन बड़ा गन्दला किया है दुनिया ने
मित्रता के भाव को
खुद को बचाने की खातिर
कम ही थाम पाती हूँ बढे हुए हाथ
मित्रता सूची की सफाई
न करने पड़े इसलिए
सजग रहना चाहती हूँ
यूँ सजग होना भी क्या होता है
कि जानने के अर्थ कितने विशाल हैं
जिन्हें जाना उन्हें कितना कम जाना
और जो अनजान थे
उनसे मिलकर जाना खुद को भी कई बार
फ्रेंडरिक्वेस्ट की भीड़ में मिले
कितने नायाब दोस्त भी
और कितनों की दुनिया में
मेरी रिक्क्वेस्ट ने भी किया लम्बा इंतजार

जो मुझ तक पहुंची फ्रेंड रिक्वेस्ट
वो सब मुझे प्रिय हैं
लेकिन दोस्त बनने का सलीका
महज एक क्लिक या लाइक कमेन्ट भर नहीं
इनबाक्स में सेंधमारी तो हरगिज़ नही... 

1 comment:

ANHAD NAAD said...

दुरुस्त फ़रमाया