'अच्छा लगने' और और 'अच्छा होने' के बीच अगर दूरी न होती तो शायद यह मुश्किल न होता. मैं 'अच्छा लगने' को 'अच्छा होने' से बदल देना चाहती हूँ. सबके लिए.
अपनी इस इच्छा के उगने के साथ ही कुछ चटखने की आवाज सुनती हूँ. कुछ फूल और खिल जाते हैं...वो इस कदर खिल रहे हैं मानो कह रहे हों खिलना जी भर के, मौसम कैसा भी हो....
1 comment:
बहुत सुन्दर रचना
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