कभी यूँ भी तो हो
दरिया का साहिल हो
पूरे चाँद की रात हो
और तुम आओ...
परियों की महफ़िल हो
कोई तुम्हारी बात हो
और तुम आओ..
ये नर्म मुलायम ठंडी हवाएं
जब घर से तुम्हारे गुजरें
तुम्हारी खुशबू चुराएँ
मेरे घर ले आयें...
और तुम आओ.
सूनी हर महफ़िल हो
कोई न मेरे साथ हो
और तुम आओ.
ये बदल ऐसे टूट के बरसें
मेरी तरह मिलने को
तुम्हारा दिल भी तरसे
तुम निकलो घर से
और तुम आओ...
तन्हाई हो दिल हो
बूँदें हो बरसात हो
और तुम आओ.
दरिया का साहिल हो
पूरे चाँद की रात हो
और तुम आओ..
कभी यूँ भी तो हो...
- जावेद अख्तर
(एल्बम -सिलसिले )
13 comments:
और तुम आओ ..........पूरे कायनात की खुशी के बाद भी तुम्हारे आने का इंतज़ार ..उफ़्फ़ इंतहा है इंतहा
उम्दा सोच
भावमय करते शब्दों के साथ गजब का लेखन ...आभार ।
AB itna bula hi rahi ho to aa jaate hain ! :-)
I m serious.. S.Sc exhibition ka national Lucknow mein hai.. Lagta hai Matkul singh ne dil se bulaaya tha maasi ko..! :-)
ये गज़ल मुझे बहुत-बहुत पसंद है :-)
@Baabusha- मटकुल सिंह बहुत खुश हैं...लखनऊ वालों सुन लो क़यामत आने को है...:-)
कभी यूँ भी तो हो...
इसे जब जब सुना है कुछ कुछ होता है...जगजीत जी ने अपने गायन से जान डाल दी है इस नज़्म में...
नीरज
अहा, बेहतरीन।
♥
आपको सपरिवार
नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है...
वाह ...बहुत खूब
kuchh jyada nahi maang rahi ho ?
ha.ha.ha.
sunder prastuti.
बहुत बढिया
क्या कहने
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