Monday, November 3, 2008

मुठ्ठी भर आसमान

तुमने कहा
फूल....
और मैंने बिछा दी
अपने जीवन की
साडी कोमलता
तुम्हारे जीवन में।

तुमने कहा
शूल.......
मैं बीन आयई
तुम्हारी राह में आने वाले
तमाम कांटें

तुमने कहा
समय......
और मैंने अपनी सारी  उम्र
तुम्हारे नाम कर दी।

तुमने कहा
ऊर्जा...
तो अपनी समस्त ऊर्जा
संचारित कर दी मैंने
तुम्हारी रगों में.

तुमने कहा
बारिश.......
आंखों से बहती बूंदों को
रोककर
भर दिया तुम्हारे जीवन को
सुख की बारिशों से।

तुमने कहा
भूल....
और मैंने ढँक ली
तुम्हारी हर भूल
अपने आँचल से

और एक रोज
तुमने देखा मेरी आंखों में भी
थी कोई चाह
तुमने मुस्कुराकर कहा
तुम्हारा तो है सारा
जहाँ....

मैंने कहा जहाँ नहीं
बस, एक मुठ्ठी भर आसमान

और तुमने
फिर ली नजरें....

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