Friday, November 14, 2008

लम्हा लम्हा जिंदगी


लम्हा लम्हा जिंदगी जब खुदा ने करवट बदली थी, तब धरती का मौसम बदला था।तो ये जो मौसम है न दरअसल, खुदा का करवट बदलना होता है। वो जो चाँद है न उसमें एक बुढ़िया रहती है। वो चरखा चलाती रहती है.जब कोई मर जाता है तो तारा बनकर आसमान में चला जाता है। ये बातें कब सुनी, किस से सुनी ये तो पता नहीं लेकिन कानो से गुजरकर ये बातें जेहन में चस्पा जरूर हो गयीं हैं। दुनिया भर की किताबें पढ़ डालीं, ढेर सारा समझदारी का साबुन लगाया लेकिन मजाल है की मौसम बदलें और यह बात ध्यान में न आ जाए की जरूर खुदा ने करवट बदली होगी। हाँ, इस ख्याल के साथ अब एक हलकी सी मुस्कराहट भी आ जाती है। हम सबकी जिंदगी में ढेर सारी ऐसी बातें हैं, जिनके पीछे कोई लोजिक नहीं फ़िर भी वे हैं और बेहद अजीज हैं।कोई सुने तो अजीब लग सकता है की मुझे मुकम्मल तस्वीर से ज्यादा खूबसूरत लगती है नए हाथों से रची गई अनगढ़ अधूरी तस्वीर। न जाने क्यों कुम्हार जब चक चलाते चलाते थक जाता होगा और उस से तो टेढा- मेदा मटका बन जाता होगाउसे मैं ढूंढकर लती थी। उसमे न जाने कितने आकार मुझे नजर आते थे। उपन्यास, कहानियो या कविताओं से ज्यादा अधूरी लिखी रह गई डायरी, पत्र हमेशाज्यादा लुभाते रहे मुझे. वो जो कम्प्लीट है, परफेक्ट है, वो इन्हीं अनगढ़, ऊंचे-नीचे,ऊबड़- खाबड़ रास्तों से होकर ही तो गुजरा है। ना जाने कब, कहाँ, पढ़ा था की काफ्काको सारी उम्र बुखार रहा। यह दरअसल, उनके भीतर पलने वाले प्रेम की तपन थी। उस ताप में जलते हुए काफ्का के प्रेम की तपिश को उनकी हर रचना में मैंने खूब महसूसकिया, बगैर इस बात की तस्दीक़ किए की इसमें कितनी सच्चाई थी। एक बार मई या जूनकी दोपहर में एक अधेड़ सी औरत दिखी। काली, नाती और दुनिया की नजर में बदसूरतही कही जाने वाली वह औरत अपनी गुलाबी साड़ी और ठीकठाक मेकप में, मुझे उस वक़्तइतनी सुंदर लगी की मैं बता नहीं सकती। मुझे लगा की उसने कितने एंगल से ख़ुद को देखाहोगा, किसी के लिए ख़ुद को बड़े मन से सजाया होगा। उसके भीतर के वो मासूम भावः,उसके चेहरे पर साफ नजर आ रहे थे। शायद ऐसे छोटे-छोटे, बिना लोजिक के रीजन्स ने ही फ़िल्म रॉक ओन के इस गाने का शेप लिया होगा की मेरी लांड्री का एक बिल, आधी पढ़ी हुई नोवेल, मेरे काम का एक पेपर, एक लड़की का फ़ोन नम्बर pichchle सात दिनों में मैंने खोया....कभी फ़िल्म के नॉन एडिटेड पार्ट से रु-बा-रु होने का मौका मिला हो तो देखिये कितना मजा आता है। ऐसा लगता है की फ़िल्म को कितने dymention मिल सकते थे final प्ले से कम मजेदार नहीं होता उसका रिहर्सल। एक-एक संवाद को याद करते, एक-एक ऍक्स्प्रॅशन के लिए जी- जान लड़ते हुए लोगों को देखना काफी दिलचस्प होता है। शानदार पेंटिंग एक्सिबिशन की बजाय, पेंटिंग वर्कशॉप में जाइये, रंगों से, लकीरों से जूझते आर्टिस्ट के भावों को पढिये, उनकी पूरी बॉडी लैंगुएज उस समय क्रिअतिविटी के उफान पर होती है।लीजिये सबसे इंपोर्टएंट बात तो रह ही गई। दुनिया की सबसे ख़ास चीज जो हर किसी को आकर्षित करती है, वो है प्रेम और प्रेम में कोई लोजिक नहीं होता वह तो बस होता है। कहते हैं न की नापतौल कर तो व्यापआर होता hai prem तो बस होता है(agar hota hai to)और आप चाहे न चाहें। हम सब व्यवस्थित होने की धुन में मस्त रहते है, व्यस्त रहते हैं लेकिन कभी, कहीं कुछ होता है, जो हमारे भीतर के उन कोनो को छु जाता है, जो अब तक दुनिया की समझदारियों के हवाले नहीं हुए। जिनमे बिना लोजिक की ढेर sari कहानियाँ हैं। ऐसी न जाने कितनी चीजें है, जो हमारे आसपास बिखरी पड़ी हैं, जिन्हें हम कभी मुस्कुराकर इग्नोर कर देते है, आगे बढ़ जाते है और कभी वे हमारा दामन पकड़कर अपने पास बिठा लेती है। अगर लोजिक तलाशें, वैलेद रीजन्स की खोज करें तो इन चीजों कर यकीनन कोई मतलब नहीं है। दिस इज आल वेस्ट मेटेरिअल...लेकिन इन वेस्ट मेटेरिअल लम्हों से, बातों से, चीजों से जिंदगी सजायी भी जन सकती है.

11 comments:

शोभा said...

अच्छा लिखा है. ब्लॉग जगत मैं आपका स्वागत है.

shama said...

Swagat hai ! Pratibha, aapka aur aapki pratibha....donoka..!
Us auratke baareme jistarahse aapne mehsoos kiya, ek samvedansheel manhee kar sakta hai !

Manoj Kalra said...

Nice, realy nice ! ur welcome Partibha ji.

श्यामल सुमन said...

मिलन में नैन सजल होते हैं,
विरह में जलती आग।
प्रियतम प्रेम है दीप राग।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com

Prakash Badal said...

स्वागत है आपका लिखना जारी रखें

हिन्दीवाणी said...

बहुत अच्छा ब्लॉग बनाया है आपने। प्रस्तुतियां भी सुंदर हैं। सिलसिला जारी रखिए।

Amit K Sagar said...

ब्लोगिंग जगत में आपका स्वागत है. खूब लिखें, खूब पढ़ें, स्वच्छ समाज का रूप धरें, बुराई को मिटायें, अच्छाई जगत को सिखाएं...खूब लिखें-लिखायें...
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आप मेरे ब्लॉग पर सादर आमंत्रित हैं.
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अमित के. सागर
(उल्टा तीर)

Unknown said...

wwah ji wah....tussi to chha gaye...
aap likhte rahe or aise hi hum jaise logo ko protsahit karte rahe.....


Jai ho Magalmay ho...

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

bahut hee shandar, narayan narayan

Anonymous said...

Acha laga aap kaa blog dekh kar !!
wish you all the best.!!!

regds
Nishant

Anonymous said...

रसात्मक और सुंदर अभिव्यक्ति