वे दोनों मानते हैं
की अचानक एक ज्वार उठा
और उन्हें हमेशा के लिए एक कर गया
कितना खूबसूरत है शंशय हीन विश्वास
पर शंशय इससे भी खूबसूरत है
अब चूँकि वे पहले कभी नहीं मिले
इसलिए उन्हें विश्वास है
की उनके बीच कभी कुछ नहीं था इससे पहले
तो फ़िर वह शब्द क्या था
जो गलियों, गलियारों या सीढियों पर
फुसफुसाया गया था?
क्या पता वे कितनी बार एक दूसरे के
एक-दूसरे के kareeb से गुजरे हों
mai उनसे पूछना चाहती हूँ
क्या उन्हें याद नहीं
रिवाल्विंग दरवाजे में घुसते हुए सामने पड़ा एक चेहरा
या भीड़ में कोई sorry कहते हुए आगे बढ़ गया था
या शायद किसी ने रौंग नम्बर कहकर फोन रख दिया था
लेकिन mai जानती हूँ उनका जवाब
नहीं उन्हें कुछ भी याद नहीं
उन्हें ये जानकर ताज्जुब होगा
की अरसे से संयोग उनसे आन्ख्मिचोनीखेल रहा था
पर अभी वक़्त नहीं आया था
की वह उनकी नियति बन जाए
वह उन्हें बार- बार करीब लाया
और दूर ले गया
अपनी हँसी दबाये उसने उनका रास्ता रोका
और फ़िर उछालकर दूर हट गया
नियति ने उन्हें बार-बार संकेत दिए
चाहे वे उन्हें न समझ पाए हों
तीन साल पहले की बात है
या फ़िर pichale मंगल की
जब एक सूखा हुआ पत्ता
किसी एक के कंधे को छूते
दूसरे के दामन में जा गिरा था
किसी के हांथों से कुछ गिरा
किसी ने कुच उठाया
कौन जाने वह एक गेंद ही हो
बचपन की झाडियों में खोई हुई
कई दरवाजे होंगे
जहाँ एक की दस्तक पर
दूसरे की दस्तक पड़ी होंगी
हवाई-अड्डे होंगे
जहाँ पास-पास खड़े होकर
सामान की जाँच करवाई होगी
और किसी रात देखा होगा एक ही सपना
सुबह की रौशनी में धुंधला पड़ता हुआ
और फ़िर हर शुरुआत
किसी न किसी सिलसिले की
एक कड़ी ही तो होती है
क्योंकि घटनाओं की किताब
जब देखो अधखुली ही मिलती है.....
शिम्बोर्स्का की यह कविता हर प्यार करने वाले
को बेहद अजीज लगती है...यही शिम्बोर्स्का का
जादू है जो एक बार सर चढ़ जाए तो फ़िर कभी नहीं
उतरता....
3 comments:
आधुनिकतावाद से भरपूर!
प्रतिभा जी
नमस्कार
आपने एक बेहद
संयोग मय, संशय पर आधारित
रचना से अवगत कराया
अच्च्छा लगा
वाकई हम जीवन में एक दूसरे कहीं न कहीं
भले ही मिले हों लेकिन संयोग होने पर ही एक दूसरे को जान पाते हैं
शिम्बोर्स्का की यह कविता हर प्यार करने वाले
को बेहद अजीज लगती है...यही शिम्बोर्स्का का
जादू है जो एक बार सर चढ़ जाए तो फ़िर कभी नहीं
उतरता....
आपका
डॉ विजय तिवारी " किसलय "
behtareen
Post a Comment