पूरनमाशी की रात जंगल में
जब कभी चाँदनी बरसती है
पत्तों में तिक्लियाँ सी बजती हैं
पूरनमाशी की रात जंगल में
नीले शीशम के पेड़ के नीचे
बैठकर तुम कभी सुनो जानम
चाँदनी में धूलि हुई मद्धम
भीगी- भीगी उदास आवाजें
नाम लेकर पुकारती हैं तुम्हें
कितनी सदियों से ढूँढती होंगी
तुमको ये चाँदनी की आवाजें
जब कभी चाँदनी बरसती है
पत्तों में तिक्लियाँ सी बजती हैं
पूरनमाशी की रात जंगल में
नीले शीशम के पेड़ के नीचे
बैठकर तुम कभी सुनो जानम
चाँदनी में धूलि हुई मद्धम
भीगी- भीगी उदास आवाजें
नाम लेकर पुकारती हैं तुम्हें
कितनी सदियों से ढूँढती होंगी
तुमको ये चाँदनी की आवाजें
No comments:
Post a Comment