धीरे-धीरे खत्म हो रहा sab कुछ,
जीवन में घुलने लगा है
मीठा जहर
प्रेम ने कर लिया है किनारा।
कलाएं औंधे मुंह पड़ी हैं,
व्यावसायिकता सिर पर सवार है
लेकिन है वह भी खोखली ही।
घटनाएं अब हादसों मेंतब्दील हो चुकी हैं,
यातनाएं आदत में ही गई हैं शुमार।
दरख्तों पर चिडिय़ा नहीं
भय बैठता है इन दिनों।
खत्म हो रहा है सब कुछ
धीरे-धीरे और
ऐसे में हम लिख रहे हैं कविताएं
क्योंकि इस नष्ट होती धरती को
कविता ही बचायेगी एक दिन
देख लेना....
- प्रतिभा
18 comments:
kya baat hai kavtitaa jee, bahut sundar, sachmuch kavitaa hamein jindaa rakhe hue hai ya ham kavitaao ko sochne kee baat hai...
आशावाद का सन्देश देती,
मन के अन्तरद्वन्द्व को प्रकट करती हुई,
सुन्दर कविता।
bahut sunder panktiya hai prtibha ji...sunder likhahai
सुंदर अभिव्यंजना- मेरे तरफ से भी ये पंक्तियां स्वीकार कीजिये-
हम चाहें आसमां के लिए लिखें कितनी ही कविताएं, उसमें व्यक्त सदा धरती ही होती है।
Height of self indulgence . How many read the kind of poems u have written about? A few duty bound good men entrenched in snow wih SLRs under their chin will save this country and even they can't guarantee safety of this big ,bad world!
bahut sunder asha se bharpoor abhivyakti hai
सुन्दर भाव हैं , क्या कल्पना की है आपने प्रतिभा जी - :"दरख्तों पर चिडिय़ा नहीं
भय बैठता है इन दिनों।:"
-विजय
bhahut sundar kavita hai
kavitaye hi sahas jagati hai...
kavitaye hi yoddha banati hai..
बहुत सुन्दर कविता है,
उम्मीदें कब हमारा दामन छोडेंगी पता नही पर कवि मन नए हौसले नए ख्वाब दिखाता रहता है .
आशावाद की भोर जैसी कविता है
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तख़लीक़-ए-नज़र । चाँद, बादल और शाम । गुलाबी कोंपलें । तकनीक दृष्टा
आशावाद का सन्देश संजोती अच्छी रचना . धन्यवाद.
आशा है ऐसा ही हो ..सुन्दर इन्सान को आशा वादी होना ही चाहिए.
Nice blog, Pratibha ji! I am here for the first time.
U have written something about me in Dainik Jagran. I don't read/subscribe newspaper and the link given by U is not opening safely. Could U please send me a pdf at my e-mail the.mishnish@gmail.com ?
I'll be grateful to U for that.
बहुत सही बयां किया ...आपने कविता के माध्यम से बहुत अच्छी बात कही
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
कवि अशोक सिंह जी की एक पंक्ति है -
"आज के इस दौर में भी गीत ही मैं लिख रहा हूँ..."
इन पंक्तियों का संदेश भी ऐसा ही है ।
मैं हमेशा यही सोचती हूं कि कविताएं लिखना मेरे बस की बात नहीं. कुछ टूटे से ख्यालों को एक फ्रेम में डाल देना कविता तो नहीं हो सकता. एक अकवि की टूटी-फूटी लाइनों को आप लोगों का इतना स्नेह मिला इसके लिए आभारी हूं. सबका बहुत शुक्रिया!
haan sachchi me kavita hi bachayegi ekdin. bade sundar sabd hai aapke. likhe rahe meri shubhakamnaye aapko.
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