कल रात मारीना फिर आई. मुझे मालूम था वो आएगी. हम देर तक बात करते रहे. हालाँकि वो खामोश थी. लेकिन अब हम दोनों ने शब्दहीनता में संवाद करना सीख लिया है. मैंने उसकी कलाई अपने हाथ में लेते हुए पूछा, 'उदास हो?' वो चुप रही. सवाल तो होना चाहिए था 'खुश हो?' कि मारीना के जीवन और जिजीविषा के नाम एक पूरी शाम जो थी. कितना प्रेम मिल रहा था. वही प्रेम जिसके लिए वो जीवन भर तरसती भी रही और वही जिसमें वो जीवन भर निमग्न भी रही. उसकी ख़ामोशी की मुझे आदत है. मैंने कहा कॉफ़ी पियोगी? उसने हाँ कहा.
मैं उसे पीले फूलों वाले बागीचे में छोड़कर कॉफ़ी बनाने गयी. कॉफ़ी बनाते वक़्त असल में मैंने अपने भीतर भी कोई उदास धुन को गलते हुए महसूस किया. क्यों है यह उदासी. जबकि मन तो ख़ुशी से भरा होना चाहिए था. मारीना की इतने सारे नये लोगों से दोस्ती हुई कल. इतना प्यार मिला उसे भी, मुझे भी. शायद हर सुख के अन्तस में कोई दुःख का केंद्र है. वही होगा उदासी की वजह. मैंने अक्सर बेहद खुश होने के अवसरों पर एक उदासी तारी होती महसूस की है. लेकिन इस दफे यह तनिक लग उदासी थी.
मैं उसके आगे कॉफ़ी का मग बढ़ाते हुए कहती हूँ 'प्रेम'
उसकी निगाहों में नजर आता है प्रेम.
'जानती हूँ तुम्हारी उदासी की वजह' मैं उससे कहती हूँ. शायद यही वह मुझसे भी कहती है.
'क्या मेरा जीवन सिर्फ मेरे प्रेम और मेरे रिश्तों के लिए ही जाना जायेगा? या उन दुखों के लिए जो मैंने सहे? या उस मृत्यु के लिए जिसे मुझे चुनना पड़ा? मैं अपनी रचनाओं के लिए भी जाने जाना चाहती हूँ.' उसकी पलकें नम थीं और कॉफ़ी का मग थामे वो दूर निगाहें टिकाये थी.
कह देने से मन हल्का होता है. उसके कह देने से मेरा मन हल्का हो आया था. रूई सा हल्का. प्रेम अगर स्त्री का हो, कई प्रेम तो उसकी तमाम प्रतिभाओं के बावजूद जब भी उस पर बात होती है केंद्र में उसके प्रेम ही जाने क्यों आ जाते हैं. मैं उसके कंधे पर हाथ रखकर कहती हूँ, 'दोस्त सौ बरसों का फासला गुजरा जरूर है लेकिन बहुत कुछ बदला नहीं है अभी भी. इसलिए नाराज न हो, उदास न हो कॉफ़ी पियो. कि तुम इस बाबत मुझे पहले ही बता चुकी हो प्रेम बाहर की नहीं भीतर की यात्रा है. कितने प्रेम नहीं कितना प्रेम, कितनी सघन यात्रा. प्रेम के सफर में आने वाले व्यक्तियों को गिने बिना अवसाद की,अधूरेपन की उस यात्रा को देख पाने का शऊर अभी सीखना है दुनिया को. कि जब हम लिबरल होकर कहते हैं न कि हमें उसके तमाम रिश्तों से आज़ाद ख्याली से कोई परेशानी नहीं तब भी कहीं होती है परेशानी.'
'मैं प्रेम से भरी थी...' वो कुछ कहने को हुई.
'रुक जाओ कुछ न कहो.' मैं उसे रोक देती हूँ.
'जस्टिफिकेशन कोई नहीं दोस्त. किसी को मत दो. लोगों को उनकी समझ के साथ छोड़ते हैं. उन्हें अभी परिपक्व होने में समय लगेगा. हम कॉफ़ी पीते हैं. '
'बस एक सवाल?' मारीना की उदासी आसपास भटकने लगी थी.
'बस एक?' मैं हंसकर यूँ कहती हूँ जैसे मुझे तो सवालों के जवाब आते ही हैं. जैसे कि मैं तो बुध्धू हूँ ही नहीं.
'क्या अगर मारीना पुरुष होती तो भी ये सवाल ऐसे ही होते, क्या तब भी समूची रचनात्मकता को उसके तमाम रिश्तों और प्रेम पर केन्द्रित कर सीमित कर दिया जाता?'
मैं हंस देती हूँ. यह सवाल समूची आदमजात से है. उन सबसे जो एक स्त्री को जज करने के अपने भोथरे हथियारों के साथ सदियों से खड़े रहते हैं. न जाने साहित्यकार, कलाकार हैं दुनिया भर में जहाँ एकाधिक प्रेम के किस्से सहजता से स्वीकारे गए लेकिन एक स्त्री...उसकी रचनात्मकता के आगे उसके चरित्र का विश्लेष्ण खड़ा कर सारा विमर्श समेट दिया जाता है. चाहे उसके संघर्ष हों, उसकी सफलता या उसका जीवन.
'छोड़ो न ये सब, तुमने जीवन भर जिन बातों की परवाह नहीं की तो अब क्यों?'
'परवाह नहीं कर रही दोस्त उदास हूँ इतने बरसों के बाद भी स्त्री को देखने का नजरिया जरा भी नहीं बदला.'
मैं और मारीना कल शाम की तस्वीरों में खुद को तलाशने लगती हैं. कुछ मुस्कुराहटें हमारा हासिल हैं,
7 comments:
बहुत ही खूबसूरती से वर्णित एक बेहद खूबसूरत रिश्ता
जय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
13/04/2021 मंगलवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
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सादर नमस्कार ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (13-4-21) को "काश में सोलह की हो जाती" (चर्चा अंक 4035) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
कामिनी सिन्हा
सुन्दर कथा
लाजवाब विश्लेषण
वाकई चिन्तनपरक....
'दोस्त सौ बरसों का फासला गुजरा जरूर है लेकिन बहुत कुछ बदला नहीं है अभी भी. इसलिए नाराज न हो, उदास न हो कॉफ़ी पियो.
सच बहूत कुछ नहीं बदला है ...
लेकिन नहीं बदला मरीना और प्रतिभा का प्यार और साथ बैठ काफी पीना :-)
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