30 अप्रैल 2021
एक गहरी चुप सी लगी है. कुछ कहते नहीं बनते, कुछ सुनने को दिल नहीं करता. उदास खबरें बीनते बीनते हाथों में फफोले निकल आये हैं. लेकिन इन फफोलों का दर्द नहीं होता. दर्द होता है किसी के दर्द को कम न कर पाने का. कैसी महामारी है ये, ये कैसे बुरे दिन हैं कि चरों तरफ बस मौत बरस रही है. क्या सचमुच लोग वायरस की मार से मर रहे हैं. नहीं, ज्यादा लोग सिस्टम के फेल्यौर से मर रहे हैं. ये मौतें नहीं हैं हत्याएं हैं और हम दुर्भाग्य से इस हत्याकांड के गवाह. क्या हम कुछ नहीं कर सकते? हम कुछ क्यों नहीं कर सकते?
काश रोक पाए होते असमय गए लोगों को. काश गले लगा पाए होते उन सबको जो अपनों से बिछड़ गए. ये काश इतना बड़ा क्यों हो गया. ऐसी बेबसी, ऐसी लाचारी कभी महसूस नहीं की. कभी भी नहीं. एक बार मेरे पड़ोस में रहने वालों ने अपने जवान बेटे को खो दिया था. एक्सीडेंट में. चूंकि वो परिवार हमारे परिवार के काफी करीब था इसलिए वो पारिवारिक क्षति ही थी. इतने बरस हो गए उस बात को आज तक उस बच्चे का मुसुकुराता चेहरा आँखों के आगे घूमता रहता है. इस दौर ने तो न जाने कितने अपनों को. कितने अपनों के अपनों को निगल लिया. दिल इस कदर घबराया रहता है कि अब कोई और खबर न आये, और तब तक दो चार और खबरें तोड़ देती हैं. दिन भर एम्बुलेंस के सायरन की आवाजें दिल की धडकनों को तेज करती रहती हैं.
यह कैसा समय है. क्यों है ऐसा समय. क्या सरकार की फेल्योर दिखती नहीं लोगों को. क्यों नहीं दिखती. कब दिखेगी आखिर. यह नृशंस हत्याकांड है. ठीक है कि इस वक़्त सरकार को कोसने से ज्यादा जरूरी है लोगों की मदद करना, लेकिन यह क्या कि मदद करने वालों के खिलाफ ही कार्रवाई करने लगे सरकार. इसी वक़्त चुनाव भी करवाए सरकार. और हम अभी सरकार को न कोसें.क्यों भला?
सच कहूँ तो समझ में नहीं आ रहा कि मेरे मन में गुस्सा ज्यादा है या दुःख. या दोनों ने मिलकर कुछ नया ही गढ़ लिया है. न जाने कब यह हाहाकार रुकेगा. न जाने कब जिन्दगी सम पर आएगी. ऐसा पहली बार हुआ है कि अब प्यार पर प्यार नहीं आता बस उसकी सुरक्षा का ख्याल आता है. तुम जहाँ रहो सुरक्षित रहो...प्यार का क्या है वो तो अंतिम सांस तक रहेगा ही. वो कब मुलाकातों के भरोसे बैठा था. बस कि सांसें बचाते हुए हम खुद की निर्मिति पर भी ध्यान टिका सकें...काश कि यह ज़िन्दगी किसी के काम आ सके.
तुम अपना ख़याल रखना.
काश रोक पाए होते असमय गए लोगों को. काश गले लगा पाए होते उन सबको जो अपनों से बिछड़ गए. ये काश इतना बड़ा क्यों हो गया. ऐसी बेबसी, ऐसी लाचारी कभी महसूस नहीं की. कभी भी नहीं. एक बार मेरे पड़ोस में रहने वालों ने अपने जवान बेटे को खो दिया था. एक्सीडेंट में. चूंकि वो परिवार हमारे परिवार के काफी करीब था इसलिए वो पारिवारिक क्षति ही थी. इतने बरस हो गए उस बात को आज तक उस बच्चे का मुसुकुराता चेहरा आँखों के आगे घूमता रहता है. इस दौर ने तो न जाने कितने अपनों को. कितने अपनों के अपनों को निगल लिया. दिल इस कदर घबराया रहता है कि अब कोई और खबर न आये, और तब तक दो चार और खबरें तोड़ देती हैं. दिन भर एम्बुलेंस के सायरन की आवाजें दिल की धडकनों को तेज करती रहती हैं.
यह कैसा समय है. क्यों है ऐसा समय. क्या सरकार की फेल्योर दिखती नहीं लोगों को. क्यों नहीं दिखती. कब दिखेगी आखिर. यह नृशंस हत्याकांड है. ठीक है कि इस वक़्त सरकार को कोसने से ज्यादा जरूरी है लोगों की मदद करना, लेकिन यह क्या कि मदद करने वालों के खिलाफ ही कार्रवाई करने लगे सरकार. इसी वक़्त चुनाव भी करवाए सरकार. और हम अभी सरकार को न कोसें.क्यों भला?
सच कहूँ तो समझ में नहीं आ रहा कि मेरे मन में गुस्सा ज्यादा है या दुःख. या दोनों ने मिलकर कुछ नया ही गढ़ लिया है. न जाने कब यह हाहाकार रुकेगा. न जाने कब जिन्दगी सम पर आएगी. ऐसा पहली बार हुआ है कि अब प्यार पर प्यार नहीं आता बस उसकी सुरक्षा का ख्याल आता है. तुम जहाँ रहो सुरक्षित रहो...प्यार का क्या है वो तो अंतिम सांस तक रहेगा ही. वो कब मुलाकातों के भरोसे बैठा था. बस कि सांसें बचाते हुए हम खुद की निर्मिति पर भी ध्यान टिका सकें...काश कि यह ज़िन्दगी किसी के काम आ सके.
तुम अपना ख़याल रखना.
5 comments:
जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०१-०५ -२०२१) को 'सुधरेंगे फिर हाल'(चर्चा अंक-४०५३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
"अब प्यार पर प्यार नहीं आता बस उसकी सुरक्षा का ख्याल आता है. तुम जहाँ रहो सुरक्षित रहो..."
सही कहा आपने ,अब दुआओं के सिवा कुछ भी जुबान पर नहीं आता ,सच "अपना ख्याल रखना "बस यही एक शब्द है।
सामयिक रचना
सचमुच ऐसा दुखद काल न कभी आया था और न कभी आये, आज हर शहर में यही मौत का तांडव चल रहा है, अस्पताल कम पड़ रहे हैं, ऑक्सीजन की कमी से लोग मर रहे हैं, महामारी का ऐसा प्रचंड रूप हमारी पिछली पीढ़ियों ने भी नहीं देखा था जो आज हमें देखना पड़ रहा है, लेकिन समय कभी ठहरता नहीं, महामारी का अंत होगा ही, तब तक जरूरत है स्वयं की और अपनों की तथा सबकी रक्षा करने की.
मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति ।
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